एक सुंदर शहर , जिसे धर्मनगरी नाम से भी जानते थे। उस धर्मनगरी में एक सुंदर जिनमंदिर था। जिनमंदिर में श्रावक का आना जाना स्वाभाविक है, और मंदिर में मुनिराज आये तो सोनें पे सुहागा। मंदिर में मुनिराज प्रवचन दे रहे थे इसलिए मंदिर में श्रावकों की भीड़ थी। मंदिर के अंदर प्रवचन चल रहा था, और बाहर रास्ते से एक गाय अपने बछड़े के साथ जा रही थी।
गाय जैसे ही मंदिर के पास आई तो मुनिराज कि आवाज सुनकर रूक गयी और मंदिर की तरफ देखनें लगी। उसका बछड़ा कभी मंदिर को देखता था तो कभी अपनी माँ के मुख को। आखिर उसने गाय से कहा, ‘‘माँ रूक क्यों गयी ? चलो ना ! मुझे घास खानी है। बहुत भूख लगी है।’’
फिर गाय कहने लगी, ‘बेटा थोड़ा रूक जा ये जिन मुनि हैं, जो सच्चा मार्ग बताते है, माँ की बात सुनकर बछड़े ने मुनिराज को देखा फिर उसकी नजर प्रवचन सुनने वाले श्रावकों पर गयी। उसके बाद उसने मंदिर के बाहर देखा और अपनी माँ की तरफ देखकर उसने माँ से पूछा, माँ मंदिर में सब सुनने वाले भी जैन हैं क्या ?
हाँ बेटा वे सब जैन हैं। मंदिर के बाहर ये दरवाजे के उपर क्या लिखा है माँ ? बेटा ये अहिंसा परमो धर्म लिखा है। ये सुनकर बछड़े के आँखों में आँसु आये और उसने माँ से कहा— माँ ये सब सुननें वाले जैन है, ये सब अहिंसा वादी है। ये कभी हिंसा नहीं करते तो ये सब झूठ है माँ। ये सब झूठ है!‘‘
ये कह कर वो जोर—जोर से रोने लगा!’’ क्या बात है बेटा, क्यों रो रहे हो ? तुम इतने दु:खी क्यों हो रहे हो?’’ ‘‘ दुख तो इस बात का है माँ अगर ये सब अहिंसक है तो, मंदिर के बाहर जो जूते चप्पल हैं, वो तो आधे से ज्यादा चमड़े के है माँ । ‘‘’ मैं इतना भोला भी नहीं हूँ माँ जो अपने सगों कि चमड़ी भी पहचान न कर सकू माँ उस दिन उस बैल को जिसे हम सर्जा काका कहते थे, एक लुंगीवाला आदमी खिंचकर ले जा रहा था। तो तुम तडपकर रो रही थी।
विलाप कर रही थीं। सच बोलो माँ ‘ ये सामनें पडे जुते उसी के चमड़े के हैं ना ? कितनें तड़प— तड़पकर मरे होंगे सर्जा काका ! कितना रक्तपात हुआ होगा, जब उन्हें काटकर मारा होगा, रोज हमारे कितने सगे संबंधियों को काटकर मार दिया जाता है और उनके चमड़ीयों से ये अपने पैरों कि शोभा बढ़ाते हैं ’ ये कैसे जैन है! ये कैसे अहिंसक हैं माँ ?
मंदिर और स्थानक के बाहर तो आधे से ज्यादा चमड़े के जूते— चप्पल होते हैं और ये अपने आपको श्रावक कहते हैं? यह तो सामायिक करते हैं, प्रतिक्रमण करते हैं। और फिर भी चमड़े के जूते पहनकर चलते हैं। यह प्रतिक्रमण नहीं है माँ, यह तो हमारे जीवन पर अतिक्रमण है माँ ‘ ये कैसे श्रावक है माँ जो तुम्हें गोमाता कहते हैं और तेरी ही चमडे को पैरोतले रोंदते हैं, बस अंत में इतना ही कहूंगा माँ कि ये जिनेन्द्र भगवान इनका कल्याण करें और मैं भी इन्हें क्षमा करता हूँ। ‘‘ बेटा तुम सब जानते हुए भी इनके प्रति क्षमा कर रहे हो’’ हाँ माँ क्योंकि शिखर के उपर जो लिखा है वह मैने पढ़ लिया है माँ ‘क्षमा वीरस्य भूषणम् ’ और मैं वीर बनना चाहता हूँ माँ ।
’ उपर शिखर के पास एक और मुनिराज थे जो गाय और उसके बछड़े का भावुक वार्तालाप सुन रहे थे। उन्होंने पिछी उठाकर बछड़े से कहा ‘‘ ये भव्य जीव तेरा कल्याण हो। तेरा कल्याण हो।’’ यह आशिर्वाद वचन सुनकर पास खड़े श्रावक ने मुनिराज से पूछा, ‘‘ हे मुनिराज उस गाय और बछड़े में ऐसी कौनसी बात हुई । जिस बात से आप जैसे मुनिराज भी भावुक हो गये’ मुनिराज ने कहा,