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Tag: Gautam Gandhar Vani Part-2

Home Posts Tagged "Gautam Gandhar Vani Part-2"

14. महु—मंस—मज्ज—जूआ

November 14, 2020jambudweepGautam Gandhar Vani Part-2

‘महु—मंस—मज्ज—जूआ… ’ अमृतर्विषणी टीका ‘‘महु—मंस—मज्ज—जूआ, वेसादिविवज्जणासीलो। पंचाणुव्वयजुत्तो, सत्तेिंह सिक्खावएिंह संपुण्णो।।’’ श्रावक के अष्टमूलगुण एवं सप्तव्यसन त्याग का वर्णन—   अर्थ—मधु, मांस, मद्य, जुआ और वेश्या आदि व्यसन, इनको त्याग करने वाला, पाँचों अणुव्रतों से युक्त तथा सात शिक्षाव्रतों से परिपूर्ण गृहस्थ होता है। मधु, मांस और मद्य का त्याग करना। दर्शन प्रतिमा के लक्षण में…

13. ‘‘तदिये अतिथिसंविभागो।’’

November 14, 2020jambudweepGautam Gandhar Vani Part-2

‘तृतीय अतिथिसंविभाग… ’ अमृतर्विषणी टीका तृतीय अतिथिसंविभाग शिक्षाव्रत— यहां विशेष अर्थ का विवेचन करते हैं— तृतीय अतिथिसंविभागव्रत में दान के चार भेद माने हैं— आहार दान औषधी दान, और शास्त्रदान आवास दान। ये अतिथी संविभाग व्रत के, चउ भेदरूप हैं चार दान।। प्रासुक भोजन औषधियों से, श्रावकजन मुनि को स्वस्थ करे। पिच्छी शास्त्रादी दे उनको,…

10.‘‘णिस्संकिय—णिक्क्मखिय…”

November 14, 2020jambudweepGautam Gandhar Vani Part-2

‘‘णिस्संकिय—णिक्क्मखिय…”! अमृतर्विषणी टीका‘‘णिस्संकिय—णिक्कंखिय, णिव्विदििंगछी य अमूढदिट्ठी य। अवगूहण ट्ठिदिकरणं, वच्छल्लपहावणा य ते अट्ठ।।’’ अमृतर्विषणी टीका— सम्यग्दृष्टि के आठ अंग (१) नि:शंकित अंग का लक्षण- जिनदेव प्ररूपित तत्त्व यही , है ऐसा ही है अन्य नहीं। निंह अन्य रूप हो सकता है, ऐसा अचलित श्रद्धान सहीत।। ऐसी अवंâप असिधारावत्, सन्मारग में संशय विरहित। रुचि होती जब…

12. तत्थ पढमे सामाइयं

November 14, 2020jambudweepGautam Gandhar Vani Part-2

‘तत्थ पढमे सामाइयं ’ अमृतर्विषणी टीका यहां विशेष अर्थ का विवेचन करते हैं— प्रथम सामायिक शिक्षाव्रत— श्रावकों को प्रात:काल देवपूजापूर्वक सामायिक करना चाहिये। देवपूजा सहित सामायिक— पूजामुख विधि करके विधिवत् पंचामृत अभिषेक करे, अनंतर नवदेवता पूजा आदि पूजायें करके पूजा अन्त्यविधि करे। यही श्रावक—श्राविकाओं की प्रात:कालीन सामायिक है। भावसंग्रह (संस्कृत) ग्रंथ में यही विधि बतलाई गई…

11. भयवदा महदि महावीरेण.

November 14, 2020jambudweepGautam Gandhar Vani Part-2

‘भयवदा महदि महावीरेण…… ’ अमृतर्विषणी टीकापंचाणुव्वदाणि तिण्णि गुणव्वदाणि चत्तारि सिक्खावदाणि वारसविहं गिहत्थधम्मं उवदेसियाणि।’’ अमृतर्विषणी टीका— श्रावक के १२ व्रत अणुव्रत का स्वरूप हिंसा औ झूठ तथा चोरी, मैथुन परिग्रह ये पाँच कहे। इन पापों का स्थूल त्याग, इसका ही अणुव्रत नाम रहे।। जो अणुव्रत को धारण करते, वे देव गती ही पाते हैं। नारक तिर्यंच…

08. ‘‘तदिये अतिथिसंविभागो।’’

November 11, 2020jambudweepGautam Gandhar Vani Part-2

‘‘तदिये अतिथिसंविभागो।’’ अमृतर्विषणी टीका अतिथिसंविभाग शिक्षाव्रत का लक्षण   गुणनिधि तपोधन मुनियों को, बस स्वपर धर्म की वृद्धि हेतु। जो दान दिया जाता अतिथिसंविभाग व्रत विशेष।। यश मंत्र प्रती उपकार आदि, से अनपेक्षित हो भक्ति से। निज शक्ति विभव के अनूसार, उपकार करे गुरु भक्ति से।।   गुणों के निधान और तपरूपी धन के धारक…

02. सुदं मे आउस्संतो ! (श्रावक धर्म) प्राकृत एवं पद्यानुवाद

November 11, 2020jambudweepGautam Gandhar Vani Part-2

सुदं मे आउस्संतो ! (श्रावक धर्म) (अध्याय ३) (प्राकृत एवं हिन्दी पद्यानुवाद) श्रीगौतमस्वामी उवाच— श्री गौतमस्वामी कहते हैं—पढमं ताव सुदं मे आउस्संतो! इह खलु समणेण भयवदा महदि-महावीरेण महा-कस्सवेण सव्वण्ह-णाणेण सव्व-लोय-दरसिणा सावयाणं सावियाणं खुड्डयाणं खुड्डियाणं कारणेण पंचाणुव्वदाणि तिण्णि गुणव्वदाणि चत्तारि सिक्खा-वदाणि बारसविहं गिहत्थधम्मं सम्मं उवदेसियाणि। तत्थ इमाणि पंचाणुव्वदाणि पढमे अणुव्वदे थूलयडे पाणादि-वादादो वेरमणं, विदिए अणुव्वदे थूलयडे…

09. ‘‘से अभिमदजीवाजीव—उवलद्धपुण्णपावआसवसंवरणिज्जरबंधमोहमहिकुसले।’’

November 11, 2020jambudweepGautam Gandhar Vani Part-2

सुदं मे आउस्संतो (श्रावक धर्म) अध्याय ३ ‘से अभिमदजीवाजीव—उवलद्धपुण्णपावआसवसंवरणिज्जरबंधमोहमहिकुसले।’ अमृतर्विषणी टीका नवपदार्थ ये जीव आदि नव तत्त्व भी कहलाते हैं व इन्हें पदार्थ भी कहा है— (१) जीव पदार्थ—जीव का लक्षण उपयोग है। उपयोग के ज्ञानोपयोग और दर्शनोपयोग ये दो भेद हैं। ज्ञानोपयोग के स्वभावज्ञान और विभावज्ञान ये दो भेद हैं। केवलज्ञान स्वभाव ज्ञान अथवा…

07. विदिए पोसहोवासय

November 11, 2020jambudweepGautam Gandhar Vani Part-2

‘‘विदिए पोसहोवासयं’’ अमृतर्विषणी टीका- प्रोषधोपवास शिक्षाव्रतइस प्रकार से द्वितीय शिक्षाव्रत का नाम प्रोषधोपवास है। श्री गौतमस्वामी स्वयं श्रावक प्रतिक्रमण में चतुर्थ प्रतिमा का वर्णन करते समय कहते हैं ‘‘उत्तममज्झजहण्णं तिविहं पोसहविहाणमुछिट्ठं। सगसत्तीए मासम्मि चउसु पव्वेसु कायव्वं।।’’ प्रोषधविधान के तीन प्रकार माने गये हैं— उत्तम, मध्यम और जघन्य। प्रत्येक मास के चारों पर्वों में अपनी शक्ति…

05. विदिए गुणव्वदे विविध—अणत्थदण्डादो वेरमणं।

November 11, 2020jambudweepGautam Gandhar Vani Part-2

‘‘विदिए गुणव्वदे विविध—अणत्थदण्डादो वेरमणं।’’ अमृतर्विषणी टीका अनर्थदण्डविरति गुणव्रत जो अनर्थ अर्थात् बिना प्रयोजन ही दण्ड अर्थात् जीवों की हिंसा के कारण हों, उनसे विरति करना ही अनर्थदण्डविरति नाम का व्रत है। अनर्थदण्ड के ५ भेद— पापोपदेश औ हिंसा के , उपकरण दान अपध्यान तथा। चौथा है दु:श्रुति नाम लहे, पंचम प्रमादचर्या विरथा।। इस विध से…

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