1. ‘श्रीदेवी’ का प्रश्न- तर्ज-एक परदेशी………………..। तेरे दर पे आके माता पूछूँ प्रश्न मैं, तेरे ज्ञान से भी बनूँ ज्ञानवान मैं। हे माता तेरे, गर्भ बसे प्रभु हैं, तीन ज्ञानधारी तीर्थंकर प्रभु हैं।। कौन सा प्राणी पिंजड़े में रहता, कौन कठोर शब्द करता है-शब्द करता है? जीवों का आधार कौन है, अक्षर च्युत क्या पढ़ना भला है-पढ़ना भला है? बता दे तू उत्तर माता मेरे प्रश्न के, तेरे ज्ञान से भी बनूँ ज्ञानवान मैं।।
1. ‘श्रीदेवी’ के प्रश्न का उत्तर- तर्ज-एक परदेशी………………..। देवी तेरे प्रश्नों का मैं उत्तर दूँ भला, तीर्थंकर के ज्ञान की जो मुझमें है कला। तू भी अपने ज्ञान की ज्योति को जला, ज्ञान की जला सम्यग्ज्ञान की जला।। तोता पिंजड़े में रहता है, कौआ कठोर शब्द करता है-शब्द करता है। जीवों का आधार लोक है, अक्षर च्युत श्लोक भला है-श्लोक भला है।। देवी मैंने उत्तर जो भी दिया है भला, तीर्थंकर के ज्ञान की जो मुझमें है भला।।
2. ह्रीं देवी’ का प्रश्न- तर्ज-झुमका गिरा रे………………..। उत्तर दे दे रे, हे माता मेरे प्रश्नों का तू उत्तर दे दे रे। माता तव शरीर मे क्या गंभीर चीज है बतलाओ। नाभिराय की भुजा कहाँ तक लम्बी है माँ समझाओ।। कैसी और किस वस्तु में अवगाहन करना श्रेयस्कर। हे अम्बे! तुम अधिक प्रशंसापात्र बनीं क्यों पृथ्वी पर।।…पात्र बनीं क्यों पृथ्वी पर।। उत्तर दे दे रे, हे माता मेरे प्रश्नों का तू उत्तर दे दे रे।।
2. ‘ह्रीदेवी’ के प्रश्न का उत्तर- तर्ज-झुमका गिरा रे………………..। उत्तर ले ले रे, हे देवी अपने प्रश्नों का तू उत्तर ले ले रे।। मम शरीर में नाभिमात्र गंभीर वस्तु कहलाती है। आजानू घुटनों तक लम्बी पति की भुजाएं आती हैं।। कुछ गहरे जल में अवगाहन करना ही है श्रेयस्कर। नाभिराय पत्नी होने से पूज्य हुई मैं पृथ्वी पर।।…पूज्य हुई मैं पृथ्वी पर। उत्तर ले ले रे, हे देवी अपने प्रश्नों का तू उत्तर ले ले रे।।
3. ‘धृति देवी’ का प्रश्न- तर्ज-साजन मेरा उस………………..। हे माता तुझ को नमस्कार है, प्रभु जी की महिमा अपरम्पार है। प्रश्न पूछूँ माँ तेरे द्वार है, तेरे उत्तर का इंतजार है। इस जग में है उपादेय क्या? किसको छोड़ूँ मैं माता हेय क्या? कौन गुरु हैं मोक्षमार्ग क्या? समझा दे माता इसका सार क्या? नगरी में छाई क्या बहार है? तेरे उत्तर का इंतजार है।
3. ‘धृतिदेवी’ के प्रश्न का उत्तर- तर्ज-साजन मेरा उस……………….। देवी तू कितनी समझदार है, मुझको तेरा ही इंतजार है। प्रभु जी का कैसा चमत्कार है, प्रश्नों का उत्तर भी तैयार है।। गुरुओं के वचन उपादेय हैं, पापादि निंद्यकार्य हेय हैं। तत्त्वों के ज्ञाता जग में पूज्य हैं, संसार से जो हुए दूर हैं।। बतलाते जो मुक्ती का द्वार हैं, मेरे उत्तर का यही सार है।
4. ‘कीर्तिदेवी’ का प्रश्न- तर्ज-मिलो न तुम तो……………….। प्रश्न करूँ तो मन घबराए, उत्तर मगर न आए, मुझे क्या हो गया है-2।। पथ के लिए पथ्य क्या है? संसार में शुद्ध कौन है? हो ओ……..। संसार में विष क्या है? और माता बोलो पंडित कौन है? हो ओ…….। तू ही माता उत्तर बता दे, शंका मेरी मिटा दे, मुझे क्या हो गया है-2।।
4. ‘कीर्तिदेवी’ के प्रश्न का उत्तर- तर्ज-मिलो न तुम तो……………….। उत्तर सुन लो मन हर्षाए, देवी क्यों घबराए, तुझे क्या हो गया है-2।। पथ के लिए पथ्य धरम है, मन पवित्र वाला मानव शुद्ध है।। हो ओ……. गुरु तिरस्कार विष है, हिताहित विवेकी पंडित बुद्ध है।। हो ओ……….. सार यहाँ सुन मन हरषाए, देवी क्यों घबराए, तुझे क्या हो गया है-2।।
5. ‘बुद्धिदेवी’ का प्रश्न- तर्ज-इक प्यार का नगमा है………………..। हे मरुदेवी माता, तू कैसी सुहानी है, प्रश्नों की उत्तरदाता, तेरी अमर कहानी है।। हे मात-दान क्या है, है मित्र कौन जग में, वाणी का भूषण क्या, क्या अलंकार मुझमें? कर समाधान माता, यही तेरी निशानी है। प्रश्नों की उत्तरदाता, तेरी अमर कहानी है।।
5. ‘बुद्धिदेवी’ के प्रश्न का उत्तर- तर्ज-इक प्यार का नगमा है……………….। देवी तेरे प्रश्नों में, कुछ ऐसी निशानी है। हर मानव के मन की, और जग की कहानी है।। है दान वही जग में, जिसके बदले में चाह नहीं। है मित्र वही सच में, पापों से हटावे सही।। सत्य वाणी का भूषण है, शील तेरी निशानी है। हर मानव के मन की, और जग की कहानी है।।
6. ‘लक्ष्मी देवी’ का प्रश्न- तर्ज-भगवान तेरी नैया………………..। माता मेरे प्रश्नों का, उत्तर तो बता देना। मेरे मन की शंका का, समाधान करा देना।। माँ जग में कौन अंधा, है बहरा कौन प्राणी? मैं नहिं जानूं गूंगा, किसे कहते हैं ज्ञानी।। उत्तर देकर माता, संदेह मिटा देना। मेरे मन की शंका का, समाधान करा देना।।
6. ‘लक्ष्मी देवी’ के प्रश्न का उत्तर- तर्ज-भगवान मेरी नैया……………….। देवी इन उत्तर में, तुम ध्यान लगा लेना। बड़ा सार भरा इनमें, इसे दिल में बसा लेना।। पाप कार्यों में रत अंधा, हित वच न सुने वो बहरा। नहिं मधुर वचन बोले, वह गूंगा ही ठहरा।। प्रभु की इस वाणी में, विश्वास जमा लेना। बड़ा सार भरा इनमें, इसे दिल में बसा लेना।।
7. ‘शान्ति देवी’ का प्रश्न- तर्ज-तन डोले……………….। हे जगमाता, मरुदेवी माता, तेरे द्वार खड़ी हूँ आज मैं, कुछ प्रश्न संजो कर लायी हूँ।। कौन पूज्य है इस पृथ्वी पर, निर्धन किसको कहते। जग को किसने जीत लिया है, बोलो उसे क्या कहते? माता बोलो…….. मरुदेवी माता, जग बतलाता, तेरी महिमा अपरम्पार है। मैं उत्तर पाने आई हूँ।।
7. ‘शान्ति देवी’ के प्रश्न का उत्तर- तर्ज-तन डोले………………..। वृषभेश भज ले, तीर्थेश भज ले, जिसे पाकर हुई निहाल मैं, तेरा उत्तर देने आई हूँ।। चरितवान नर पूज्य धरा पर, चरित पतित निर्धन है। जग को जीता सत्पुरुषों ने, सहनशील उन्हें कहते।। देवी सहनशील…….।। यह ज्ञान कर ले, बात ध्यान कर ले, तेरे प्रश्नों का यही सार है, मैं उत्तर देने आई हूँ।।
8. ‘पुष्टि देवी’ का प्रश्न- तर्ज-झिलमिल सितारों का……………….। खुशियों से भरा तेरा आंगन होगा, आदि प्रभू का आवन होगा। प्रश्नों का उत्तर पाकर, मन पावन होगा। खुशियों से भरा…….. चिन्तन किसका करें रात-दिन, माता जरा बता देना? और प्रेमिका किसे बनायें? यह जग को समझा देना।। तभी दूर मिथ्यातम होगा, आदि प्रभू का आवन होगा।। खुशियों से भरा…………………….।।
8. ‘पुष्टि देवी’ के प्रश्न का उत्तर- तर्ज-झिलमिल सितारों का………………..। खुशियों से भरा मेरा आंगन होगा, आदिप्रभू का आवन होगा। प्रश्नों का उत्तर देकर मन पावन होगा।। खुशियों से भरा………..।। जग की नश्वरता का चिंतन सब प्राणी को हितकर है। करुणा मैत्रीभाव चतुरता यही प्रेमिका सुखकर है।। इनसे दूर मिथ्यातम होगा, आदिप्रभू का आवन होगा।। खुशियों से भरा………………………..।।