(छंद सहित)
श्रीछन्द:-(१ अक्षरी)
ॐ, मां। सोऽ-व्यात्।।१।।
स्त्रीछन्द:-(२ अक्षरी)
जैनी, वाणी। सिद्धिं, दद्यात्।।२।।
केसाछन्द:-(३ अक्षरी)
गणीन्द्र!, त्वदंघ्रिं। नमामि, त्रिकालं।।३।।
मृगीछन्द:-(३ अक्षरी)
श्री-जिनै:, संततं। मन्मन:, पूयताम्।।४।।
नारीछन्द:-(३ अक्षरी)
श्री-देवो, नाभेय:। वंदेऽहं, तं मूर्ध्ना।।५।।
कन्याछन्द:-(४ अक्षरी)
पू: साकेता, पूता जाता। त्वत्सूते: सा, सेंद्रैर्मान्या।।६।।
व्रीडाछन्द:-(४ अक्षरी)
महासत्यां, मरुदेव्यां। सुतोऽभूस्त्वं, जगत्पूज्य:।।७।।
लासिनीछन्द:-(४ अक्षरी)
युगादिजो, जिनेश्वर:। ददातु मे, शिवश्रियं।।८।।
सुमुखीछन्द:-(४ अक्षरी)
नाभिनृप:, तेऽस्ति पिता। आदिजिन:, पातु मम।।९।।
सुमतिछन्द:-(४ अक्षरी)
सुखकारी, भवहारी। पुरुदेवो, वस मेऽन्त:।।१०।।
समृद्धिछन्द:-(४ अक्षरी)
ज्ञानसिंधुं, सर्वबंधुं। सर्व सिद्ध्यै, नौमि नित्यं।।११।।
पंक्तिछन्द:-(५ अक्षरी)
हाटकवर्णं, सद्गुण-पूर्णम्।
सिद्धिवधूस्त्वां, सा स्म वृणीते।।१२।।
शशिवदनाछन्द:-(६ अक्षरी)
मुनिनुतपाद:, त्रिभुवननाथ:।
विगलितमोह:, निजसुखमाप्नोत्।।१३।।
मदलेखा छंद:-(७ अक्षरी)
देवेन्द्रै: परिपूज्यो, योगीन्द्रैरनुचिन्त्य:।
चक्रेशैरभिवंद्यो, वंदे तं वृषभेशम्।।१४।।
आषाढेऽसितपक्षे स्याद्, द्वितीया तिथिरुत्तमा।
सर्वार्थसिद्धितश्च्युत्वा, मातुर्गर्भे समागत:।।१५।।
नवम्यां चैत्रकृष्णे त्वं, जन्म प्राप्य प्रजापति:।
ब्रह्मा सृष्टा विधाताभूद्, युगादौ तीर्थनायक:।।१६।।
चैत्रकृष्णे नवम्यां हि, स्वयंभूर्दीक्षितोऽभवत्।
फाल्गुनेऽसितपक्षेऽभू-देकादश्यां सुकेवली।।१७।।
माघकृष्णे चतुर्दश्यां, कैलाशे गिरिमस्तके।
निर्वृतिं परमां लब्ध्वा, सिद्धिकांतापति-र्बभौ।।१८।।
आयुश्चतुरशीत्यामा, लक्षपूर्व-प्रमाणक:।
इक्ष्वाकुवंशभास्वान् यो, पुरुदेवो पुनातु मे।।१९।।
द्विसहस्रकरोत्तुंगो, वृषभो वृषलाञ्छन:।
जीयात् त्रैलोक्यनाथोऽसौ, स्याद्वादामृतशासन:।।२०।।
य: क्रोधादिरिपून् विजित्य सहसा, स्वात्मोत्थ-सौख्यामृतं।
पायं पायमहर्निशं भवभयात्, स्वात्मानमुद्धृत्य वै।।
त्रैलोक्याग्रपदे धृतश्च, निवस-त्यद्याप्यनंतावधि।
दिश्यात् श्रीऋषभो स एष भगवान्, मे ज्ञानमत्यै श्रियं।।२१।।