नोट – ध्यान दें!नाटक मंचन में जम्बूकुमार एवं उनकी चार पत्नियों को प्रस्तुत करने हेतु बालक-बालक अथवा बालिका-बालिका से ही रोल करायें।)
भूमिका– आत्मा ही ब्रह्म है, उस ब्रह्मस्वरूप आत्मा में चर्या करना सो ब्रह्मचर्य है अथवा अनुभूत स्त्री का स्मरण, उनकी कथाओं का श्रवण और उनसे संसक्त शयन, आसन आदि इन सबका त्याग करना ब्रह्मचर्य है अथवा ‘‘स्वतंत्र वृत्ति का त्याग करने के लिए गुरुओं के पास रहना, सो ब्रह्मचर्य है।’’ जिस प्रकार एक (१) अंक के बिना सभी शून्य व्यर्थ हैं उसी प्रकार ब्रह्मचर्य व्रत के बिना अन्य व्रतों का फल नहीं मिल सकता। आज के इस भौतिकता के युग में मानव गलत मार्ग का अनुसरण कर रहा है, वासना के मद में आकर वह अपनी स्त्री-माँ-बहन में अंतर नहीं समझ रहा है। वह नहीं जानता कि उसके इन दुष्कृत्यों से उसकी क्या गति होगी। आज की नारी अपना देश तो दूर अपने घर में ही सुरक्षित नहीं है। ऐसे वातावरण को देखते हुए आज के माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों को ऐसी महान आत्माएं जिन्होंने ब्रह्मचर्य का दृढ़ होकर पालन किया है, उनकी कहानियाँ सुनाएं। जहाँ ब्रह्मचर्य अणुव्रत के पालन में सेठ सुदर्शन, सती सीता आदि प्रसिद्ध हुए हैं। वहीं अखण्ड ब्रह्मचर्य पालन में जम्बूस्वामी प्रसिद्ध हुए, तो आइए इस लघु नाटिका के माध्यम से हम श्री जम्बू स्वामी के चरित्र को जाने।
सूत्रधार-राजगृह नगर में अर्हद्दास सेठ-सेठानी जिनमती अपने भवन में सुखपूर्वक निवास कर रहे हैं। एक दिन रात्रि के पिछले प्रहर में सेठानी जिनमती पाँच स्वप्नों को देखती हैं। प्रात:काल उठकर जिनेन्द्र भगवान का स्मरण कर स्नानादि से निवृत्त होकर वे सेठ जी के पास अपने स्वप्नों को बताने जाती हैं।
सेठानी-(चरण स्पर्श कर)-हे स्वामिन्! आज मैंने रात्रि के पिछले प्रहर में जम्बूवृक्षादि, पाँच स्वप्नों को देखा है। मैं आपसे उनका फल जानना चाहती हूँ।
सेठ जी-सेठानी जी! आपके स्वप्न तो अति उत्तम प्रतीत हो रहे हैं, चलिए हम जिनमंदिर में जाकर वहाँ विराजमान अवधिज्ञानी मुनिराज से इन स्वप्नों का फल पूछते हैं।
सूत्रधार-सेठ-सेठानी जी मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं, मंदिर में जाकर भगवान की अष्ट द्रव्य से पूजा कर, वहाँ विराजमान मुनिराज की तीन प्रदक्षिणा देकर नमस्कार करके बैठ जाते हैं।
सेठ-सेठानी-नमोस्तु गुरुदेव!
मुनिराज-सद्धर्मवृद्धिरस्तु।
सेठ जी-हे महाराज! आज सेठानी जिनमती ने रात्रि के पिछले प्रहर में जम्बूवृक्षादि आदि पाँच स्वप्नों को देखा है। अत: हम आपसे उन स्वप्नों का फल जानना चाहते हैं। कृपया आप हमें बताने की कृपा करें।
मुनिराज-हे देवी! आपने अति उत्तम स्वप्न देखे हैं, इन स्वप्नों को देखने से तुम्हें एक चरम शरीरी पुत्र का लाभ होगा। यह कोई साधारण बालक नहीं होगा, छठे स्वर्ग में विद्युन्माली नामक अहमिन्द्र देव स्वर्ग से चयकर तुम्हारा पुत्र होगा।
सेठ-सेठानी-गुरुवर! आपने स्वप्नों का फल बताकर हमें कृतार्थ किया। नमोस्तु-नमोस्तु-नमोस्तु।
सूत्रधार–ऐसा कहकर सेठ-सेठानी अपने भवन में वापस आ जाते हैं। इस खबर को जानकर पूरे भवन में हर्षोल्लास का वातावरण छाया हुआ है। तभी एक दिन विद्युन्माली नामक अहमिंद्र अपनी आयु पूर्णकर सेठानी जिनमती के गर्भ में आता है और नव मास पश्चात् फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष पूर्णिमा के प्रात:काल में पुत्र का जन्म होता है।
नगर की स्त्रियाँ–सेठ जी! बधाई हो! आपको पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई है। (सेठ जी अत्यन्त हर्षित होते हैं और भवन में उत्सव मनाया जाता है। जब बालक थोड़ा बड़ा हो जाता है, तब सेठ-सेठानी आपस में उसका नाम रखने की चर्चा करते हैं।)
सेठानी जी–सेठ जी! हम अपने का पुत्र का क्या नाम रखें ?
सेठ जी-सेठानी जी! आपने अपने स्वप्नोंं में सर्वप्रथम जम्बूवृक्ष को देखा था तो हम इसका नाम ‘‘जम्बू’’ रखेंगे। अब सभी लोग इस बालक को ‘‘जम्बू कुमार’’ कहेंगे।
सूत्रधार–सेठानी जी नाम सुनकर प्रसन्न होती हैं। बालक अपनी बालक्रीड़ाओं से सबको प्रभावित करता हुआ वृद्धि को प्राप्त होता है और एक दिन वह युवावस्था को प्राप्त कर लेता है। जम्बूकुमार बचपन से ही सभी कलाओं एवं गुणों में विख्यात थे। साथ ही पवित्रमूर्ति और पुण्यात्मा थे। एक दिन राजगृही नगरी के उपवन में अपने पाँच सौ शिष्यों सहित श्री सुधर्माचार्यवर्य पधारते हैं। जम्बूकुमार नगर में पधारे हुए मुनिराज के दर्शन के लिए जाते हैं।
आगे- (जम्बूकुमार मुनिराज के पास पहुँचकर)
जम्बू कुमार– नमोस्तु आचार्यवर्य।
आचार्यवर्य– सद्धर्मवृद्धिरस्तु वत्स!
जम्बू कुमार– आचार्यश्री! मैं अपने पूर्व भव के वृत्तान्त को जानना चाहता हूँ। किन पुण्य कर्मों के कारण आज मैंने इस मानव जन्म को प्राप्त किया है ?
आचार्यवर्य–सुनो कुमार! तुम पूर्व भव में चक्रवर्ती के पुत्र शिवकुमार थे। तुम्हारी इच्छा जैनेश्वरी दीक्षा लेने की थी, लेकिन अपने पिता के मोह के वश हो उनका अत्यन्त विलाप देखकर तुमने जैसे-तैसे घर में रहना स्वीकार किया लेकिन तुमने उसी दिन से ब्रह्मचर्य व्रत का अखण्ड पालन किया। तुमने ५०० स्त्रियों के बीच में रहते हुए भी असिधारा व्रत (पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत) का पालन किया था, जिसके फलस्वरूप तुम अंत में मुनिपद धारणकर समाधिमरण प्राप्त करके छठे स्वर्ग में विद्युन्माली अहमिन्द्र हुए, वहाँ से चयकर तुम सेठ के घर में उत्पन्न हुए हो। (अपने पूर्वभव के वृत्तान्त को सुनकर ‘कुमार’ संसार से मुक्त कराने वाली जैनेश्वरी दीक्षा की याचना करते हैं।)
जम्बूकुमार (आचार्यवर्य से)– आचार्यश्री! आप मुझे इस भवसागर से पार कराने वाली, भव भ्रमण मिटाने वाली जैनेश्वरी दीक्षा प्रदान कीजिए।
आचार्यवर्य-वत्स! तुम पहले घर में जाकर अपने माता-पिता की आज्ञा लेकर आओ, तभी मैं तुम्हें दीक्षा दूँगा। (जम्बू कुमार बिना इच्छा के ही गुरु के वचन अनुरूप घर जाकर माता-पिता से आज्ञा मांगते हैं)
जम्बूकुमार- माँ! पिताजी! मैं अब जैनेश्वरी दीक्षा लेना चाहता हूँ। कृपया आप लोग मुझे दीक्षा की आज्ञा प्रदान करें। आपकी आज्ञा के बाद ही श्री सुधर्माचार्यवर्य मुझे दीक्षा प्रदान करेंगे, अन्यथा नहीं। (पुत्र के इस प्रकार के वचनों को सुनकर माता तो विलाप ही करने लगती हैं, तब पिताजी अपने पुत्र को समझाते हैं)
सेठ जी- पुत्र! ये तुम क्या कह रहे हो ? इस यौवनावस्था में दीक्षा की बात तुम्हारे मन में कैसे आई ? अभी तो तुम्हारे विवाह करने की उम्र है, तुमको तो इस परिवार को आगे बढ़ाना है।
सेठानी जी– पुत्र! ये आज तुमको क्या हो गया है, जैनेश्वरी दीक्षा और तुम ? नहीं हम तुम्हें दीक्षा की आज्ञा नहीं देंगे, हम तो तुम्हारा विवाह कराएंगे।
सूत्रधार–(मोह के वश में आकर माता-पिता जैसे-तैसे राजगृह नगर के सागरदत्त आदि चार सेठों की चार-पुत्रियों के साथ जम्बू कुमार का विवाह करा देते हैं, यह सोेचकर कि विवाह के बाद कुमार स्त्रियों में लिप्त होकर दीक्षा की बात भूल जाएंगे। लेकिन सेठानी जी चिंतित हुई बाहर घूमती हैं देखती हैं कि जम्बूकुमार जो अपनी चारों स्त्रियों के साथ एक कमरे में बैठकर उनसे अलिप्त रहते हुए वैराग्य को बढ़ाने वाली कथाओं से रात्रि बिता रहे हैं।)
स्त्रियाँ– हे स्वामिन! आपने हमसे विवाह किया है, कुछ दिन तो भोग-भोगकर हमें प्रसन्न कीजिए! आपके बिना हम कैसे रहेंगी ? आप अभी दीक्षा मत लीजिए।
कुमार– हे देवियों! किन भोगों की बात कर रही हो तुम लोग ? ये भोग हमेशा दु:ख ही प्राप्त कराते हैं, इनसे प्राणी कभी सुख नहीं प्राप्त कर सकता। अत: हमें संसार के परिभ्रमण को मिटाने के लिए जैनेश्वरी दीक्षा धारण करनी ही पड़ेगी।
सूत्रधार– और इस प्रकार पूरी रात्रि कुमार और उनकी पत्नियों के बीच में वार्तालाप चलता रहता है। लेकिन चारों स्त्रियाँ मिलकर भी अपने पति को अपने पथ से डिगा नहीं पाई। तभी जिनभवन में चोरी के निमित्त से एक चोर प्रवेश करता है। अनंतर……………………
चोर- अरे वाह! आज तो इस सेठ के पुत्र का विवाह हुआ है, चार-चार बहुएं आई हैं, आज तो घर में खूब सोना-चांदी होगा, आज की चोरी से तो मैं मालामाल हो जाऊँगा। चोर सोच ही रहा होता है, तभी उसकी नजर चिंतित अवस्था में जम्बू कुमार के कमरे के बाहर घूमती हुई सेठानी पर पड़ती है, तभी सेठानी भी उसको देखकर समझ जाती है कि ये चोर है, चोरी के निमित्त से यहाँ आया है।
चोर- क्या हुआ सेठानी जी! मैं तो आपके घर में चोरी करने आया था लेकिन आपको इस तरह इतनी रात में चिंतित अवस्था में जागता देख हैरान हूँ। क्या बात है ?
सेठानी– मैं जानती हूँ! तुम चोर हो धन लूटने के लिए आए हो, मैं तुमको जितना चाहो धन दे सकती हूँ, लेकिन तुम्हें मेरा एक काम करना होगा।
चोर– आपका ऐसा क्या काम है, जो मैं कर सकता हूूँ।
सेठानी-उस चोर को कुमार के बारे में सब बता देती हैं और चोर को जम्बू कुमार के पास समझाने के लिए भेजती हैैं। वे सोचती हैं शायद इस चोर के किन्हीं उपायों से मेरा पुत्र दीक्षा का ख्याल अपने मन से निकाल देगा। आगे क्या होता है ?-)
जम्बू कुमार-(चोर से) तुम कौन हो ? और हमारे कक्ष में क्या कर रहे हो ?
चोर– कुमार जी! मैं एक चोर हूँ, चोरी के लिए आपके जिनभवन में आया था, लेकिन देखा आपकी नई शादी हुई है फिर भी आप भोग-भोगने के बजाय वैराग्य की बात कर रहे हैं। आप भोगों में लिप्त न होकर जैनेश्वरी दीक्षा क्यों लेना चाहते हैं ?
जम्बू कुमार– सुनो! ये भोग संसार में परिभ्रमण का कारण हैं। इनसे शारीरिक सुख तो मिलता है लेकिन आत्मिक सुख प्राप्त करने के लिए इन भोगों को छोड़कर ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना होता है।
चोर– आप कुछ समय भोग-भोगें फिर त्याग करें, अन्यथा इन्द्रियों का दमन नहीं हो सकता।
जम्बूकुमार- यह सर्वथा गलत धारणा है जिस प्रकार अग्नि में यदि तीन लोक प्रमाण भी ईधन डाल दो, तो भी वह तृप्त नहीं हो सकती, वह जलती ही रहेगी और उसकी ज्वालाएं बढ़ती ही चली जाएंगी, उसी प्रकार ये भोग चाहे जितने भोगे जाएं, वे कभी शरीर को तृप्त नहीं कर सकते। (बहुत उपायों से चोर समझाने की कोशिश करता है लेकिन वह कुमार अपनी बात पर अडिग ही रहें। अंत में जम्बूकुमार सभी की उपेक्षा करके प्रात:काल ही गुरु के पास जाकर जैनेश्वरी दीक्षा धारण कर लेते हैं। जो चोर उनको समझाने आया था, वो भी कुमार से प्रभावित होकर अपने पाँच सौ साथियों के साथ दीक्षित हो जाता है, पिता अर्हद्दास भी दीक्षा ले लेते हैं। सेठानी जी और चारों बहुएं भी सुप्रभा आर्यिका के समीप स्त्रीलिंग को छेदने वाली आर्यिका दीक्षा ले लेती हैं। अनंतर जिस दिन गुरु सुधर्माचार्य मुक्ति को प्राप्त हुए हैं, उसी दिन जम्बू स्वामी को केवलज्ञान प्रगट हो जाता है, इसलिए जम्बूस्वामी अनुबद्ध केवली कहलाएं हैंं। अनंतर वे मोक्षधाम को प्राप्त कर लेते हैं।)
सार–जिसके जीवन में वैराग्यरूपी अंकुर उत्पन्न हो जाता है, वह जीव अपना तो कल्याण करता ही है, उसके निमित्त से दूसरों का भी कल्याण हो जाता है। अत: पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले शिवकुमार ने अहमिंद्र पद प्राप्त किया, अनंतर जम्बूस्वामी की अवस्था में केवली बनकर मोक्ष प्राप्त किया। धन्य है वह ब्रह्मचर्य व्रत, जिसके पालन से मोक्ष की प्राप्ति संभव है, ऐसे धर्म को हमें सदा ही ग्रहण करना चाहिए। बोलो, उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म की जय।