आज अस्पताल में रहते हुए पूरा एक महीना हो गया है । डॉक्टर आयी, नेहा का चेकअप किया और आज छुट्टी दे दी । नेहा और नीरव दोनों स्कूटर से सब्जी लेने जा रहे थे । सामने से एक ट्रक वाला आया और जोर से टक्कर हो गई । नीरव को तो कम चोट लगी पर नेहा के चेहरे पर बहुत बड़ा कट लग गया , बत्तीस टाँके आए और नाक की हड्डी में फ्रैक्चर हो गया । आगे के दाँत टूट गए और इस तरह से पट्टियाँ बाँधी गई कि वह बोल नहीँ सकती थी, उसे हर बात इशारों में करनी पड़ती । नेहा अस्पताल में भी इसी चिन्ता में रहती कि मेरे बिना केसे चलेगा। ‘नीरव को खाना बनाना तो दूर बच्चों का टिफिन भी ठीक से पैक करना नहीं आता । आस्था और अभिनव अभी बहुत छोटे हैँ उनको अच्छे से सम्भालना । नीरव परेशान हो जायेंगे । हॉ, मम्मी -पापा सम्भाल लेंगे, पर आस्था तो कुछ खाती नहीं मम्मी परेशान हो जाएगी । अभिनव को मेरी ड्रेस पकड़े बगैर नींद नहीं आती, वह कैसे सोएगा ?’ हाँ तीन-चार दिन परेशानी हुईं, लेकिन अब सब सामान्य हो गया था । एक महीना हो गया अभिनव नानी के साथ सोने लगा, आस्था नानी से खाना खाने लगी, नीरव रसोई के काफी काम में मदद कर देता ।
एक माह बाद नेहा घर आयी, घर साफ़-सथुरा था । डॉक्टरों ने अभी -भी उसे आराम करने को कहा था । उसने सोचा मुझे लगता था कि मेरे बिना तो घर चल ही नहीं सकता। चौबीस घण्टों में से एक घष्टा भी मैं सामायिक कभी नहीं करती थी । फोन बजेगा तो कौन उठाएगा , घण्टी बजेगी तो कौन दरवाजा खोलेगा ? और सवेरे से शाम तक बस घर के कामकाज में ही लगी रहती। साधु सन्त हमेशा प्रेरणा देते हैं कि सामायिक, ध्यान के लिए समय निकालो, पर मैंने नहीं निकाला। सचमुच परिस्थितियाँ इंसान को सब सिखा देती हैँ । हमें सारे काम की जिम्मेदारी स्वयं न लेकर घर के अन्य सदस्यों और बच्चों से भी घर के काम में मदद लेनी चाहिए और यह कदापि न सोचें कि मेरे बिना घर-गृहस्थी चल ही नहीं सकती ” हाँ हम सबका बहुत महत्व है, लेकिन चौबीस घण्टों में से एक घंटा स्वयं के लिए निकालने का प्रण अवश्य लें । अक्सर छोटे बच्चों कीं माताएँ समय नहीं निकाल पाती, पर कोशिश कों तो जल्दी उठकर या कभी-भी एक सामायिक जितना समय निकाल सकती हैँ “