ॐ ऐं आं क्रों ह्रीं श्रीं क्लीं असिआउसा अयं जीवः असौ चेतनः अस्मिन् प्राणाः स्थिताः सर्वेन्द्रियाणि इह स्थापय स्थापय देहे वायुं पूरय पूरय संवौषट् चिरं जीवन्तु चिरं जीवन्तु।
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रौं ह्र: असिआउसा अर्हं ॐ ह्रीं स्म्ल्व्र्यं ह्मल्व्र्यूं त्म्ल्व्र्यूं ल्म्ल्व्र्यूं व्म्ल्व्र्यूं प्म्ल्व्र्यूं म्म्ल्व्र्यूं भ्म्ल्व्र्यूं क्ष्म्ल्व्र्यूं क्म्ल्व्र्यूं ॐ ह्रां णमो अरिहंताणं, ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं, ॐ ह्रूं णमो आइरियाणं, ॐ ह्रौं णमो उवज्झायाणं, ॐ ह्र: णमो लोए सव्वसाहूणं अनाहत पराक्रमस्ते भवतु ते भवतु ते भवतु ह्रीं नमः।
निर्मितं वीतरागस्य, रत्नपाषाणधातुभिः।
निराकारं च सिद्धानां, बिम्बं संस्थापये मुदा।।
ॐ नमोऽर्हते केवलिने परमयोगिनेऽनन्तशुद्धपरिणामपरिस्फुरच्छुक्लध्यानाग्नि-निर्दग्धकर्मबीजाय प्राप्तानंतचतुष्टयाय सौम्याय शान्ताय मंगलाय वरदाय अष्टादशदोषरहिताय स्वाहा।
विशेष-दीक्षाकल्याणक में भगवान को……..पिच्छिकां गृहाण गृहाण…….आदि मंत्र बोलना ठीक नहीं क्योंकि भगवान स्वयं दीक्षा लेते हैं, किसी को गुरु नहीं बनाते हैं। इसलिए निम्नलिखित मंत्र पढ़कर भगवान के दायीं तरफ पिच्छी और बाईं तरफ कमण्डलु स्थापित कर देवें अथवा जो भगवान विधिनायक हों उनका नाम लेवें।
यद्यपि भगवान-तीर्थंकर के मल-मूत्र नहीं है फिर भी जिनमुद्रा-अर्हंतमुद्रा स्वरूप का चिन्ह मानकर इन्हें स्थापित करने की आचार्य श्री वीरसागर जी आदि गुरुओं की आज्ञा है।
ॐ ह्रीं भगवतः श्रीऋषभदेवस्य दक्षिणभागे संयमोपकरणं मयूरपिच्छपिच्छिकां स्थापयामि स्वाहा।
ॐ ह्रीं भगवतः श्रीऋषभदेवस्य वामभागे शौचोपकरणं कमण्डलुं स्थापयामि स्वाहा।
जल, चंदन, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, दीप, धूप, फल, अघ्र्य, शान्तिधारा एवं पुष्पांजलि यह एकादशमह अर्थात् ग्यारह प्रकारी पूजा है। श्री पूज्यपाद स्वामी रचित अभिषेक पाठ संग्रह एवं इस प्रतिष्ठातिलक ग्रंथ में सर्वत्र यह विधि अपनाई गई है।
रथविहार के समय भगवान की आरती करके सरसों और अक्षत, पुष्प लेकर निम्न मंत्र पढ़कर सरसों मंत्रित कर रथ के आगे क्षेपण करें पुन: रथ चलाने का श्लोक पढ़कर रथ को चलावें।
परविद्याछेदन मंत्र-ॐ श्रीं ह्रीं ह्र्रं कलिकुंडदंडस्वामिन् अतुलबलवीर्यपराक्रम स्फ्रीं स्फ्रीं स्फ्रूं स्फौं स्फः आत्मविद्यां रक्ष रक्ष परविद्यां छिंद छिंद ह्रूं फट् स्व:।
रथचालन श्लोक-यथा कोटिशिला पूर्व चालिता सर्वविष्णुभि:।
चालयामि तथोत्तिष्ठ शीघ्रं चल महारथ।।
रथशीघ्रोच्चालनमंत्र: नोट-रथयात्रा के बाद १००८ कलशों से या १०८ कलशों से महाभिषेक करना चाहिए।
1. स्वच्छैस्तीर्थजलैरतुच्छसहज-प्रोद्गंधिगंधै सितैः,
सूक्ष्मत्वायतिशालिशालिसदकैर्गंधोद्गमैरूद्गमैः।
हव्यैर्नव्यरसैः प्रदीपितशुभै-र्दीपैविपद्धूपकैः,
धूपैरिष्टफलावहैर्बहुफलैः, देवं समभ्यर्चये।।
यह श्लोक भगवान के लिए अघ्र्य चढ़ाने हेतु है इसी प्रकार कुंभ, पीठ-सिंहासन,वेदी आदि के लिए मात्र अंतिम चरण में परिवर्तन इस प्रकार है-
1.पंचपरमेष्ठी के लिए -स्वच्छै………………………..पंचापि चाये गुरून्।।
2. जिनेन्द्र भगवान के लिए -स्वच्छै………………………..श्री मज्जिनेन्द्रान्यजे।।
3. सिद्ध भगवान के लिए -स्वच्छै………………………..सिद्धान् समभ्यर्चये।।
4. आचार्य परमेष्ठी के लिए -स्वच्छै………………………..श्री धर्मसूरीन्यजे।।
5. उपाध्याय परमेष्ठी के लिए -स्वच्छै………………………..श्री पाठकार्यान्यजे।।
6. साधु परमेष्ठी के लिए -स्वच्छै………………………..श्री सर्वसाधून्यजे।।
7. जिनधर्म के लिए -स्वच्छै…………………..धर्मं समभ्यर्चये अथवा श्रीजैनधर्मं यजे।।
8. जिनागम के लिए -स्वच्छै………………………..श्री जैनवाक्यं यजे।।
9. जिनचैत्य के लिए -स्वच्छै………………………..श्री जैनबिम्बान् यजे।।
10. जिनचैत्यालय के लिए -स्वच्छै………………………..चैत्यालयान्संयजे।।
11. जिनेन्द्र भगवान के लिए -स्वच्छै………………………..रभ्यर्चयामो जिनम्।।
12. यक्ष के लिए -स्वच्छै………………………..यक्षं समभ्यर्चये।।
13. यक्षी के लिए -स्वच्छै………………………..यक्षीं समभ्यर्चये।।
14. पीठ अर्थात् सिंहासन के लिए -स्वच्छै………………………..पीठं समभ्यर्चये।।
15. वेदी के लिए -स्वच्छै………………………..वेदीं समभ्यर्चये।।
16. ध्वजदण्ड के लिए -स्वच्छै………………………..दण्डं समभ्यर्चये।।
17. कुंभों के लिए -स्वच्छै………………………..कुंभान् समभ्यर्चये।।