जैनशासन में दो प्रकार के पर्व माने हैं –१. अनादि पर्व , २. सादि पर्व। जो पर्व किसी के द्वारा शुरू नहीं किये जाते हैं ,प्रत्युत [[अनादिकाल]] से स्वयं चले आ रहे हैं और [[अनंतकाल]] तक चलते रहेंगे वे अनादिपर्व कहे जाते हैं । जो पर्व किन्हीं महापुरुषों की स्मृति में प्रारंभ होते हैं , वे सादिपर्व होते हैं । इस परिभाषा के अनुसार सोलहकारण-दशलक्षण -अष्टान्हिका ये तीन अनादि पर्व कहलाते हैं । इनमें से यहाँ दशलक्षण पर्व के संदर्भ में जानना है कि यह अनादिनिधन पर्व वर्ष में तीन बार आता है । १. भादों के महीने में । २. माघ के महीने में । ३. चैत्र के महीने में । इन तीनों महीनों में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि से चतुर्दशी तक दश दिनों में दशलक्षण पर्व मनाया जाता है । दशलक्षण पर्व में जिन दश धर्मों की आराधना की जाती है , उनके नाम इस प्रकार हैं – १. उत्तम क्षमा २. उत्तम मार्दव ३. उत्तम आर्जव ४.उत्तम सत्य ५. उत्तम शौच ६. उत्तम संयम ७. उत्तम तप ८. उत्तम त्याग ९. उत्तम आकिंचन्य१०. उत्तम ब्रम्हचर्य। विशेषरूप से भादों के महीने में पूरे देश के अन्दर यह दशलक्षण पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है और इन दश दिनों में लोग खूब व्रत- उपवास भी करते हैं तथा समाज में अनेक प्रकार के धार्मिक- सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं । प्राचीन परम्परा के अनुसार दशलक्षण के दश दिनों में तत्त्वार्थसूत्र ग्रन्थ की १-१ अध्याय के वाचन – प्रवचन की भी परम्परा रहती है । इस इन्साइक्लोपीडिया में “,अमूल्य प्रवचन नाम की श्रेणी में तत्त्वार्थसूत्र के सुन्दर प्रवचन दशों अध्याय के हैं , उनका उपयोग भी आप कर सकते हैं । इसी संदर्भ में यहाँ दशधर्मों से संबंधित एवं तत्त्वार्थसूत्र के दशों अध्याय की प्रश्नोत्तरी आदि कुछ सामग्री प्रस्तुत की जा रही है । आप सभी इसे विभिन्न रूप में प्रयोग करके धर्मलाभ प्राप्त करें यही मंगल कामना है ।