महाराज आगम के अनुरूप # मुनितीर्थ रक्षक # जिनवाणी रक्षक # जिनमंदिर रक्षक # दान परम्परा के रक्षक # समाधिविधि के रक्षक तथा प्रवर्तक रहे हैं।
१. मुनि तीर्थ रक्षक-हे भव्य महानुभावों! आजकल जो संयम का हरा भरा बगीचा नजर आ रहा है वो आचार्य शांतिसागर जी की ही कृपा है, आज से २०० वर्ष पूर्व मुनि धर्म की हीनता (शिथिलता) थी।
वो आचार्यश्री ने स्वयं मूलाचारादि आचार ग्रन्थों को पढ़कर उसके अनुसार काल और शांति के अनुसार चलकर भव्यों का चलाया सो आज भारत में सहस्राधिक पिच्छी धारी उपलब्ध हैं, और बढ़ ही रहे हैं भव्यों को त्याग तप का उपदेश देकर मोक्षमार्ग में लगा रहे हैं।
२. जिनवाणी रक्षक-षट्खण्डागम धवल ग्रंथ को ताड़पत्र से ताम्रपत्र पर खुदवाकर सुरक्षित किया।
३. जिनमंदिर रक्षक-तीन वर्ष तक अन्न का त्याग करके जिनमंदिरों की रक्षा की जिनसे जिनराज के मंदिरों में हर कोई अशुद्ध लोग प्रवेश न करें।
४. दान परम्परा के रक्षक-श्रावक को नवधा भक्तिपूर्वक आहार दानादि देना सिखाया, प्रेरणा दी। जैसे-घासीलाल, पूनमचंद सेठ ने आचार्यश्री को पूरे देश में सिद्धक्षेत्र अतिशयक्षेत्रों पर विहार कराया, धर्म की प्रभावना की, वो शिक्षा आज भी श्रावकों को मिल रही है।
५. समाधिविधि के रक्षक-साधु वर्गों को अपना शरीर इन्द्रियाँ संयम में बाधक होने पर अथवा किसी भी प्रकार से धर्म रक्षा हेतु समाधि स्वीकार करे। आपने १२ वर्ष की समाधि ग्रहण की अन्त में ३६ दिन तक नियम और यम सल्लेखना करके कुंथलगिरी पर समाधि की वो शिक्षा आज भी साधुओं को मिल रही है, श्रावकों को मिल रही है।
आचार्य श्री मानव-पशु सबके उपकारी थे। इसलिए उनका १३९ वाँ जन्म महोत्सव मनाकर हमें प्रेरणा प्राप्त करनी चाहिए ।
आचार्यश्री का # बाल्यकाल # जवानी # मुनि अवस्था # आचार्यकाल # समाधिकाल पूरा जीवन शिक्षाप्रद था। हम सबको उनके जीवन से शिक्षा लेनी चाहिए।