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प्रमाण—नय—निक्षेप :!
November 29, 2015
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[[श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार]] [[ श्रेणी:सूक्तियां ]] ==
प्रमाण—नय—निक्षेप :
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यो न प्रमाण—नयाभ्याम् , निक्षेपेण निरीक्षते अर्थम्। तस्यायुक्तं युक्तं, युक्तमयुक्तं च प्रतिभाति।।
—समणसुत्त : ३२
जो प्रमाण, नय और निक्षेप के द्वारा अर्थ का बोध नहीं करता, उसे अयुक्त, युक्त तथा युक्त, अयुक्त प्रतीत होता है।
ज्ञानं भवति प्रमाणं, नयोऽपि ज्ञातु: हृदयभावार्थ:। निक्षेपोऽपि उपाय:, युक्त्या अर्थ-प्रतिग्रहणम्।।
—समणसुत्त : ३३
ज्ञान प्रमाण है। ज्ञाता का हृदयगत अभिप्राय नय है, जानने के उपायों को निक्षेप कहते हैं। इस तरह युक्तिपूर्वक अर्थ ग्रहण करना चाहिए।
तस्मात् सर्वेऽपि नया:, मिथ्यादृष्टय: स्वपक्षप्रतिबद्धा। अन्योन्यनिश्रिता: पुन:, भवन्ति सम्यक्त्वसद्भावा:।।
—समणसुत्त : ४३
अत: समझना चाहिए कि अपने—अपने पक्ष का आग्रह रखने वाले सभी नय मिथ्या हैं और परस्पर सापेक्ष होने से वे सम्यक् भाव को प्राप्त हो जाते हैं।
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