शाकाहार एक प्राकृतिक आहार है। इसके उत्पादन में न तो कहीं क्रूरता है, न बर्बरता, न शोषण और न ही किसी प्रकार की कोई हिंसा । यह किसी जीवधारी के प्राण लेकर उत्पन्न आहार नहीं है। इससे न तो वातावरण प्रदूषित होता है और न ही कोई रोग फैलता है। शाकाहार सही अर्थ में जीवन की गुणवत्ता को समृद्ध करने वाला आहार है। वस्तुत: शाकाहार चित्त के निर्मलीकरण का ठोस आधार है इसलिए महापुरूषों द्वारा यह कहा गया है— ‘‘जैसा खाये अन्न, वैसा होवे मन। जैसा पीवे पानी, वैसी होवे वाणी’’। शाकाहार का शब्दार्थ या वाच्यार्थ है कि एक ऐसा आहार जो मनुष्य की योग्यताओं का विकास करे और उसे बलशाली तथा पराक्रमी बनाएं। भारत वर्ष के आदि ग्रंथ — ऋग्वेद के साथ ही अथर्ववेद, मनुस्मृति, महाभारत आदि में शाकाहार को मानवीय आहार बताया गया है। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अपने प्रिय भोजन में केवल शाकाहारी भोजन एवं मीठे पकवान का ही वर्णन किया है। आयुर्वेद के प्रकांड विद्वान चरक एवं सुश्रुत ने मांस व शराब की गणना तामसिक भोजन के रूप में की है। जैनधर्म के प्रवर्तक भगवान महावीर एवं बौद्ध के प्रवर्तक भगवान बुद्ध ने भी जीवन के प्रति सम्मान की भावना को पुनर्जीवित किया। इनके द्वारा प्रवर्तित अहिंसा में शाकाहार के महत्व की स्पष्ट झलक देखी जा सकती है। महर्षि पतंजलि द्वारा प्रणीत ‘‘योगदर्शन’’ में भी यम के अंतर्गत पांच नियमों में प्रथम स्थान अहिंसा को ही प्रदान किया जाता है। वस्तुत: अपने सुख एवं स्वाद के लिए निरीह पशु—पक्षियों की हत्या का निषेध ही हमारी संस्कृति का प्रमुख अंग रहा है। मानव की शारीरिक संरचना की दृष्टि से भी विचार किया जाय तो शाकाहार ही मनुष्य का स्वाभाविक भोजन है। ईश्वर ने मनुष्य के शरीर की रचना केवल शाकाहारी के रूप में ही की है न कि मांसाहारी के रूप में ।
मांसाहारी जानवरों के शरीर की रचना को देखने में पता चलता है कि उनके लम्बे—लम्बे नुकीले दांत होते हैं। जिससे उन्हें मांस खाने में और कच्चे मांस को चीरने में आसानी रहती है।इसके विपरीत शाकाहारी जानवरों जैसे गाय, बैल, बंदर, घोड़े आदि के दांत सपाट बने होते हैं जिससे वे भोजन को आसानी से चबा सकते हैं। इसी प्रकार मांसाहारी जानवरों की जीभ भरभरी होती है जिससे उन्हें हड्डी से मांस निकालने में कष्ट नहीं होता। मांसाहारी जानवरों की आंते उनके शरीर के अनुपात में दुगुनी या तिगुनी होती है। ताकि वे शीघ्र ही अपने शरीर से मांसाहार से उत्पन्न गंदगी को निष्काषित कर सके। इसके विपरीत शाकाहारी जानवरों की आंते उनके शरीर के अनुपात में ६ से ७ गुणा लम्बी होती हैं। यही बात मानव शरीर के संदर्भ में भी लागू होती है। भोजन को सुविधापूर्वक पचाने के लिए मानव की उसके शरीर से आंते १२ गुना लम्बी बनाई गई हैं। शाकाहारी पशुओं और मानव के पेट क्षारिय प्रकृति के होते हैं। जिससे वे कार्बोहाइड्रेट को आसानी से पचा सकते हैं। इन सब तथ्यों से यह सिद्ध होता है कि ईश्वर ने मानव शरीर की रचना शाकाहारी प्राणी के रूप में की है और वही उसका प्राकृतिक आहार है मांसाहारी लोग स्वास्थ्य की दृष्टि से मांसाहार को अधिक लाभप्रद मानते हैं। दूसरी भ्रांति लोगों के मन में यह है कि मांसाहार अधिक शक्तिवर्धक व बुद्धिवर्धक होता है जबकि यह बात भी पूर्णतया निराधार है।
हाथी एवं घोड़ा शाकाहारी हैं परंतु अन्य जानवरों से अधिक ताकतवर हैं। शक्ति का मानक तो अश्वशक्ति को माना गया है जबकि अश्व तो शाकाहारी प्राणी है। पूर्वकाल के मनीषी अरस्तु, प्लेटो, न्यूटन, शैक्सपीयर, डार्विन, हक्सले, इमर्सन, आइंस्टीन, जार्ज बर्नाड शॉ, लियो टालस्टाय, पायथागोरस, फेकलिन, सी.बी.रमन, महात्मा गांधी, रविन्द्रनाथ टैगोर आदि सभी महान विभूतियाँ शाकाहारी थी। शाकाहारी सैनिक व पहलवान भी खूब शक्तिशाली देखे गये हैं। परमवीर चक्र विजेता यदुनाथ सिंह शाकाहारी ही थे। तीसरा भ्रम कि मांसाहारी अधिक दीर्घजीवी होते हैं, एक गलत धारणा है क्योंकि विभिन्न शोध निष्कर्षों में यह पाया गया है कि एक शाकाहारी व्यक्ति की आयु मांसाहारी व्यक्ति से अधिक होती है। चौथी भ्राँति मांसाहारियों ने यह फैला रखी है कि यदि विश्व में सब जगह मांसाहार के स्थान पर शाकाहार को अपना लिया गया तो गंभीर खाद्य संकट उत्पन्न हो जायेगा व पशुओं की संख्या अत्यधिक बढ़ जाएगी और मनुष्य का जीवन दूभर हो जाएगा। यह तर्क भी तथ्यों पर आधारित नहीं है। अकेले अमेरिका में अमरीकी पशु जितना अनाज या सोयाबीन खाते हैं उनसे लगभग एक अरब से भी अधिक लोगों का पेट भरा जा सकता है। अमेरिका में ९० प्रतिशत भूमि पशुओं के चारे हेतु प्रयोग में लाई जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने बुलेटिन में १६० ऐसी बीमारियों के नाम घोषित किये हैं जो मांसाहार के कारण फैलाती है। मांसाहारी लोग शाकाहारीयों की तुलना में अधिक बीमार देखे गए हैं। शाकाहारी भोजन आसानी से पच जाता है, उसमें रेशेदार पदार्थ होते हैं, जो पाचन प्रणाली को चुस्त—दुरूस्त रखते हैं और उसे कैंसर ग्रस्त होने से बचाते हैं।
आस्ट्रेलिया में किए गए एक शोध के परिणामों से यह तथ्य रेखािंकत हुआ है कि जो लोग शाकाहारी और संतुलित भोजन लेते हैं उनकी त्वचा अधिक अच्छी और चमकदार रहती है और वे अधिक वर्षों तक जवान और आकर्षक बने रहते हैं। उन्हें बुढ़ापा भी देर से आता है। मुंबई के हाफकिन संस्थान का कहना है कि अंडों के सेवन से बच्चों में अनेक रोग हो सकते हैं क्योंकि बच्चों का पाचन तंत्र इतना कमजोर और कोमल होता है कि वे अंडों को ठीक प्रकार से पचा नहीं पाते हैं। चिकित्सा विज्ञान की ख्यातिप्राप्त पत्रिका ‘‘लेनसेट’’ ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि ब्रिटेन और नार्वे में पक्षाघात का रोग उस मौसम में अधिक होता है।जब वहां हरी सब्जियों का अभाव होता है शाकाहार के विषय में व्यापक आयुर्वेदिक दृष्टि डालते हुए अनुभवी वैद्य सुरेश चतुर्वेदी का कथन है कि वस्तुत: शाकाहारी भोजन स्वयं में एक दवा है। आयुर्वेद में प्राकृतिक पदार्थों और शाकाहार को स्वस्थ जीवन का मूलाधार बताया गया है। मांसाहार सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, शारीरिक या मानसिक किसी भी दृष्टिकोण से उचित भोजन नहीं है। इससे हमारे तन व मन पर तो बुरा प्रभाव पड़ता ही है साथ ही पर्यावरण दूषित होता है व अनेक बीमारियां भी बढ़ती हैं।
शाकाहार का सीधा सा अर्थ है सादा—सीमित आहार, संयमित रहन—सहन, निश्छल, अहिंसामूलक जीवन और पूरे विश्व के साथ कुटुम्बवत व्यवहार । सात्विक जीवन शाकाहार का ही फल हो सकता है मांसाहार का नहीं। सत्य यही है कि शाकाहार एक करूणा मूलक जीवन शैली है जो प्रत्येक जीवधारी के सम्मान के प्रति गहन आस्था की द्योतक है। अत: इससे मनुष्य सहज ही सम्द्ध, शक्तिशाली एवं बहुमुखी प्रतिभा का धनी बनता है, साथ ही उसमें स्वत: ही सदगुणों एवं सद्वृत्तियों का विकास होता है। भारत में ८२ प्रतिशत लोग प्रतिदिन शाकाहार करते हैं । किसी भी धर्म ने मांसाहार को उचित नहीं ठहराया है। अत: शाकाहार धर्म सम्मत भी है। और स्वास्थ्य सम्मत भी , शाकाहार से ही विश्वशांति, सद्भाव और सौहार्द की स्थापना की जा सकती है। इसलिए मांसाहार से जितनी शीघ्र ही तौबा कर ली जाए, मानव जाति के लिए उतना ही कल्याणकारी और श्रेष्ठकर है। अब यह निर्णय हमें करना है कि हम शाकाहार को अपना सहचर बनाएँ या मांसाहार को जो न केवल अमानवीय है अपितु विश्व शांति के लिए भी खतरा है।