श्री सिंहपुरी पावन तीरथ की आरति को हम आए।
कंचन का थाल सजाएँ।।टेक.।।
है पुण्य बड़ा जो तीर्थंकर प्रभु, जन्म धरा पर लेते।
अपनी पावनता से वे जग भर, को पावन कर देते।।
हाँ….
उनकी पदरज पाने हेतु, हम तीर्थ नमन को आए,
कंचन का थाल सजाएँ।।१।।
श्रेयांसनाथ ग्यारहवें प्रभुवर, इसी धरा पर जन्में।
पितु विष्णुमित्र माता नंदा के, संग इन्द्रगण हरषे।।
हाँ…..
हुए चार-चार कल्याण जहाँ, उस तीर्थभूमि को ध्याएं,
कंचन का थाल सजाएँ।।२।।
प्राचीन यहाँ इक मंदिर है, श्रेयांसनाथ जिनवर का।
मनहारी प्रतिमा श्यामवर्ण, अतिशय है उन प्रभुवर का।।
अतिशय….
है निकट बनारस तीर्थक्षेत्र, उसकी आरति को आए,
कंचन का थाल सजाएँ।।३।।
इस नगरी को अब सारनाथ के, नाम से जाना जाता।
श्रेयांसनाथ धर्मस्थल इसको, कहें ज्ञानमति माता।।
हाँ…..
‘‘चंदनामती’’ भी ज्ञानप्राप्ति हित, चरण कमल प्रभु ध्याए।
कंचन का थाल सजाएँ।।४।।