ग.प्र.आ.शि.ज्ञानमती माताजी : ऐसी चर्चाये आज कल ही नहीं किन्तु आ. वीर सागर महाराज के संघ में भी आई थी. आज तुम्हे सिर्फ आगम सम्मत ही नहीं पर गुरु का आदेश भी सुनाती हूँ।
एक बार एक आर्यिका सिद्धमती जी ने कहा-‘‘हम आर्यिकाओं के २६ ही मूलगुण हैं। चॅूंकि हमारे पास वस्त्र हैं और हम लोग बैठकर आहार लेती हैं।’’
तब मेरे मन में आशंका होने से मैंने आचार्यदेव के समक्ष समाधान चाहा। मैंने जाकर प्रश्न किया-‘‘गुरुदेव! हमारे कितने मूलगुण हैं?’’
यह समाधान प्राप्त कर मुझे बहुत ही प्रसन्नता हुई।
एक बार रात्रि में मुझे दीर्घ शंका का प्रसंग आया। तब मैंने प्रातःकाल आचार्यश्री से प्रायश्चित्त माँगा और भविष्य के लिए मार्गदर्शन चाहा, तब आचार्यदेव ने कहा-
कफ या दाँतों से खून बार-बार आने पर पास में लकड़ी आदि के छोटे पात्र में (ग्लास में) राख डालकर रख लेना चाहिए।’’
इत्यादि अनेक समयोचित समस्याओं का समाधान मैंने गुरु से प्राप्त किया था और आज उसी के अनुरूप अपनी चर्या में मैं सतत सावधान रहने का प्रयास करती रहती हूँ।