जय जय प्रभुवर, जय जय जिनवर, की मंगल दीप प्रजाल के
मैं आज उतारूँ आरतिया….।।टेक.।।
कुमुदचंद्र आचार्यप्रवर ने, इक स्तोत्र रच डाला।
पार्श्वनाथ की महिमा का है, चमत्कार दिखलाया।।प्रभू जी…।
प्रभु पार्श्वनाथ की, भक्ती में, मन मगन हुआ मुनिराज का,
मैं आज उतारूँ आरतिया….।।१।।
चौवालिस काव्यों में निर्मित, यह विधान अति सुन्दर,
रचा चंदनामती मात ने स्तोत्र पद्य रचनाकर।।प्रभू जी……
प्रभु भक्ती से, निज शक्ति बढ़े, औ मिले मुक्ति का धाम रे
मैं आज उतारूँ आरतिया….।।२।।
काल सर्प का योग निवारण करने में है सक्षम।
जिनभक्ति से अपमृत्यु का दूर भी होता संकट।।प्रभू जी…
प्रभु पार्श्वनाथ, सर्वज्ञ हितंकर करें जगत कल्याण रे,
मैं आज उतारूँ आरतिया….।।३।।
पार्श्वप्रभु ने संकट सहकर, शिवपद को है पाया।
दशभव तक कमठासुर के प्रति, क्षमाभाव अपनाया।।प्रभू जी..
मुझको भी वैसी, शक्ति मिले, जब तक नहिं मुक्ती प्राप्त हो,
मैं आज उतारूँ आरतिया….।।४।।
गणिनी ज्ञानमती माता की, मिली प्रेरणा सबको।
पार्श्वनाथ का महामहोत्सव, आयोजन करने को।।प्रभू जी..
कर रही आस्था, यही कामना, मेरा भी कल्याण हो
मैं आज उतारूँ आरतिया….।।५।।