कामबाण से पीड़ित होकर विवाहिता स्त्री को छोड़कर अन्य स्त्रियों के पास जाना आना, उनके साथ रमण करना परस्त्री सेवन व्यसन है। इस परस्त्री सेवन में लंकाधिपति रावण प्रसिद्ध है। माता-पिता की आज्ञा से पालने वाले महापुरुष रामचन्द्र जी १४ वर्ष वनवास के लिए निकले। साथ में पत्नी सीता, भाई लक्ष्मण थे। परस्त्री के मोह में आसक्त होकर रावण सीता को छल से हरकर लंका ले गया। सीता को विषय भोगों के लिए बहुत मनाया पर शीलवती सीता दृढ़ थीं। रामचन्द्र जी से हनुमान जी ने सीताजी का पता लगाकर लंका पहुँचे। रावण को बहुत समझाया, सीता वापस कर दो। भाई विभीषण ने भी समझाया पर वह नहीं माना। अंत में भाई विभीषण भी राम की सेना में जा मिला। राम और रावण का घमासान युद्ध हुआ। अंत में रावण ने लक्ष्मण पर चक्ररत्न चला दिया। वह चक्ररत्न लक्ष्मण की प्रदक्षिणा देकर उनके हाथ में आ गया। उसी चक्ररत्न से लक्ष्मण ने रावण को मार दिया। वह मरकर नरक गया। वहाँ पर भयंकर दुखों को भोग रहा है। इस प्रकार रावण की बुद्धि परस्त्री के मोह में नष्ट हो गई थी। इस कारण हित के वचन भी उसे नहीं सुहाते थे। उसका तन-धन-जन सब नष्ट हो गया। अतएव बुद्धिमानों को परस्त्री को दूर से ही त्याग देना चाहिए। उन्हें मां, बहन, बेटी समझकर आदरपूर्वक व्यवहार करना चाहिए। पद्मपुराण में आचार्य रविसेन कहते हैं कि जिस दिन रावण की मृत्यु हुई, उसी दिन दोपहर बाद ही आचार्य अनंतवीर्य ५६ हजार आकाशगामी मुनियों के साथ लंका में आये। उसी रात्रि में अनंतवीर्य मुनि को केवलज्ञान हो गया। यदि २ घंटे पहले ये संघ आ जाता तो न युद्ध होता न रावण की मृत्यु होती। होनहार बड़ा बलवान है पुन: मंदोदरी ने गुरु से ४८ हजार महिलाओं के साथ दीक्षा ले ली। इसी तरह एक दृष्टांत और है- एक राजपुत्र सेठ की बहू को देखकर काम से व्यथित हुआ और दासी को भेजकर कहलवाया, वह सेठानी चतुर थी। उसने खबर दे दी कि १५ दिन के बाद तुम आ जाना, वह राजपुत्र १५ दिन के बाद आया, उसी १५ दिन के बीच सेठ की बहू ने क्या किया, रोज जुलाब लेती रही और एक मटके में शौच करती रही, १५ दिन के जुलाब दस्तों में वे अत्यन्त दुर्बल हो गई, हड्डियाँ झलकने लगीं, शरीर अत्यन्त कुरूप पीला पड़ गया। राजपुत्र जब आया, तब वह बहू को देखकर आश्चर्यचकित हुआ, ओह! मैंने तो तुमको किस रूप में देखा था। तो बहू बोलती है कि चकित मत होवो, हमारी आपसे बहुत प्रीति है आप चकित क्यों हो रहे हैं? जिस रूप पर आप मुग्ध थे, चलो! वह रूप हम तुम्हें दिखायें और तुम उस रूप का खूब भोग करो, बहू राजपुत्र को उस मटके के पास ले गई और खोलकर बताया कि इसमें भरा है, मेरा रूप, राजपुत्र शर्मिन्दा होकर वापस चला गया। अत: परस्त्री को दूर से ही त्याग कर देना चाहिए।