बादशाह अकबर के नवरत्नों में बीरबल सबसे अधिक बुद्धिमान था। उसकी अद्वितीय बुद्धिमत्ता के कारण सम्राट अकबर स्वयं भी बीरबल का बहुत आदर करते थे परन्तु कुछ दरबारी ऐसे भी थे जो बीरबल से ईष्र्या करते थे। उनमें से एक दरबारी अकबर की बेगम का भाई था। ईष्र्या की अग्नि में वह प्रतिपल जलाता रहता था।
वह उस अवसर की प्रतिक्षा में था कि कुछ ऐसा प्रसंग बने जिससे वह बीरबल को अपमानित कर सके। एक दिन बेगम का भाई उदास होकर अपनी बहन के पास आया । बेगम ने पूछा, ‘‘भैया! क्या बात है, आज तुम उदास दिखाई दे रहे हो?’’ वह बोला ‘‘ बहना! बड़े खेद की बात है कि मैं बादशाह अकबर की बेगम मलिका का भाई हूँ परन्तु इस दरबार में मेरा बिल्कुल भी आदर—सत्कार नहीं किया जाता।
’’ रानी ने सहानुभूति पूर्ण स्वर में पूछा, ‘‘ भाई! बादशाह अकबर की सभा में ऐसा क्यों होता है ?’’ वह बोला, ‘‘ बादशाह अकबर को सही पहचान नहीं है। तुम तो भली भाँति जानती हो कि मैं बीरबल से अधिक बुद्धिमान हूँ इसलिए राज दरबार में जो सम्मान बीरबल को दिया जाता है वह वास्तव में मुझे मिलना चाहिए।’’
भाई की दर्दपूर्ण बात सुनकर मलिका भी बड़ी दुखी हुई और उसने सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘भैया ! तू फिक्र मत कर। मै तुझे वचन देती हूँ कि बादशाह से विचार—विमर्श कर मैं तुझे बीरबल का सम्माननीय स्थान अवश्य दिलवाऊँगी।’’ एक दिन बेगम मलिका ने मौका देखकर बादशाह अकबर को उलाहला देते हुए कहा, ‘‘ आपने अकारण ही बीरबल को सिर पर चढ़ा रखा है जबकि उससे भी अधिक बुद्धिमान लोग आपके दरबार में मौजूद हैं ।’’
आगे अपनी बात पर आते हुए उसने कहा,‘‘ मेरा भाई भी तो बहुत बुद्धिमान है। अत: मैं चाहती हूँ कि बीरबल का जो आदरणीय स्थान है वह मेरे भाई को मिलना चाहिए।’’ इतना सुनते ही बादशाह अकबर भी बेगम की बात को समझ गये और उसके भाई के इशारे को भी जान गये।
अपने भावों को छिपाते हुए उन्होंने कहा, ‘‘ कल दरबार में इस विषय पर अवश्य विचार किया जायेगा।’’यह सुनकर मलिका बड़ी आश्वस्त हुई और शीघ्र ही अपने भाई को खुशखबरी देने पहुँच गई कि अब तेरा काम बहुत जल्दी बनने वाला है।
संयोग की बात थी, दूसरे दिन बीरबल अपनी अस्वस्थता के कारण राजसभा में उपस्थित न हो सके। बेगम का भाई जब दरबार में पहुँचा तो बादशाह अकबर ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘‘मैं आज तुम्हारी इच्छा के अनुसार तुम्हें बीरबल का सम्माननीय पद देना चाहता हूँ ।
शर्त सिर्फ इतनी है कि तुम्हें मेरे एक प्रश्न का उत्तर देना होगा।’’ बेगम मलिका के भाई ने डींग हाँकते हुए कहा, ‘‘ जहाँपनाह! आप मेरे से कोई भी प्रश्न पूछ सकते हैं।’’ बादशाह अकबर ने पूछा,‘‘ संसार में सबसे प्यारी वस्तु कौन सी है ?’’ प्रश्न सुनते ही उसके भाई के हाथों मानों तोते उड़ गये और वह नीची दृष्टि डालकर अपना सिर खुजलाने लगा। बादशाह तो भली भांति उसकी योग्यता को जानते थे फिर भी उन्होंने उसे सोचने के लिए एक अवसर दे दिया।
वह राजसभा से उठकर सीधा अपनी बहन मलिका के पास पहुँचा। वह तो बधाई देने के लिए कब से भाई की प्रतिक्षा कर रही थीं उसको देखते ही हर्षपूर्ण स्वर में उसने कहा, ‘‘ लो भैया! अब तो मानोगे कि बहन ने तुम्हारा काम कर दिया।‘‘ यह सुनते ही वह खींझकर बोला, ‘‘ तुमने मेरा काम कर दिया या मुझे मुसीबत में डाल दिया ?’’
दरबार की सारी बात बताकर उसने कहा, ‘‘ यदि मैं इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाया तो मेरी वर्तमान की नौकरी भी चली जायेगी।’’ यह सुनकर मलिका भी चिंतित हो गई। कुछ सोच—विचार कर उसने कहा, ‘‘भैया! तुम ऐसा करो, मुझसे चार घंटे के बाद मिलना मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर अवश्य खोज लाउँगी।’’
कुछ देर बाद मलिका ने एक नौकरानी का वेश धारण किया और राजमहल के पिछले रास्ते से बीरबल के घर पहुँच गई। बीरबल ने बेगम मलिका को इस वेष में देखा तो बहुत हैरान हुआ।
बेगम ने बड़े मीठे स्वर में कहा, ‘‘कल रात बादशाह के साथ मेरा विवाद हो गया। मैंने उस विवाद में यह कहा कि स्त्रियाँ भी बुद्धिमान होती हैं। इस बात पर उन्होंने कहा यदि ऐसा है तो मैं तुम्हारी परीक्षा लेना चाहता हूँ। उन्होंने मुझसे एक प्रश्न पूछा के संसार में सबसे प्यारी वस्तु कौन सी है? मुझे विश्वास है कि आपकी बुद्धि के खजाने में इस प्रश्न का उत्तर होगा।’’
बीरबल ने कहा, ‘‘संसार में सबसे प्यारी वस्तु स्वार्थ है’’ बेगम उत्तर पाकर खुश हो गई और राजमहल की ओर चल पड़ी। वह सोच रही थी कि आज मैंने बुद्धिमान बुद्धिमान बीरबल को भी मूर्ख बना दिया। दूसरे दिन बेगम का भाई दरबार में पहुँचा और अपनी सफाई पेश करते हुए बोला, ‘‘जहाँपना! कल दरबार से बाहर निकलते ही मुझे प्रश्न का उत्तर मिल गया था कि संसार में सबसे प्यारी वस्तु स्वार्थ है।’’
अकबर ने पूछा , ‘‘ वह कैसे ?’’ बादशाह का यह प्रश्न सुनते ही उसका सिर चकराने लगा और उसे दिन में तारे नजर आने लगे। अकबर ने उसे सोचने के लिए फिर एक दिन का अवसर दे दिया।
इस घटना की चर्चा बीरबल तक भी पहुँच गई जो अपनी अस्वस्थता के कारण उस दिन दरबार में उपस्थित नहीं हो सका था। बेगम मलिका ने अपने भाई की समस्या सुलझाने के लिए नौकरानी का वेश धारण किया और बीरबल के घर पहुँच गई।
भोलेपन का अभिनय करते हुए उसने अपने प्रश्न का उत्तर पूछा। बीरबल ने कहा,‘‘ इस ‘‘कैसे’’ का उत्तर तो मुझे भी ज्ञात नहीं है।’’ मलिका के बार—बार आग्रह करने पर बीरबल ने कहा, ‘‘यदि हुक्का पीते हुए मैं बगीचे की सैर करूँ तो शायद मुझे उत्तर मिल सकता है।’’ यह सुनकर बेगम ने कहा, ‘‘
आप अवश्य बगीचे में सैर कर आएं तब तक मैं आपकी प्रतीक्षा करूँगी।’’ बीरबल ने खेद प्रकट करते हुए कहा, ‘‘ आज हमारे सारे नौकर छुट्टी पर हैं। अत: हुक्का उठाने वाला कोई सेवक उपस्थित नहीं है।’’ बेगम ने सोचा, यूँ भी मैं दासी के कपड़ों में आई हूँ, घूँघट निकाल लूँगी तो मुझे कोई पहचानेगा भी नहीं।
थोड़े समय की ही तो बात है। अत: उसने कहा, ‘‘मैं स्वयं हुक्का उठाकर आपके पीछे बगीचे में चलती हूँ।’’ बीरबल बगीचे की ओर चल पड़ा और उसके पीछे बेगम सिर पर हुक्का उठाये चलने लगी। पसीने से उसका हाल—बेहाल हो रहा था। बगीचे में पहुँचकर बेगम ने घूँघट उठा लिया।
सामने से बादशाह अकबर आ रहे थे। वे बेगम को इस स्थिति में देख आगबबूला हो गए। दूसरे ही क्षण उन्होंने बीरबल को मारने के लिए म्यान ली।इस पर बीरबल ने कहा, ‘‘ हे महाबली ! ये आपके प्रश्न का उत्तर है। स्वार्थ की बदौलत आज बेगम का ये हाल है।’’ बादशाह अकबर को जब सत्य का पता चला तो बेगम मलिका का सिर लज्जा एवं अपराध से झुक गया।