आपके दिलो—दिमाग में भर दिया गया है। मात्र कैरियर बनाना ही उच्चशिक्षा है। उच्च पदों पर आसीन कराने वाला ही ज्ञान है। जो सर्वत: ऐसा नहीं है। वर्तमान की शिक्षा इन्फार्मेशल टेक्नोलॉजी का एक पार्ट है। मस्तिष्क मात्र समग्र सूचनाओं का संग्रह केन्द्र है। जो जीवन के लिए अनुपयुक्त होने के कारण जीवन में उत्पात मचाता है। भाग दौड़ कराता है। नम्न से निम्न कार्य भी कराता है। अर्थाग्रह के सिवाय चरित्र निर्माण संस्कृति सृजन मानवीय सेवा भाव धर्म आस्था जागरण प्राणी सुरक्षा के विचार गौण हो जाते हैं सही ज्ञान मानवीय अहिंसा, सुसंस्कार, सुचरित्र हितकारी गुण वृद्धिकारक विचार,सद्गुणवृद्धि कारक विचार, परम्परा मैत्री कारक विचार यदि आप आत्मसात् कर लेते हैं। तो आप उस व्यक्ति से असंख्य गुणा श्रेष्ठ हैं जिसने बड़ी—बड़ी उच्चतम डिग्रीयां हासिल कर रखी हैं और उनके प्रमाण—पत्र लेकर सड़कों पर घूम रहा है। या घर की दीवारों पर लटका रखा है । वर्तमान में हमें उस शिक्षा की आवश्यकता है जिसके द्वारा विवेक जाग्रत होता है। विश्वमैत्री का भाव प्रगढता है। प्रझा का प्रकाश फैलता है। जिससे प्राणी मात्र की सेवा का भाव जन्मता है और चारित्र के पैरों पर खड़ा होता है। एक बात मेरी समझ में नहीं आती कि हमने यह धारणा बना ली कि शिक्षा में अग्रणीय प्रतिभाशाली डिग्रीधारियों को ही शिक्षित समझदार विवेकवान मान लिया है। राजा से लेकर रंक तक, विज्ञान से लेकर राजनीति तक, योगी से लेकर भोगी तक साक्षर से लेकर निराक्षर तक, प्राइमरी से लेकर कॉलेज तक, भौतिक पढ़ाई की ओर ही हमारा ध्यान गया है। घरों में जब बच्चा पढ़ता नहीं । तब बच्चों से माता पिता कहते है—
पढ़ोगे—लिखोगे तो बनोगे नवाब। खेलोगे कूदोगे तो होगे खराब।।
क्या मात्र भौतिक पढ़ाई ही सब कुछ है। बड़ी—बड़ी डिग्रीयां प्राप्त करने के बाद भी क्या आदमी सुधर गया है ? क्या उसकी धारणायें बदल गयी ? वह भला इंसान बन गया ? नहीं। बल्कि परमाणु बम बनाकर बहुत बड़ा वैज्ञानिक बन गया। दुनिया को मिटाने वाला नोबल पुरूस्कार पाने का हकदार बन गया। यह कैसा स्कूली ज्ञान है ? स्कूली ज्ञान ने हिंसक बनाया है अहिंसक नहीं। प्राण लेने वाला बनाया है जीवन देने वाला नहीं। हम विज्ञान पढ़ने की प्रेरणा तो देते हैं। मगर वीतरागी बनाने वाले वीतराग विज्ञान की शिक्षा नहीं देते हैं परमाणु बम बनाने की शिक्षा देते हैं ।किन्तु परमात्मा बनाने की नहीं। ग्रंथ रटने की प्रेरणा देते हैं मन की ग्रन्थि तोड़ने की नहीं। अन्य भाषा पढ़ने की बात करते हैं हित मित प्रिय आत्म—भाव नहीं। प्रतिवादी बनने की बातें करते हैं मगर संवादी बनने की नहीं। शिक्षित होने के बावजूद भी इंसान अतंस् में उतरने के योग्य तो नहीं बन सका अंतरंग में प्रसुप्त परमात्मा शक्ति को जगाने के योग्य नहीं बन सका। यह कैसा भौतिकज्ञान है। जो मंगलग्रह पर जाने की बात तो करता है मगर जीवन को मंगल बनाने की कला की बात नहीं करता। यह मत समझना कि मैं भौतिक शिक्षा की विरोधी हूं या भौतिक शिक्षा व्यर्थ है। मेरा कहने का तात्पर्य यह नहीं है। कहने का तात्पर्य है कि केरैक्टर रहित कैरियर अध्यात्म रहित शिक्षा आदमी के लिए खतरनाक है। अधूरा ज्ञान खतरनाक है। ज्ञान की महत्ता चारित्र आचरण के साथ है। अहिंसात्मक आचरण के साथ दी गई शिक्षा मंजिल तक लेकर जाती है। भौतिक शिक्षा उदर—पोषण आजीविका चलाने, सम्मान पाने हिंसक शस्त्र बनाने में सहायक है। मगर स्वयं में स्थित परमात्मा को जगाने में, परमात्मा की पात्रता को जगाने में यह कारण नहीं है। कैरियर जीवन का एक पक्ष है, एक पंख का पंक्षी है जो उड़ नहीं सकता मगर धरती पर घसीट सकता है। चल भी नहीं सकता।जीने में सहायक तो है मगर परमात्मा के योग्य जीवन बनाने में नहीं है। क्या कभी आपने सोचा है ? उच्च पद को पाने वाला अपने जीवन में उच्च विचारों में ही रहे यह जरूरी नहीं है। कक्षा में, परीक्षा में सर्वोच्च अंक पाने वाला जीवन में भी सर्वोच्च बना रहे, यह आवश्यक नहीं है और कक्षा में सबसे पीछे बैठने वाला तृतीय श्रेणी से पास हो यह भी नियामक नहीं है, या जीवन में सबसे पीछे रहे यह भी आवश्यक नहीं है। साक्षात्कार देने वालों की अंतिम पंक्ति में खड़ा परीक्षार्थी का चयन सिलेक्शन न हो यह भी संभव नहीं है। धीरुभाई अम्बानी बहुत ज्यादा पढ़े—लिखे नहीं थे। लेकिन उनके यहां उच्चतम अंक प्राप्त करने वाले काम कर रहे थे। अनपढ़ मंत्री का पीए सेव्रेट्री आईएएस कैटेगरी का व्यक्ति होता है। जीवन में शिक्षा कम और कार्य का अनुभव ज्यादा काम करता है। जीवन का सम्यक विकास चारित्र के सद्भाव में ही संभव है। संवाद की रेखा ही जीवन को मर्यादा में बांधकर सुरक्षित रखती है। आदमी का उज्ज्वल भविष्य चारित्र से ही बनता है। उज्ज्वल भविष्य स्कूली पुस्तकों और डिग्रियों के आश्रित नहीं हैं। शिक्षकों के भी हाथ में नहीं है। सदाचार के हाथों में है सुरक्षित है। इसलिए कहती हूं युवक—युवतियों को शिक्षा मंदिर के आंगन में कैरियार और कैरेक्टर में आकाश के नीचे खिलने—खुलने महकने दें। हम केवल परीक्षा में प्राप्तांकों को ही नहीं बल्कि पवित्र सदाचार को भी देखें तो अच्छा है। एक बात आपसे कहूं—जहां आप अच्छे बुरे के साथ अपना समय बिताते हैं। बस वहीं से आपका अच्छा बुरा भविष्य बनता है।इसलिए आपका भविष्य कार्यों पर निर्भर करता है। उसी से आपकी छवि बनती बिगड़ती है। इस जीवन की यात्रा में स्कूल कॉलेज की शिक्षा से जीवन का इतिहास नहीं बनता। बल्कि आपकी समझ आपके जीवन का हिस्सा बनती है। शिक्षकों—वैज्ञानिकों, राजनीतिज्ञों, माता—पिताओं को भी इस सूक्ष्मता का ज्ञान नहीं है। स्कूल कॉलेज की शिक्षा तो लौकिक जीवन के निर्वाह का साधन है ना कि जीवन विकास का साधन है। धर्म कार्य भी पुस्तकों से नहीं सीखा जाता ज्ञान, ध्यान और सदाचरण से जन्मता है। परिपक्व होता है। आपके मन में प्रश्न उठ सकता है कि आप स्कूली शिक्षा को इतनी हेय दृष्टि से क्यों देखते रहें हैं। मैं स्कूली शिक्षा को हेय दृष्टि से नहीं देख रही हूं बल्कि कैरेक्टर रहित कैरियर की कमी बता रही हूं। क्या कभी आपको ऐसा नहीं लगता इस यांत्रिक प्रतिस्पर्धा ने लाखों करोड़ों को बेरोजगार बना दिया है। अभाव में जीने वालों के बच्चे यदि मजदूरी करते हैं। तो सरकार उन्हें देश का कलंक कहती है। इधर उन्हें काम से रोकती है और उधर अभिनय के नाम पर नाजुक उम्र में टीवी बालकलाकारों को प्रोत्साहित करती है। नृत्य करने वाला अभिनय करने विषयों के आकर्षण में फसने वाले इन बालकों पर अंकुश क्यों नहीं लगाती ? एक कलाकार है। और एक मजदूर है, एक पैसा कमाकर इज्जत बचा रहा है, और एक टीवी शो देकर बाल उम्र में गलत संस्कार डाल रहा है। मेहनत मजदूरी करने वाला बालक देश का गौरव है? इसलिए कहती हूं भौतिक शिक्षा संस्कार नहीं, आजीविका आधार देती है, प्यार नहीं जीवन को तिरस्कार देती है। इसलिए कहती हूं शिक्षा का अर्थ केवल कैरियर बनाना ही नहीं है। अंतिम बात जरा सोचें— शिक्षा ने क्या दिया ? स्वतंत्रता नहीं स्वच्छन्दता दी।
सुसंस्कार ‘‘कुसंस्कार’’ दी। सद्गुणी नहीं दुर्गंणी बनाया।
मधुर व्यवहारी नहीं व्यसनी बनाया। धर्मप्रेमी नहीं अधर्म प्रेमी बनाया।