तर्ज—क्यों ना ध्यान लगाए, वीर से बावरिया………….
कर लो सकल नरनार, प्रभू जी की आरतिया।
करती है भव से पार, श्री जी की आरतिया।।टेक.।।
तीनों लोकों में तू घूमा, लेकिन जीवन प्रभु बिन सूना।
जीवन में लाती बहार, प्रभू जी की आरतिया।
कर लो सकल नर नार….।।१।।
आठ करोड़ लक्ष छप्पन हैं, सहस सतानवे चार शतक हैं।
इक्यासी जिनधाम, प्रभू जी की आरतिया।।
कर लो सकल नर नार….।।२।।
सब कृत्रिम अकृत्रिम प्रतिमा, तीन लोक की जानो महिमा।
भरे सकल भण्डार, प्रभू जी की आरतिया।।
कर लो सकल नर नार….।।३।।
इस नरतन को तूने पाया, तीन लोक मंडल रचवाया।
कर दे सुखी संसार, प्रभू जी की आरतिया।।
कर लो सकल नर नार….।।४।।
प्रभु की आरति भव दुखहारी, भव्य जनों को आनंदकारी।
वरण करे शिवनारी, प्रभू जी की आरतिया।।
कर लो सकल नर नार….।।५।।
जय जयकार करो अति भारी, गूँज उठेगी नगरी सारी।
गाओ सभी नरनार, प्रभू जी की आरतिया।।
कर लो सकल नर नार….।।६।।
ज्ञानमती माताजी की महिमा, कहे चंदनामती गुण गरिमा।
भरे ज्ञान भण्डार, प्रभू जी की आरतिया।।
कर लो सकल नर नार….।।७।।