चंदनामती(आर्यिका) The chief disciple of supreme Jaina female ascetic Aryika Shri Gyanmati Mataji and also the younger sister of the household life of Ganini Shri Gyanmati Mataji, who born at 18th May 1958 and after having studied upto 10th standard, in the small age of 13th years old only she took oath for the vow of celibacy for whole life in year 1971.Thereafter at 13th Aug. 1989 she took Jaina-initiation (for Aryika stage) from Ganini Aryika Shri Gyanmati Mataji. Because of her sharpeness, brilliancy, great poetic genius and creativity she has got popularity over the horizon of the world. In this connection she has composed hundreds of the religious hymns, worshipping compositions, treatises, commentary books etc. With hard penance and observing all duties perfectly, she has overall devoted herself for the protection and development of the Jaina culture and heritage. गणिनी प्रमुख आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी की प्रमुख शिष्या जिन्होंने सन् 1969 में शरदपूर्णिमा- 25 अक्टूबर को 11 वर्ष की लघु उम्र में पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी से जयपुर- राजस्थान में दो वर्ष का ब्रम्हचर्य व्रत ग्रहण किया पुनः सन् 1971 में अजमेर- राजस्थान में १३ वर्ष की बाल अवस्था में ही आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर १३ अगस्त १९८९ , श्रावण शुक्ला ग्यारस को हस्तिनापुर में पूज्य ज्ञानमती माताजी से आर्यिका दीक्षा प्राप्त की । आपका जन्म १८ मई १९५८, ज्येष्ठ कृष्णा अमावस्या को टिकैतनगर-बाराबंकी उ.प्र. में हुआ । आप गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी की गृहस्थावस्था की लघु बहन हैं । दीक्षापूर्व आपका नाम माधुरी जैन था, आपने हाईस्कूल तक लौकिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद धार्मिक अध्ययन में शास्त्री एवं विद्यावाचस्पति की उपाधि प्राप्त की. आपने बाल्यकाल में ही गोम्मटसार जीवकाण्ड- कर्मकाण्ड आदि की सम्पूर्ण गाथाओं को कंठस्थ कर लिया था यह आपकी तीक्ष्ण बुद्धि का परिचायक है । इसके अतिरिक्त आप सैकड़ों भजनों, विधान, चालीसा, पूजन इत्यादि सुन्दर काव्य की रचयित्री हैं. आपने सतत गुरु वैय्यावृत्ति, स्वाध्याय, चिंतन , मनन , तपश्चरण , धर्म अध्ययन एवं प्रवचन आदि के साथ अनेक साहित्य का सृजन किया है जिनमें षट्खंडागम ग्रन्थ की पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी द्वारा रचित सिद्धान्तचिन्तामणि नामक संस्कृत टीका का हिंदी अनुवाद महावीर स्तोत्र (पूज्य गणिनी ज्ञानमती माताजी कृत) की संस्कृत एवं हिंदी टीका, जम्बूद्वीप ज्ञान ज्योति की भारतयात्रा ,अवध की अनमोल मणि , सचित्र ज्ञानाञ्जलि आदि प्रमुख हैं । तीर्थ संरक्षण एवं धर्म के विकास में आपकी विशेष रुचि के फलस्वरुप आपने जम्बूद्वीप (हस्तिनापुर) ,तीर्थंकर रिषभदेव तपस्थली (प्रयाग) , मांगीतुंगी, अयोध्या, कुण्डलपुर (नालंदा) इत्यादि नवोदित तीर्थों की रचना में सफल मार्गदर्शन प्रदान किया है. गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से संपादित होने वाले सभी कार्यों में आपकी अहं भूमिका रहती है ।