अहिंसा अणुव्रतपहले अणुव्रत में स्थूलरूप से प्राणी सा से विरति है।
अहिंसा अणुव्रत को समझने के लिए हिंसा के चारों भेदों का लक्षण जानना भी आवश्यक है।
१. संकल्पी हिंसा-अभिप्रायपूर्वक किसी भी छोटे या बड़े जीव को मारना संकल्पी हिंसा है।
२. आरंभी हिंसा-चूल्हा जलाना, चक्की पीसना, पानी छानना आदि आरंभ कार्य करके भोजन बनाना, खेती आदि करना आरंभी हिंसा है।
३. उद्योगिनी हिंसा-धन कमाने के लिए बड़े-बड़े व्यापार करना, कारखाने खोलना उसमें होने वाली िंहसा उद्योगिनी हिंसा है।
४. विरोधिनी हिंसा-धर्म, धर्मायतन और धर्मात्माओं की रक्षा के लिए हिंसा करना विरोधिनी हिंसा है। जैसे कि श्री रामचन्द्र ने की थी। इन चारों हिंसा में से गृहस्थाश्रम में रहने वाले गृहस्थ केवल संकल्पी हिंसाओं का ही त्याग कर सकते हैं क्योंकि भोजन आदि करने हेतु आरंभ करने से उस योग्य हिंसा तो होती ही है फिर भी सावधानीपूर्वक कार्य करना चाहिए। इसी प्रकार धन के बिना गृहस्थी नहीं चल सकती इसलिए व्यापार करना ही पड़ता है, उसकी हिंसा भी गृहस्थ के लिए क्षम्य है। किन्तु चमड़ा, शराब, हड्डी की खाद, भट्टे आदि हीन कार्य सद्गृहस्थ को नहीं करना चाहिए। इस प्रकार श्री गौतमस्वामी द्वारा कथित गृहस्थ के योग्य अिंहसा का वर्णन मैंने संक्षेप में आपको बताया है।