प्रभु श्रेयांस की आरति कीजे,
भव-भव के पातक हर लीजे ।।टेक.।।
स्वर्ण वर्णमय प्रभा निराली, मूर्ति तुम्हारी है मनहारी।।
प्रभु………।।१।।
सिंहपुरी में जब तुम जन्में, सुरगण जन्मकल्याणक करते।।
प्रभु…।।२।।
विष्णुमित्र पितु, नन्दा माता, नगरी में भी आनन्द छाता।।
प्रभु…….।।३।।
फाल्गुन वदि ग्यारस शुभ तिथि थी, जब प्रभुवर ने दीक्षा ली थी।।
प्रभु……।।४।।
माघ कृष्ण मावस को स्वामी कहलाए थे केवलज्ञानी।।
प्रभु………..।।५।।
श्रावण सुदी पूर्णिमा आई, यम जीता शिवपदवी पाई।।
प्रभु…….।।६।।
श्रेय मार्ग के दाता तुम हो, जजे ‘‘चंदनामति’’ शिवगति दो।।
प्रभु…….।।७।।