कुमारललिता छन्द:-(७ अक्षरी)
निजात्मसुखसारो, विशोकभयमान:।
विरागपरमात्मा, नमोऽस्तु मम तुभ्यं।।१।।
मधुमती छन्द:-(७ अक्षरी)
सकलबोधरवि:, सकलसौख्यखनि:।
सकललोकमणि:, जयतु तीर्थकर:।।२।।
हंसमाला छन्द:-(७ अक्षरी)
स पिता देहभाजां, स गुरुर्भक्तिभाजां।
स जिन: पातु दु:खात्, तनुतान् मे स्वलक्ष्मीं।।३।।
चूड़ामणि छन्द:-(७ अक्षरी)
चूड़ामणिर्भुवने, चिंतामणि: सुखद:।
कल्पद्रुमस्त्वमपि, स्थेयात् सदा हृदि मे।।४।।
प्रमाणिका छन्द:-(८ अक्षरी)
जगत्त्रयं पवित्रितं, जगत्त्रयैकवित् गुरु:।
मयाभिनंदन: प्रभु:, प्रणम्यते मुदा सदा।।५।।
अनुष्टुप् छन्द:-
स्वयंवर: पितासीत्ते, सिद्धार्था जननी शुभा।
विनीता पू: प्रपूज्या स्याद्, इक्ष्वाकुवंशचंद्रमा:।।६।।
पंचाशल्लक्षपूर्वायु:, सार्द्धत्रिशतचापम:।
पंचकल्याणपूजाप्त:, कपिचिन्हसमन्वित:।।७।।
वैशाखस्य सिते षष्ठ्यां, मातुर्गर्भे समागत:।
द्वादश्यां माघशुक्लायां, जन्माभिषेकमाप्तवान्।।८।।
तत्तिथावेव दीक्षां च, गृहीत्वा स तपोधन:।
पौषे शुक्लचतुर्दश्यां, केवलिश्रियमाप्तवान्।।९।।
गर्भतिथौ विमुक्तोऽभूत्, परमानंद-सौख्यभृत्।
निरंजनो निराकार:, त्रिलोकैकशिखामणि:।।१०।।
उपजाति छन्द:-(११ अक्षरी)
सुखाभिनंदादभिनंदनो य:, जगत्त्रयं नंदितवान् वचोभि:।
पोतायमानो भवसिंधु-गानां, पुनातु मेऽन्त: स हि देहिनां च।।११।।