णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं।
णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं।।
नरेश – मित्र! मैंने सुना है कि णमोकार मन्त्र के प्रभाव से कुत्ता देव हो गया, सो कैसे?
सुरेश –हाँ बन्धु! क्या तुम्हारी माँ ने कभी तुम्हें णमोकार मन्त्र का महत्त्व नहीं सुनाया? सुनो, मैं सुनाता हूँ।
नरेश – मित्र! मैं स्कूल से पढ़कर घर जाकर भोजन करके जल्दी ही भाग आता हूँ और खेलकूद में लग जाता हूँ। पुन: माँ के मन्दिर जाकर आने से पहले ही मैं सो जाता हूँ और प्रात: माँ खूब हल्ला मचाकर जगाकर जब मन्दिर चली जाती है, तब मैं सोकर उठता हूँ। अत: मेरी माँ मुझे कब ऐसी-ऐसी बातें बतायें? अब तो आप ही णमोकार मन्त्र के रहस्य को समझा दीजिये।
सुरेश – सुनो मित्र! किसी समय राजपुरी के उद्यान में बहुत से ब्राह्मण लोग यज्ञ कर रहे थे, एक कुत्ता आया और अत्यधिक भूखा होने से उसने यज्ञ की सामग्री खानी चाही तथा झट से किसी थाल में मुँह लगा ही दिया। बस! क्या था? एक ब्राह्मण ने गुस्से में आकर उस कुत्ते को डंडे से खूब मारा जिससे वह मरणासन्न हो गया। उधर से जीवंधरकुमार अपने मित्रों के साथ निकले। कुत्ते की दशा देखकर वे परमदयालु स्वामी वहीं बैठ गये। वे समझ गये कि अब यह कुत्ता बच नहीं सकता है। तब उन्होंने उसके कान में णमोकार मन्त्र सुनाना प्रारम्भ किया। कुत्ते को इस मन्त्र से बहुत ही शांति मिली। मित्र! मेरी माँ कहा करती है कि यह मन्त्र संकट के समय अमोघ उपाय है। वेदना में महाऔषधि है। वह कुत्ता भी बड़े प्रेम से कान उठाकर मन्त्र को सुनता रहा। जीवंधर स्वामी बार-बार उसके ऊपर हाथ फेरकर उसे सान्त्वना दे रहे थे।
नरेश –मित्र! फिर वह कुत्ता देव कब हो गया?
सुरेश – भैया! सुनो, इस मन्त्र के प्रभाव से वह कुत्ता मरकर सुदर्शन नाम का यक्षेन्द्र देव हो गया। अन्तर्मुहूर्त (४८ मिनट) के भीतर ही भीतर उसका वैक्रियक शरीर नवयुवक के समान पूर्ण हो गया और उसे अवधिज्ञान प्रकट हो गया। तब उसने सब बातें जानकर देवगति को प्राप्त कराने वाले परमोपकारी गुरू जीवंधर कुमार के पास शीघ्र ही आकर नमस्कार किया। उस समय तक जीवंधर कुमार उस कुत्ते को मन्त्र सुना ही रहे थे। उस देव ने आकर स्वामी की खूब स्तुति की और ‘‘समय पर मुझ दास को स्मरण करना’’ ऐसा कहकर चला गया। बंधुवर! जीवंधर के जीवन में बहुत से संकट के समय आये और इस देव ने आ-आकर रक्षा की, सेवा भक्ति की, अनेकों बार इस देव ने इनको सहयोग दिया तथा जीवन भर इनका भक्त कृतज्ञ बना रहा।
नरेश –मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा है कि इस मन्त्र में इतनी शक्ति है। मैंने तो रात्रि पाठशाला में इस मन्त्र को पढ़ा है इसीलिए याद है किन्तु मेरे छोटे भाईयों को तो यह मन्त्र याद भी नहीं है।
सुरेश –भाई नरेश! मनुष्य पर्याय पाकर और जैनकुल में जन्म लेकर तो इस मन्त्र को प्रतिदिन क्या प्रतिक्षण जपते ही रहना चाहिये। देखो! इस कथा से हमें कई शिक्षाएँ मिलती हैं।
# कुत्ते आदि दीन पशुओं को मारना नहीं चाहिये। # किसी को संकट के समय या मरणासन्नावस्था में णमोकार मन्त्र अवश्य सुनाना चाहिये।
# अपने प्रति उपकार करने वाले का कृतज्ञ बनकर बार-बार प्रत्युपकार करते रहना चाहिये।
# महामन्त्र का खूब जाप करना चाहिये।
# माँ से, गुरूजनों से ऐसी कथायें सुनना चाहिए और मन्दिर में बैठकर स्वाध्याय करना चाहिये।
# जीवंधर चरित्र अवश्य पढ़ना चाहिये।
नरेश –अच्छा मित्र! आज हमें बहुत अच्छी बातें मिली हैं। मैं आज घर में सबको इस कथा को सुनाउँगा।
सुरेश –अच्छा! जयजिनेन्द्र। अब चलें, कल फिर मिलेंगे।