इतनी आयु तो न थी कि वह परलोक वासी हो जाए पर काल के आगे किसी का जोर नहीं। पति और दो लड़कों को छोड़ वह इस संसार से कूच कर गई। दोनों लड़के पिता के पास रहने लगे। पिता एक छोटी सी दुकान चलाते थे। लड़के सयाने हुए तो उन्हें लगता कि दिन पर दिन खर्च बढ़ रहा है, दुकान में आमदनी इतनी नहीं है। दोनों ने नौकरी की ठानी और दोनों अलग—अलग कारखानों में नौकर हो गये। दुकान बन्द कर दी गयी। नौकरी लग गई तो दोनों की शादी हो गई पर क्या, बूढ़े बाप को जहां सुख—सुविधाएं और आदर सम्मान की जरूरत थी, वहां बहुओं के लड़ाई झगडों ने परेशान कर दिया। लड़ाई में लड़के भी अपनी—अपनी पत्नियों की ओर हो लिए, बस फिर तो महाभारत में क्या कसर रहती। बाप को खाना कौन खिलाये इस बात पर झगड़ा बढ़ा और जब लड़ते—लड़ते थक गए तो दोनों इस बात पर राजी हो गये कि पहले १५ दिन बड़ा लड़का खिलाये तथा बाद में १५ दिन दूसरा लड़का। हिन्दी तिथि में तो घट—बढ़ चलती है अत: कुछ दिन बाद अंग्रेजी तारीख से हिसाब जमाया। पहले १५ दिन बड़े ने खिला दिया। अगले १५ दिन छोटे ने,पर जब ३१ तारीख आई तो दोनों मुकर गये। बेचारे बूढ़े बाप ने अपने द्वारा बेटों पर किए गए अहसान का बदला उपवास कर तथा ‘कलह युग’ (कलियुग) का प्रभाव मानकर संतोष कर लिया।