सूर्य, प्रकृति और भोजन सूर्य प्रकाश में अल्ट्रावायलेट किरणें एवं इन्प्ररेड अदृश्य किरणें होती हैं जो वातावरण को सूक्ष्म जीवाणु रहित बनाती हैं। दिन में ऑक्सीजन की उपलब्धता (अवशोषण) अधिक होता है। सूर्य प्रकाश में विटामिन ‘डी’ का निर्माण होता है। सूर्य प्रकाश में भोजन के चायपचय प्रक्रिया में वृद्धि होती है। दिवा भोजन से खनिज पदार्थों के संश्लेषण में वृद्धि होती है। सूर्य प्रकाश में रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है।विज्ञान कितनी भी तरक्की क्यों न कर ले परन्तु वह प्रकृति के नियम और वस्तु के स्वभाव को नहीं बदल सकता। वह रात को दिन और दिन को रात में परिर्वितत नहीं कर सकता। रात्रि में कितना भी प्रकाश कर लो, परन्तु रात्रि का वातावरण तो रात्रि जैसा ही रहेगा। जैसे रात्रि में कुमुदिनी खिलेगी, कमल बंद होंगे, कीड़े—मकोड़े, कृत्रिम प्रकाश में आएंगे ही, प्रकृति में कार्बन डाइआक्साइड (सी. ओ.टू.) गैस की वृद्धि होगी ही और सूर्य में जो ऊर्जा प्रदान करने, आक्सीजन में वृद्धि करने, भोजन आदि पचाने की शक्ति और अन्य गुण धर्म पैदा करने वाले तत्व हैं वे सूर्य से ही मिलेंगे, चाँद तारों से नहीं। प्रकृति की हमारे ऊपर कितनी कृपा है उसको जानना और कथन करना आज के महान वैज्ञानिकों के द्वारा भी असंभव है। जिन्दगी और प्रकृति बिना एक मिनट भी जीवन टिक नहीं सकता। जैसे कि भोजन करना हमारे हाथों में है परन्तु उसका पाचन, श्वासोच्छ्वास और रक्त संचार आदि कर्म प्रकृति पर आधारित हैं। ‘‘द यूनिवर्स इन द लाइट ऑफ माडर्न फिजिक्स’’ पुस्तक में वैज्ञानिक प्लांक ने लिखा है कि सूर्य के बारे में जितना आज तक जाना, समझा है, वह उसकी तुलना में नगण्य है। प्राचीन ऋषियों ने परा विद्या द्वारा उसके सूक्ष्म रहस्यों को उद्घाटित किया था। उससे लाभान्वित होने के लिए ऐसे साधनों का अपनाया था जो अभी तक अवैज्ञानिक जैसा जान पड़ता था। परन्तु विज्ञान जैसे–जैसे सूक्ष्मता की ओर बढ़ रहा है, वैसे—वैसे ऋषियों की बात वैज्ञानिकता स्थापित करती जा रही है। भारतीय ऋषियों का प्रतिपादन सूक्ष्म विज्ञान पर आधारित रहा है। लगभग यही बात शरीर एवं भौतिक विज्ञान शास्त्री प्रोफेसर जॉर्ज लाखोवस्की अपनी रचना ‘‘लिग्राण्ड प्रॉबलम’’ में लिखते हैं कि सूर्य मंगल आदि समस्त ग्रह—उपग्रहों से आने वाली किरणें हमें निश्चित रूप से प्रभावित करती हैं। यह प्रभाव इतना सूक्ष्म होता है कि स्थूल यंत्रों के द्वारा पकड़ में नहीं आता। रात्रि भोजन त्याग उसी विज्ञान की एक कड़ी है। वैज्ञानिकों ने सूर्य की आरोग्यवर्धक क्षमता को स्वीकार करते हुए अभी कुछ अंशों में ग्रहण किया है। अभी बहुत कुछ शोध बाकी है। यदि दिवा भोजन पर सूर्य के प्रभाव से सम्बन्धित और अध्ययन किया जाए तो ज्ञात होगा कि बुद्धि विकास, मानसिक शक्ति और आरोग्य संवद्र्धन की उसमें इतनी महान् सामथ्र्य है कि उस दिवाभोजन को अपनाए जाने पर बड़े पैमाने पर बौद्धिक विकास और गरीबी को दूर किया जा सकता है। इसी संभावित बात को ‘‘अलैक्जैण्डर वैनन’’ चिकित्सा शास्त्री अपनी पुस्तक ‘‘दि इनविजीबल इन्फ्लूएन्स’’ में लिखते हैं कि ‘‘सूर्य में कुछ ऐसी अदृश्य किरणें हैं जिनके गुण धर्म और उपयोगिता को समझा जा सके, तो वरदान सिद्ध हो सकता है।’’ डॉ. एफ. प्रिवेल्ड कहते हैं कि यदि धूप का उपयोग ठीक प्रकार से किया जाए तो स्वास्थ्य में स्थिरता लाई जा सकती है। हृदय रोग विशेषज्ञ ‘‘डॉ. मार्शेल पोमेलोक्स’’ ने लिखा है कि ‘‘जब सूर्य मण्डल में तूफान आते हैं तब दिल के दौरे पड़ते हैं।’’ डॉ. सोनी ने अपना मत व्यक्त करते हुए कहा सूर्य केवल बाहरी चमड़ी पर ही असर नहीं डालता, बल्कि सभी पदार्थ सूर्य से ऊर्जा प्राप्त करते हैं और वह सूर्य ऊर्जा ही उन पदार्थों को पचाने में सहयोगी बनती है। इसलिए रात्रि का भोजन समीचीन रूप से नहीं पचता है। सूर्य के बिना पृथ्वी पर प्राणी का जीवन असंभव है। सूर्य सभी प्राणियों के लिए प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है। पेड़—पौधे भी एकेन्द्रिय प्राणी हैं वे अपनी शक्ति सूर्य से प्राप्त करते हैं। पेड़—पौधे प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया से अपना भोजन बनाते हैं। उन पेड़—पौधों से गाय, भैंस आदि जानवर तथा मनुष्य शक्ति प्राप्त करते हैं। पेड़—पौधों के समान अन्य प्राणी भी सूर्य से सीधी शक्ति प्राप्त करते हैं। अत: सूर्य स्वस्थता एवं जीवन शक्ति का भंडार है। फ्रांस के वैज्ञानिक डॉ. हॉकिन्स का कहना है कि ‘‘मनुष्य का शरीर एक ऐसा पुष्प है जिसे सूर्य प्रकाश की सबसे अधिक आवश्यकता है।’’ उन्होंने कुछ व्यक्तियों पर प्रयोग करके देखा, जैसे आधे व्यक्तियों को सफेद वस्त्र पहनाकर सूर्य प्रकाश में बैठाया और आधे व्यक्तियों को बिना वस्त्र के बैठाया। निष्कर्ष यह निकला कि वस्त्र रहित व्यक्तियों के वजन में वृद्धि पाई गई, कार्य करने की क्षमता और स्वास्थ्य लाभ भी अधिक पाया गया, पाचन और नींद अच्छी पायी गयी। इस प्रकार सूर्य की महिमा को ऋषि मुनियों ने ही व्याख्यायित नहीं किया, बल्कि आधुनिक वैज्ञानिक ने भी उसकी महिमा गायी है। वैज्ञानिकों की शृंखला में भौतिकविद् सर नारमल लाकयर एवं सर विलियम रैम्जे ने अपने अनुसंधानों के आधार पर रंगीन सूर्य रश्मियों में हीलियम तत्व की सबसे पहले खोज की थी। उसके बाद अनेक वैज्ञानिकों ने वर्ण क्रम मापी स्पेक्ट्रोस्कोप की सहायता से अब तक अनेक तत्व खोज निकले। विशेषज्ञों का कहना है कि सूर्य प्रकाश के पीले रंग में पारा आसमानी में एल्युमीनियम, हरे में सीसा, लाल में लोहा, नीले में तांबा नारंगी में सोना व बैंगनी में चाँदी का समावेश है। पीले रंग की किरणें तिल्ली, लीवर, फैफड़े एवं पाचन प्रणाली के लिए उपयुक्त मानी जाती है। हरा रंग पीयूष ग्रंथि को सबसे अधिक प्रभावित करता है इसलिए वमन (उल्टी) को रोकता है, मानसिक तनावों को दूर करता है और मांस पेशियों को सुदृढ़ बनाता है। आसमानी रंग चायपचय (मोटाबालिज्म) की प्रक्रिया को बढ़ाने में सहायक होता है, यह शरीर की अतिरिक्त गर्मी को कम करता है। नीला रंग भक्ति, प्रेम, अनुराग आदि शुभ भावनाओं को जागृत करता है। घ्राणेन्द्रिय, श्रोतेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय को स्वस्थ बनाए रखने में सहकारी है। यह पैराथायराइड ग्रन्थि को भी प्रभावित करता है। बैंगनी रंग सोडियम और पोटेशियम के संतुलन को बनाये रखता है। यह जीवन शक्ति बढ़ाने वाले ल्यूकोसाइट्स नामक रक्त कणों के निर्माण में सहयोगी है। यह मस्तिष्क की दुर्बलता में टॉनिक का कार्य करता है और मन का केन्द्रीकरण करता है। अत: शरीर में जिन खनिज तत्वों की कमी से जो रोग उत्पन्न हुआ हो उसे सूर्य किरणों से दूर किया जा सकता है। सूर्य प्रकाश में उत्पन्न हरी साग सब्जियाँ प्रयोग में लेने से शारीरिक और मानसिक कमजोरी दूर होती है क्योंकि पेड़—पौधे सूर्य के प्रकाश को ग्रहण करते हैं। डॉक्टर भी इसी कारण हरी साग सब्जी खाने के लिए प्रत्येक रोगी को कहते हैं। जो व्यक्ति दिन में भोजन करते हैं वे शारीरिक मानसिक आदि समस्त समस्याओं से दूर रहते हैं, जो रात्रि भोजन करते हैं और दिन में सूर्य प्रकाश में बिल्कुल भी नहीं रहते वे अनेक बीमारियों से घिरे रहते हैं। प्रकृति स्वयं कहती है कि किसी को रात्रि भोजन नहीं करना चाहिए जो प्रकृति से ही शाकाहारी हैं उन्हें रात्रि के अंधकार में दिखाई नहीं देता जब प्रकाश के बिना मनुष्य को दिखाई नहीं देता तब मनुष्य भी शाकाहारी और दिवा भोजी हैं। सूर्य से भोजन पचाने के लिए ऊष्मा और पदार्थों के अवलोकन करने के लिए प्रकाश ऊर्जा प्राप्त होती है। सूर्य पेड—पौधों को भोजन तैयार करने, पौष्टिक तत्व तैयार करने और हरा भरा रखने के लिए प्रकाश और ऊष्मा प्रदान करता है। फिर वे पेड—पौधे अन्य प्राणियों के जीवन चलाने, शुद्ध प्राण वायु, मलमूत्र आदि स्वयं ग्रहण कर प्रकृति को स्वच्छ संतुलित बनाये रखते हैं और समय—समय पर जल वृष्टि करने में सहयोगी होते हैं। वर्षाकाल में हमें इन्द्रधनुष के सात रंग दिखाई देते हैं। उससे लाल दिखने वाले स्पेक्ट्रम अर्थात् अदृश्य किरणें होती हैं। ये किरणें अनन्त काल से अपना कार्य कर रही हैं। परन्तु आधुनिक वैज्ञानिक डब्ल्यू रिटर ने सन् १८०१ में खोज की थी कि ये अल्ट्रावायलेट और इन्प्ररेड किरणें रासायनिक परिवर्तन के लिए अत्यन्त सक्रिय रहती हैं, इसलिए इन्हें क्रियाशील किरणें भी कहा जाता है। ये प्रकाश विद्युत प्रभाव उत्पन्न करती हैं, गैसों को आयनित करती हैं और कीटाणुओं को नष्ट करती हैं। यही कारण है कि दिन में सूर्य—किरणों की उपस्थिति में कोई जीवाणु उत्पन्न नहीं होते, कीट—पतंगे और मच्छर आदि भी बाहर नहीं निकलते परन्तु जहाँ सूर्य–किरणें नहीं पहुँचती वहाँ सूक्ष्य जीव, फफूद और कीड़े—मकोड़े आदि उत्पन्न होते हैं। दिन में उस स्थान पर बने रहते हैं और रात्रि में तो जीव स्वतन्त्र विचरण करने लगते हैं। इसलिए जैनधर्म में रात्रि को चलना, फिरना भोजन करना इत्यादि प्रवृत्यात्मक क्रियाओं का निषेध किया है। अल्ट्रावायलेट और इन्प्ररेड ये दोनों किरणें सूर्योदय के ४८ मिनट बाद प्रभावशील होती हैं। और सूर्यास्त के ४८ मिनट पूर्व ही पृथ्वी पर प्राय: प्रभावहीन हो जाती है। इसी कारण जैनाचार्यों ने कहा कि सूर्योदय के ४८ मिनट पश्चात् और सूर्यास्त के ४८ मिनट पूर्व भोजन करना चाहिए। प्राय: सभी जानते हैं कि पेड़—पौधों के फल मीठे होते हैं वे कार्बोहाइड्रेट, प्रोट्रीन, विटामिन्स और खनिज तत्व आदि से युक्त होते हैं। दिन में ऑक्सीजन और रात्रि में कार्बन डाइआक्साइड छोड़ते हैं, आखिर ऐसा क्यों ? क्या कोई उन्हें प्रोटीन विटामिन खिलाता है ? कार्बोहाइड्रेट (ग्लूकोज) के इंजेक्शन लगाता है ? नहीं। यह तो प्रकृति प्रदत्त बहिरंग कारक हवा, पानी और सूर्य प्रकाश की देन है, क्योंकि पौधे अंतरंग कारक हरितलवक के द्वारा दिन में सूर्य की प्रकाश ऊर्जा की उपस्थिति में वायुमंडलीय कार्बन डाईऑक्साइड एवं जड़ों से संचित पानी की सहायता से मीठे ग्लूकोज, प्रक्टोज और कार्बोहाइड्रेट, स्टार्च आदि कार्बनिक भोज्य पदार्थों का संश्लेषण करते हैं और ऑक्सीजन बाहर निकालते हैं, परन्तु रात्रि में एल्कोहल एवं कार्बन डाइआक्साइड बनाते हैं। बाद में एल्कोहल कार्बाहाइड्रट और स्टार्च में बदल जाती है। इसी कारण पेड़—पौधों के फलादि मीठे होते हैं, दिन में ऑक्सीजन और रात्रि में कार्बन डाईआक्साइड छोड़ते हैं। जैसे प्रकृति के होने वाले इन नियमों को वैज्ञानिक या ब्रह्मा भी नहीं बदल सकते वैसे ही हमारे शरीर में होने वाली पाचन क्रिया और रासायनिक परिवर्तनों को नहीं बदल सकते हैं। यद्यपि हमारा शरीर पेड़—पौधों की भाँति प्रकाश संश्लेषण की क्रिया तो नहीं करता, परन्तु यदि मनुष्य को शीर्षासन करा दिया जाय तो मस्तिष्क जड़ों का और शेष भाग तना व डालियों के समान हो जाता है। हमारा शरीर भी सूर्य ऊर्जा चाहता है उसकी असदृश्य किरणों का हमारे ऊपर प्रभाव पड़ता है। पौधों की भाँति रासायनिक परिवर्तन एन्जाइम एवं शरीर में स्थित बेक्टीरिया (जीवाणु) की सहायत से करता है क्योंकि जैसे पेड़—पौधों के भोजन को प्रभावित करने वाले अंतरंग और बहिरंग कारक होते हैं वैसे ही दोनों कारक हमारे शरीर में होते हैं। सूर्य प्रकाश दोनों के लिए बहिरंग कारक है। पेड़—पौधों की तरह हम सूर्य प्रकाश का पूरा उपयोग नहीं करते हैं इसलिए पूर्ण आरोग्यता को प्राप्त नहीं कर पाते हैं। प्राय: देखा जाता है कि जो रात्रि भोजन करते हैं वे सुबह सूर्योदय होने के एक दो घंटे बाद ही बिस्तर छोड़ पाते हैं। प्राय: शरीर में थकान सी बनी रहती है, सिर भारी रहता है, दिन में समय पर भूख नहीं लगती मुँह में छाले, कब्जियत और सिर दर्द की शिकायत बनी रहती है। रात्रि में दु:स्वप्न, इन्द्रियों में उत्तेजना, अधिक निद्रा, मानसिक तनाव रहता है आखिर ऐसा क्यों ? इसका कारण यह है कि दिन में शारीरिक श्रम और फेफड़ों का फूलना पर्याप्त होने से ऑक्सीजन का ग्रहण अधिक होता है, पाचन तंत्र अधिक क्रियाशील रहता है जिससे भोजन का पाचन शीघ्र होकर ग्लूकोज में बदल जाता है जिसे आँते सोख लेती हैं और शरीर में एक ताजगी महसूस होती है जैसे अशक्त (बेहोश) व्यक्ति को ग्लूकोज की बोतल चढ़ाने पर ताजगी होती है। जब कि रात्रि के समय भोजन करके शयन करने पर पर्याप्त श्वासोच्छवास की क्रिया नहीं हो पाती और पाचन क्रिया मंद पड़ जाने से भोजन बहुत समय तक आमाशय में पड़ा रहता है, जो इन्द्रियों में उत्तेजना, गैस, अपच, खट्टी डकार, हाथ पैरों में दुखाव, सिरदर्द, मूच्र्छा, शारीरिक बल में कमी, चेहरा निस्तेज और फैफड़ों में पानी भर जाने की भी संभावना बढ़ा देता है। मानव शरीर सूक्ष्म जीवों एवं रासायनों का पिटारा है। इसमें रेटिनॉल, थायमीइन, पेन्टोथेनिक एसिड, सोडियम एस कार्बेट, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन एवं एन्जाइम आदि रसायन रहते हैं और ग्रहण किए गए भोजन में स्थित रेटिनॉल, राइबोफ्लैविन, थायमीन, अमाइनो एसिड, एन्जाइम, विटामिन एवं प्रोटीन आदि के रसायन होते हैं वे एन्जाइम अथवा पाचक रसों की उपस्थिति में अभिक्रिया करके फैट, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, एन्जाइम आदि अनेक रासायनिक पदार्थों का निर्माण करते हैं। परन्तु रात्रि भोजन करने से शरीर में स्थित एन्जाइम एवं रासायनिक अभिक्रियाएँ पूर्ण गुणवत्ता से क्रियाशील नहीं होती हैं जबकि दिन में श्रम और सूर्य ऊर्जा के कारण शरीर का व वायु मंडल का तापमान रात्रि की अपेक्षा ज्यादा अर्थात् सामान्य ताप ३७ डिग्री (से. ग्रे.) के लगभग रहता है। इस तापमान पर हमारे शरीर में उपस्थित एन्जाइम एवं हारमोन्स आदि पूर्ण गुणवत्ता से क्रियाशील होते हैं जो स्वास्थ्य के अनुकूल होते हैं।
सूर्य और विद्युत प्रकाश में अंतर
कई लोगों के मन में प्रश्न होता है कि बिजली या दीपक के प्रकाश में भोजन बनाया और खाया जाए तो क्या अंतर पड़ता है ? इसका समाधान यह है कि बिजली या दीपक का प्रकाश कितना भी तेज क्यों न हो उसमें भोज्य पदार्थ अच्छी तरह से देखने में नहीं आते और इस कृत्रिम प्रकाश में सम्मूच्र्छन जीवों की उत्पत्ति उसी रंग की होती है जिस रंग के खाद्य पदार्थ होते हैं। उस प्रकाश में ऐसी शक्ति नहीं होती जिससे वे उन जीवों की उत्पत्ति को रोक सके परन्तु सूर्य प्रकाश में ऐसी शक्ति होती है जिससे उन जीवों की उत्पत्ति नहीं हो पाती है। रात्रि में दीपक या बिजली का प्रकाश होते ही चारों ओर कीड़े—मकोड़े मंडराने लगते हैं, जो गाड़ी चलाते हैं उन्होंने देखा होगा कि सूर्य अस्त होते ही शरीर पर अनेक कीड़े चिपक जाते हैं और गाड़ी के सामने आ जाते हैं जबकि सूर्य प्रकाश में कीड़े नहीं आते। ये बड़े—बड़े जीव जन्तु हमें दृष्टिगोचर होते हैं। परन्तु सूक्ष्म जीवाणु दृष्टिगोचर नहीं होते। रात्रि के समय कृत्रिम प्रकाश में अपनी सावधानी से वे कीड़े—मकोड़े भोजन में भले ही न गिरें या गिरने के बाद दिखाई न दें परन्तु सूक्ष्म जीवोत्पत्ति और उनकी िंहसा से कोई बच नहीं सकता इसलिए जैनाचार्यों ने अहिंसा धर्म की रक्षा के लिए रात्रि भोजन त्याज्य बताया है। सूर्य प्रकाश और विद्युत आदि प्रकाश में जो विशेष अंतर है वह यह है कि दिन में सूर्य का प्रकाश एक लाख लक्स के बराबर होता है और बादल छाये रहने पर भी दस हजार लक्स तो होता ही है। जबकि घरों में रात्रि के समय कृत्रिम प्रकाश सामान्यत: २०० से ५०० लक्स तक होता है। वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया है कि प्रकाश से हमारी ग्रंथियाँ प्रभावित होती हैं। जैसे अंधेरे में पिनियल ग्रंथि में से सूर्यास्त होने पर अंधेरा होते ही मैलाटोनिन नामक द्रव्य निकलकर रक्त प्रवाह में मिलता है जिससे शरीर सोने के लिए तैयार होता है। रक्तचाप एवं शरीर का ताप कम होता है, पित्त शांत एवं वायु में वृद्धि होती है। उन्हीं रासायनिक परिवर्तनों के कारण रात्रि में अचेत और दिन में सचेत रहते हैं क्योंकि दिन निकलते ही मैलाटोनिन द्रव्य का श्राव बन्द हो जाता है शयन से उसकी मात्रा कम हो जाती है। यदि कोई कृत्रिम प्रकाश द्वारा इस द्रव को धोखा देना चाहे तो असंभव है क्योंकि इसको प्रभावित करने के लिए कम से कम एक हजार लक्स प्रकाश की आवश्यकता होती है। जबकि कृत्रिम प्रकाश दो सौ से पांच सौ लक्स तक ही उपलब्ध होता है। यदि हम रात में भोजन करते हैं और शयन नहीं करते तो इसके दूरगामी परिणाम विपरीत पड़ते हैं। जैसे पाचन, एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी, दिन में आलस्य, आँखों में जलन, कैंसर, हृदय रोग, मानसिक असंतुलन और अकाल में वृद्धावस्था जैसे अनेक रोगों में वृद्धि होती है। पुराने समय में लोग दिन में काम और रात में आराम करते थे, इसलिए मनुष्य एवं प्रकृति में अच्छा तालमेल था परन्तु आधुनिक युग में प्रकृति के साथ तालमेल बिगड़ गया है। परिणाम स्वरूप जिन्दगी रोगमय, तनाव युक्त और बोझिल बन गई हैं इनसे मुक्त होने का सीधा सरल उपाय है रात्रि भोजन, डिब्बा बंद भोजन, गुटखा, पान—सुपाड़ी, चाकलेट, शराब, तम्बाकू, स्मैक आदि का त्याग करके त्याग, संयम और प्रकृति के नियमानुसार आध्यात्मिक जीवन जीना।