तर्ज—ॐ जय………….
ॐ जय श्री सिद्ध प्रभो, स्वामी जय श्री सिद्ध प्रभो।
शत इन्द्रों से वंदित, त्रिभुवन पूज्य विभो।।ॐ जय…..।।टेक.।।
भूत भविष्यत संप्रति, त्रैकालीक कहें।स्वामी……….
नरलोकोद्भव सिद्धा, नंतानंत रहें।।ॐ जय……….।।१।।
मध्यलोक के शाश्वत, मणिमय अभिरामा।स्वामी…….
चारशतक अट्ठावन, अविचल जिनधामा।।ॐ जय…….।।२।।
सबमें जिनवर प्रतिमा, इक सौ आठ कहीं।स्वामी…….
सिद्धन की है उपमा, अनुपम रत्नमयी।।ॐ जय……..।।३।।
कनकमयी सिंहासन, अद्भुत कांति भरे।स्वामी……..
जिनमूरति पद्मासन, राजे शांति धरे।।ॐ जय………।।४।।
तीन छत्र हैं सिर पर, चौंसठ चंवर ढुरें।स्वामी…….
भामंडल द्युति अद्भुत, सूरज कांति हरे।।ॐ जय…….।।५।।
इन्द्र सभी मिल करके, पूजा भक्ति करें।स्वामी……..
जिनमंदिर के ऊपर, ध्वज आरोप करें ।।ॐ जय……।।६।।
इसी हेतु इन्द्रध्वज, पूजन है सार्थक।स्वामी……..
जो करते श्रद्धा से, पाते शिवमारग।।ॐ जय……….।।७।।
हम सब भी मिल करके, आरति नित्य करें।स्वामी……..
ज्ञानमती ज्योती से, तम अज्ञान हरें।।ॐ जय…….।।८।।