हस्तिनापुर से मांगीतुंगी ऐतिहासिक मंगल विहार की स्वर्ण गाथा
दिव्यशक्ति गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की हस्तिनापुर से मांगीतुंगी ऐतिहासिक मंगल विहार की स्वर्ण गाथा
‘‘गोपाचल-ग्वालियर, सोनागिरी, चांदखेड़ी, बावनगजा आदि तीर्थ वंदनाओं से पवित्र १६११ किमी. की एक बेमिसाल एवं अविस्मरणीय यात्रा का वर्णन’’
प्रिय बंधुओं!
जिस तरह मांगीतुंगी तीर्थ पर दिगम्बर जैन समाज की दुनिया में सबसे ऊँची भगवान ऋषभदेव प्रतिमा का निर्माणकार्य अनूठा और ऐतिहासिक है। जिस तरह १०८ पुâट विशाल भगवान ऋषभदेव के पंचकल्याणक प्रतिष्ठा एवं महामस्तकाभिषेक का अंतर्राष्ट्रीय महोत्सव विश्व का सबसे बड़ा महोत्सव है। जिस प्रकार मांगीतुंगीसिद्धक्षेत्र ९९ करोड़ महामुनियों की निर्वाणभूमि होने से अत्यन्त महान है। ठीक इसी प्रकार सर्वप्रथम जैन समाज की सर्वोच्च साध्वी, वर्तमान में सर्वप्राचीन दीक्षित तथा अपनी दीर्घ तपस्या से जिनकी आत्मा का रोम-रोम पवित्र है, उनका इस समाज को साक्षात् दर्शन होना, यह भी जैन संस्कृति के लिए एक महान प्रताप है, फिर इसके बाद ऐसी महान साधिका, ८१ वर्षीय परमपूज्य गणिनीप्रमुख आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी का हस्तिनापुर जैसे दूरगामी क्षेत्र से मंगल विहार होकर मांगीतुंगीसिद्धक्षेत्र में पदार्पण होना यह भी इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों का एक प्रथम पृष्ठ है, जो पूज्य माताजी की लगभग १६०० किमी. की विशाल विहार-यात्रा कुशलता और धर्मप्रभावना के साथ सम्पन्न हुई है।
आइये एक प्रयास करते हैं उन सभी बंधुओं के लिए जिन्होंने पूज्य माताजी के मंगल विहार की इन स्वर्णिम कड़ियों को स्वयं अपनी आँखों से नहीं देखा या वे साक्षात् विहार में भाग लेने का पुण्य प्राप्त न कर सके, उन सभी के लिए शब्दों के माध्यम से इन कड़ियों को पिरोने का एक संक्षिप्त उपक्रम आपके समक्ष है।
१७ मार्च की वह शुभ तिथि थी, चैत्र वदी द्वादशी, जब पूज्य माताजी का मंगल विहार मध्यान्ह २.३० बजे भगवान शांति-कुंथु-अरहनाथ के ४-४ कल्याणकों से पवित्र हस्तिनापुर–जम्बूद्वीप तीर्थ से तेरहद्वीप रचना के भगवन्तों तथा कमल मंदिर के भगवान महावीर स्वामी का दर्शन करके प्रारंभ हुआ।
प्रथम दिन मात्र ४ किमी. की यात्रा करके नजदीक ही गणेशपुर के जिनमंदिर तक पूज्य माताजी का पदार्पण हुआ। इस समय संघपति श्री प्रमोद कासलीवाल-सौ. सुनीता कासलीवाल तथा उनकी सुपुत्रियाँ नमिता व अंकिता-औरंगाबाद (महा.) ने अपने हाथों में केशरिया ध्वज थामकर पूज्य माताजी का विहार प्रारंभ कराया। संघ के प्रमुख संचालक पीठाधीश स्वस्तिश्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामीजी एवं उनके साथ जीवन प्रकाश जैन व विजय जैन भगवान शांतिनाथ की प्रतिमा को साथ लेकर ऐरावत हाथी पर सवार हुए और संघ की ब्रह्मचारिणी बहनों के हाथ में चक्रेश्वरी माता, गोमुख देव, सरस्वती माता और लक्ष्मी माता की प्रतिमाएं विद्यमान थीं।
भक्तों की खुशियों का पार नहीं था और दूसरी तरफ भावुकता भी बेसब्र हो रही थी, जिससे सभी के अश्रुपात थोड़ी खुशी और थोड़े गम को प्रदर्शित कर रहे थे। दु:ख भी हर्ष और भक्तिपूर्वक ही था, क्योंकि पूज्य माताजी द्वारा ८१ वर्ष की इस उम्र में अति साहसपूर्वक इतनी लम्बी-विशाल यात्रा का निर्णय सफल हो रहा था। सभी भक्तों और साधुसंघ के कदमों की चाप बैण्ड-बाजों की गजब धुन के साथ रत्नवृष्टि, पुष्पवृष्टि, सरसों क्षेपण और भावविभोर हुए भक्तों द्वारा धनवृष्टि के साथ चुपचाप बढ़ चली और कभी खुशी कभी गम वाले भावों को लेकर हर व्यक्ति के मन में एक ही मनोकामना थी कि पूज्य माताजी अत्यन्त स्वस्थता के साथ हस्तिनापुर से मांगीतुंगी तक शीघ्र और सफलतापूर्वक पहुँच जाएं। मंगल विहार के इन क्षणों में पूज्य माताजी के समक्ष आया एक गाय का सुन्दर बछड़ा भी उछल-उछलकर और हंस-हंसकर पूज्य माताजी का अभिवादन करते हुए शुभेच्छा ही अभिव्यक्त कर रहा था, ऐसा वहां हर व्यक्ति ने महसूस किया था।
इस अवसर पर समाज के अनेकों श्रेष्ठी बंधुजन और हजारों की संख्या में भक्तों का अपार समूह ऐतिहासिक मंगल विहार की झलक को प्रदर्शित कर रहा था। ये क्षण ठीक वैसे ही प्रतीत हो रहे थे, जब सन् १९२८ में बीसवीं सदी के प्रथम आचार्य चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज ने कोल्हापुर (महा.) से उत्तर भारत की ओर सम्मेदशिखर जी तक के लिए विशाल यात्रा का सूत्रपात किया था।
आचार्यश्री के द्वारा की गई उस यात्रा के उपरांत ही उत्तर भारत में भी जिनेन्द्र भगवान के लघुनंदन मुनिवरों का आवागमन और भक्तों को मुनियों का दर्शन सुलभ हुआ था तथा पूरे भारत वर्ष में दिगम्बर जैन मुनि की वास्तविकता का परिचय उस अंग्रेज शासन में भी हुआ था। ऐसा ही वृत्तांत उन्हीं आचार्य शांतिसागर जी महाराज के प्रथम पट्टशिष्य आचार्य श्री वीरसागर जी महाराज से दीक्षित महान तपस्विनी साध्वी परमपूज्य गणिनीप्रमुख आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी के इस मंगल विहार में प्रतीत हो रहा था। क्योंकि ये विहार अब उत्तर भारत से दक्षिण भारत की ओर था, जिससे यह सिद्ध हो रहा था कि आचार्यश्री शांतिसागर जी महाराज द्वारा उस समय जगाया गया अलख आज पूरे भारत वर्ष को जगमग कर रहा है, जिसका यह प्रताप है कि सर्वोच्च जैन साध्वी गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी का मंगल विहार अब उत्तर भारत से विशाल लवाजमे के साथ दक्षिण भारत की ओर हो रहा है।
तो यह विहार पूज्य माताजी की त्याग-तपस्या, जैन संस्कृति पर उनके महान उपकार तथा उनकी वयोवृद्ध अवस्था के साथ ही इसलिए भी महत्वपूर्ण हो गया था, क्योंकि वे आचार्यश्री शांतिसागर जी महाराज की परम्परा की एक मात्र महान शिष्या हैं, जो अपने कदम विश्व की सबसे ऊँची दिगम्बर जैन प्रतिमा अर्थात् मांगीतुंगीसिद्धक्षेत्र में निर्मित १०८ फुट विशालकाय भगवान ऋषभदेव महाजिनबिम्ब के महाअनुष्ठान हेतु प्रवर्तित कर रही हैं।
इस प्रकार इस स्वर्णिम तिथि के इन स्वर्णिम क्षणों में पूज्य माताजी का मंगल विहार प्रारंभ हुआ और उत्तरप्रदेश शासन द्वारा पूज्य माताजी के प्रति राजकीय अतिथि के रूप में हस्तिनापुर से लेकर विहार मार्ग पर उत्तरप्रदेश की अंतिम बॉर्डर अर्थात् आगरा के उपरांत ‘रोहता’ व ‘बाद’ तक दो जीप में महिला व पुरुष पुलिस बल के साथ सम्मान स्वरूप अपनी सेवाएं प्रदान की गर्इं।
right]]उत्तरप्रदेश में पूज्य माताजी का मंगल विहार गणेशपुर के उपरांत मवाना, परिक्षितगढ़, हापुड़, गुलावटी, बुलंदशहर, खुर्जा, रुकनपुर, अलीगढ़, सासनी, हाथरस होते हुए आगरा की तरफ हुआ। पूज्य माताजी संघ का ६ अप्रैल २०१५ को हरिपर्वत (आगरा) में प्रवेश हुआ, जहाँ ३ दिन पूज्य माताजी के सान्निध्य में विशाल संभाएं हुर्इं और भक्तों ने बढ़-चढ़कर पूज्य माताजी का अभिवादन करते हुए उनका खूब आशीर्वाद प्राप्त किया। यहाँ पर पूज्य माताजी का स्वास्थ्य कुछ गड़बड़ हो जाने से उन्होंने अतिरिक्त प्रवास किया, इसको देखकर सभी के मन में कुछ चिन्ता भी व्याप्त हो गई लेकिन भगवान के आशीर्वाद से पुन: पूज्य माताजी का नरम-गरम स्वास्थ के साथ विहार हुआ।
इसके उपरांत थोड़ा सा राजस्थान में प्रवेश हुआ और बरेठा, मनियां होते हुए धौलपुर में पूज्य माताजी का प्रवेश हुआ, जहां पुन: आचार्यश्री शांतिसागर जी महाराज की यादें ताजा हुर्इं, क्योंकि इसी धौलपुर स्टेट में आचार्यश्री के संघ ने एक प्रतिकूल परिस्थिति का सामना करते हुए अत्यन्त धैर्यता और क्षमाभाव के साथ उस उपसर्ग पर विजय प्राप्त की थी। धौलपुर के उपरांत मध्यप्रदेश में संघ का प्रवेश हुआ और सिकरोदा होते हुए संघ १४ अप्रैल २०१५ को पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर मोरेना में पहुँचा। यहाँ पर मोरेना गुरुकुल के प्राचीन दिग्गज विद्वानों को याद करते हुए मंदिर का एवं गुरुकुल का अवलोकन किया गया और विशाल सभा के साथ भक्तों ने पुण्यलाभ अर्जित किया।
left]]गोपाचल-ग्वालियर-पश्चात् १८ अप्रैल २०१५ को संघ ग्वालियर शहर के विनयनगर में पहुँचा, जहाँ अति उल्लास के साथ सम्पूर्ण ग्वालियर जैन समाज ने पूज्य माताजी ससंघ का प्रवेश कराया। ग्वालियर में लगभग १५ दिन तक प्रवास हुआ क्योंकि यहाँ पर लम्बे समय से भगवान पार्श्वनाथ जी की सवा १३ फुट उत्तुंग विशाल प्रतिमा का पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव प्रतीक्षारत था। समस्त समाज को यह विश्वास था कि पूज्य माताजी के आगमन पर इस प्रतिमा का पंचकल्याणक अवश्य सम्पन्न होकर यथोचित सम्मान के साथ भगवान पूज्यनीय बन जायेंगे और ऐसा ही हुआ, पूज्य माताजी के आगमन पर समाज की इन भावनाओं को अवश्य ही आकार मिला व विनयनगर स्थित आर.जी.वी.टी. कॉलेज में २६ अप्रैल को भगवान पार्श्वनाथपंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव का झण्डारोहण हुआ व २७ अप्रैल से लेकर १ मई २०१५ तक यह प्रतिष्ठा सानंद सम्पन्न हुई। अत्यन्त प्रभावना के साथ भगवान पार्श्वनाथ की यह प्रतिमा विनयनगर मेनरोड पर स्थित जिनमंदिर के प्रांगण में विराजमान की गई, जिसके दर्शन करके आज भी प्रतिदिन हजारों की संख्या में सड़क से निकलने वाले राहगीर तथा जैन श्रद्धालुजन पुण्यार्जन करते हैं।
सोनागिरि सिद्धक्षेत्र-ग्वालियर के उपरांत टेकनपुर, डबरा होते हुए पूज्य माताजी ७ मई को सिद्धक्षेत्र सोनागिरी में पहुँचीं। पूज्य माताजी के मन की यह एक पुरानी अभिलाषा थी, क्योंकि उन्होंने सोनागिरी का दर्शन कभी बचपन में किया था, लेकिन पुन: उनकी सोनागिरी वंदना की यह भावना सफल हुई और मांगीतुंगी तीर्थ के निमित्त से सोनागिरि में भी माताजी ने १०८ विशाल जिनमंदिरों का दर्शन करके अपनी आत्मा को पवित्र किया। लेकिन अधिक शारीरिक श्रम के साथ पूज्य माताजी का पुन: स्वास्थ्य गड़बड़ हो गया और उनको पसलियों में काफी दर्द रहा, जिसके कारण सोनागिरि से आगे विहार की निर्धारित तिथि १३ मई को बढ़ाकर २० मई करना पड़ा। इस समय पुन: सभी के मन में चिंता व्याप्त हो गई थी क्योंंकि भीषण गर्मी का दौर चल रहा था और मध्यप्रदेश का यह पथरीला इलाका था, जहाँ गर्मी की पराकाष्ठा थी। ग्वालियर में भी गर्मी बहुत रही पुन: सोनागिरि आकर भी यहाँ गर्मी की वजह से सभी को विहार में अत्यन्त कठिनता हुई। इस प्रकार सभी परिस्थितियों से जूझते-सुलझते हुए पूज्यश्री का स्वास्थ्य कुछ सुधार की ओर हुआ और इसी मध्य १७ मई को सोनागिरि में इंदौर से मांगीतुंगी के संदर्भ में नवनिर्मित एक रथ का आगमन हुआ। पूज्य माताजी के करकमलों से ‘‘भगवान ऋषभदेव मस्तकाभिषेक विश्वशांति कलश यात्रा रथ मांगीतुंगी’’ का उद्घाटन कराया गया। इस अवसर पर भी दिल्ली, मुरादाबाद, मेरठ आदि अनेक स्थानों से श्रेष्ठी भक्तों व संस्थान के पदाधिकारियों ने उपस्थित होकर रथ का पूजन सम्पन्न किया और पूज्य माताजी ने रथ में बने मंगल कलश पर स्वस्तिक बनाकर रथ प्रवर्तन की सफलता हेतु आशीर्वाद प्रदान किया।
right]]इसके उपरांत २० मई को सोनागिरि से संघ का पुन: आगे की ओर विहार हुआ और छत्ता, समोहा, करैरा होते हुए २७ मई को शिवपुरी (म.प्र.) में पूज्य माताजी का भव्य मंगल प्रवेश हुआ। यहाँ आदिनाथ जिनालय में सर्वप्रथम सभा हुई पश्चात् महावीर जिनालय में संघ का प्रवेश एवं प्रवास रहा। शिवपुरी समाज में अत्यन्त उल्लास के साथ संघ का नगर के विभिन्न मंदिरों में भी भ्रमण हुआ और धर्मप्रभावना के साथ ३० मई को शिवपुरी से विहार होकर अतिशय क्षेत्र सेसई के उपरांत राजस्थान बॉर्डर में प्रवेश करते हुए नाका कोटा व देवरी के मार्ग पर किशनगंज होते हुए ७ जून को बारां (राज.) में संघ का प्रवेश हुआ।
left]]चांदखेड़ी अतिशय क्षेत्र-बारां से आगे १० जून को पूज्य माताजी का प्रवेश चांदखेड़ी अतिशय क्षेत्र में हुआ। यहाँ भगवन्तों का दर्शन करके पूज्य माताजी आनंदित हुर्इं तथा वहाँ हुए विकास कार्य को देखकर जहाँ मन में प्रसन्नता हुई, वहीं कुछ वर्ष पूर्व तक भगवान आदिनाथ के गर्भगृह में विराजित उनके शासन देव-देवी गोमुख देव-चक्रेश्वरी देवी को नहीं देखकर अर्थात् उन्हें हटा दिया गया है, यह जानकर उन्हें अत्यन्त दु:ख भी हुआ। प्राचीनकाल से संरक्षित जैन पुरातत्त्व को नष्ट करने का यह दुष्प्रयास बहुत ही चिन्तनीय है। पूज्य माताजी ने आगम सम्मत प्रमाणों के आधार पर हम सभी को यह बताया है कि तिलोयपण्णत्ती जैसे महान प्राचीन ग्रंथ में श्रीयतिवृषभाचार्य ने चौबीसों तीर्थंकरों के शासन देव-देवियों का वर्णन करते हुए उन्हें सम्यग्दृष्टि लिखा है और सभी भगवान के समवसरण में वे शासन देव-देवी विद्यमान रहते हैं। देखो! बड़वानी-बावनगजा में चतुर्थकाल की निर्मित ८४ फुट उत्तुंंग ऋषभदेव प्रतिमा के आजू-बाजू में गोमुखदेव-चक्रेश्वरी देवी की प्रतिमा स्थापित होना इसका सबल प्रमाण है। अत: आर्षपरम्परा के संरक्षण हेतु भारतवर्षीय तीर्थक्षेत्र कमेटी एवं स्थानीय तीर्थों की कमेटियों को प्राचीन परम्पराओं में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं करना चाहिए। इसके उपरांत १२ जून को झालरापाटन में भगवान शांतिनाथ जी के अत्यन्त सुन्दर मंदिर में भी प्रवेश करके वहाँ २ दिन का प्रवास हुआ। १४ जून को झालरापाटन से रायपुर, कालीतलाई, डेहरिया होते हुए १६ जून को पूज्य माताजी त्रिमूर्ति तीर्थ सुसनेर (म.प्र.) में पहुँची। यहाँ पूज्य माताजी के संघ आगमन की खुशी में तीर्थ के प्रेरणास्रोत आचार्यश्री दर्शनसागर जी महाराज इंदौर से विहार करके सुसनेर पहुँच चुके थे और उन्होंने पूज्य माताजी की सम्मानपूर्वक अगवानी की। यहाँ पर आचार्यश्री के सान्निध्य में विशाल धर्मसभा का आयोजन हुआ और १८ जून को आगे विहार करके आगर होते हुए संघ २२ जून को उज्जैन के जैन बोर्डिंग (प्रâीगंज) में पहुँचा। उज्जैन शहर में भी पूज्य माताजी ने नयापुरा, नमक मण्डी, जयसिंहपुरा, ऋषिनगर के विभिन्न मंदिरों में भ्रमण करके सम्पूर्ण समाज को ज्ञानलाभ प्रदान किया और २५ जून को मुनिश्री प्रज्ञासागर जी महाराज के आशीर्वाद से विकसित भगवान महावीर तपोभूमि तीर्थ पर प्रवेश हुआ।
right]]इसी क्रम में दिनाँक २७ जून २०१५ को पूज्य माताजी संघ का मंगल प्रवेश मध्यप्रदेश के व्यवसायिक राजधानी कहे जाने वाले इंदौर महानगर में हुआ। सर्वप्रथम २७ व २८ जून को मल्हारगंज के उपरांत २९ जून को क्लर्क कालोनी व ३० जून को पूज्य माताजी संघ की भव्य अगुवानी सम्पूर्ण दिगम्बर जैन समाज की ओर से कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ परिसर, उदासीन आश्रम में हुई। इस अवसर पर महिला संगठन इंदौर की १००८ महिलाओं ने मंगल कलश, झांझ पत्तर, बैण्ड-बाजे व अनेक प्रेरक संदेश के बैनर लेकर पूज्य माताजी का कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ में प्रवेश कराया और हजारों की संख्या में सम्पूर्ण दिगम्बर जैन समाज के भक्तजन उपस्थित रहे। यहाँ विराट धर्मसभा का आयोजन हुआ। आगे २ जुलाई को पूज्य माताजी का संघ सुदामानगर पहुँचा। पश्चात् ३ जुलाई को वैशाली नगर, पार्श्वनाथ नगर होते हुए जैन कालोनी (नेमिनगर) पहुँचा, ४ जुलाई को इन्द्रलोक कालोनी, रामचन्द्रनगर, कालानी नगर व अंजनी नगर में विशाल धर्मसभाएं हुर्इं व ५ जुलाई को स्मृतिनगर के उपरांत नवग्रह जिनालय (ग्रेटर बाबा) में दर्शन व रात्रि विश्राम हुआ। पश्चात् ६ जुलाई को बेटमा, घाटाबिल्लोद होते हुए ७ जुलाई को प्रकाशनगर में आहार के उपरांत सायंकाल धार शहर में पूज्य माताजी का भव्य मंगल प्रवेश हुआ। इसके उपरांत ८ जुलाई को धार में ही अहमदाबाद मेनरोड पर गुजरात संतकेसरी आचार्यश्री भरतसागर जी महाराज की प्रेरणा से निर्मित मानतुंगगिरी तीर्थक्षेत्र (धार) पर पूज्य माताजी का प्रवेश हुआ। यह तीर्थ मानतुंगाचार्य द्वारा धारा नगरी में भक्तामर स्तोत्र की रचना की स्मृति में निर्मित किया गया है। यहाँ विशेषरूप से क्षुल्लिका श्री चन्द्रमती माताजी के निवेदन पर पूज्य माताजी का आगमन हुआ और उन्होंने धार नगरी के जिनमंदिर, अत्यन्त प्राचीन भोजशाला व मानतुंगगिरी तीर्थ का दर्शन करके मानतुंगाचार्य जी का गुणानुवाद किया।
इसके उपरांत दिनाँक १० जुलाई को कागदीपुरा अतिशय क्षेत्र में पूज्य माताजी ने प्रवास किया, जहाँ पर भगवान महावीर एवं अन्य तीर्थंकरों की खुदाई में विशाल प्रतिमाएं निकली हैं, ऐसे कागदीपुरा का दर्शन करके ११ जुलाई को माण्डवगढ़ होते हुए धर्मपुरी, बाकानेर, मनावर, सिंघाना व बड़वानी की समाज में धर्मलाभ प्रदान करते हुए १६ जुलाई को पूज्य माताजी सिद्धक्षेत्र बावनगजा में पहुँची।
सिद्धक्षेत्र बावनगजा-यहाँ पर पूज्य माताजी संघ ने ८४ पुâट उत्तुंग भगवान ऋषभदेव की विशाल प्रतिमा का दर्शन करके अपने पुण्य की सराहना की और सम्पूर्ण तीर्थ की वंदना करके यहाँ से सिद्धपद प्राप्त मुनियों को नमन किया। बावनगजा के उपरांत पलसूद, धोंदवाड़ा होते हुए २० जुलाई को पूज्य माताजी सेंधवा पहुँचीं। पश्चात् खड़क्या, बीजासन, सांघवी, दहिवद, नरडाणा होते हुए २५ जुलाई को पूज्य माताजी का चैतन्यवन (सोनगिर) प्रवेश हुआ। यहाँ पर जैनधर्म के अनुसार आयुर्वेद के संदर्भ में विशाल तीर्थ परिसर और शैक्षणिक परिसर का निर्माण देखकर पूज्य माताजी गदगद हुर्इं और इस तीर्थ और अध्ययन केन्द्र के निर्माता चेतन कुमार जी व उर्जिता शाह जी को आशीर्वाद दिया। २६ जुलाई को संघ का देवभाने होते हुए धुलिया में प्रवेश हुआ, जहाँ विशाल धर्मसभा का आयोजन हुआ। आगे २७ जुलाई को कुसुम्बा होते हुए साकरी व पिंपलनेर के रास्ते ३० जुलाई को भारी धूमधाम के साथ पूज्य माताजी ने अपने लक्ष्य की प्राप्ति करते हुए मांगीतुंगीसिद्धक्षेत्र में मंगल प्रवेश किया।