आज परम पवित्र पर्यूषण के क्षमावाणी पर्व का दिन है। संसारी जीव प्रतिदिन अज्ञान से, प्रमाद से, कषायों से अनेक अपराध करता ही रहता है। हम सबने आत्मशुद्धि के इस पावन पर्व में प्रतिदिन वीतराग सर्वज्ञदेव के दर्शन, स्तुति, पूजन, जप, ध्यान स्वाध्याय आदि अनेक धर्म कार्यों का यथाशक्ति पालन किया है। इस धर्मों पर व्याख्यान सुने हैं और ‘तत्त्वार्थ सूत्र’ का अर्थ भी श्रवण किया है, इन शुभ क्रियाओं तथा शास्त्र के मनन चिंतन से हमारे तथा आपके परिणामों में सहिष्णुता, मुदृता, ऋजुता एवं संतोष गुणों का प्रादुर्भाव हुआ है। हमारे ये परिणाम स्थाई रूप से सदा बने रहें, ऐसी हम और आप भावना करें। इस प्रकार की भावना के बल से हम और आप अपनी आत्मा को निर्विकार परम पवित्र बना सकते हैं। हमारे दैनिक जीवन में हम कुछ ऐसे दोष भी करते हैं, जिनका सम्बन्ध अपने और पराए दोनों से होता है। वह दोष मनुष्य स्वयं करता है पर उस दोष से दूसरा मनुष्य भी प्रभावित होता है। उदाहरण के लिए हम क्रोध में आकर दूसरों को गाली देते हैं, झगड़ा करते हैं, मारपीट भी करते हैं। यह दोष हम तो करते हैं, लेकिन इस दोष का शिकार दूसरा व्यक्ति भी होता है और यह दोष उस व्यक्ति के दिल में कांटे की तरह चुभता रहता है। यह चुभन उसमें बदले की भावना पैदा करती है और समय पाकर यह भावना बैर का रूप धारण कर लेती है अत: ऐसे दोषों की निवृत्ति के लिए सबसे अच्छा उपाय यही है कि हम विनम्र होकर उससे अपने अपराधों की क्षमा याचना करें। अपनी करनी वापस लेकर अपने हृदय की शुद्धि करें और उस व्यक्ति की शल्ह चाहे वह बदले की भावना रूप हो या अन्य किसी रूप में हटाने की चेष्टा करें। वर्ष में एक बार आने वाला यह क्षमावाणी पर्व हमें दूसरों के प्रति किए गए अपराधों के लिए क्षमा माँगने का अवसर प्रदान करता है। बैर भाव तो एक दिन भी रखने की वस्तु नहीं है। प्रथम तो बैर भाव धारण ही नहीं करना चाहिए। यदि कदाचित हो भी जाए तो उसे तत्काल मिटा देना चाहिए। इसके बाद भी यदि रह जाए तो फिर क्षमावाणी के दिन तो मन साफ हो ही जाना चाहिए। क्षमा मांगने में बाधक क्रोध कषाय नहीं, अपितु मान कषाय है। क्रोध कषाय क्षमा कराने में बाधक हो सकती है, क्षमा माँगने में नहीं। जब हम कहते हैं—
अर्थात् जब जीवों को मैं क्षमा करता हूँ, सब जीव मुझे क्षमा करें। सब जीवों से मैत्री भाव है, किसी से भी बैर भाव नहीं है। तब हम ‘मैं सब जीवों का क्षमा करता हूँ।’ यह कह कर क्रोध के त्याग का संकल्प करते हैं या क्रोध के त्याग की भावना करते हैं तथा ‘सब जीव मुझे क्षमा करें’ कहकर मान के त्याग का संकल्प करते हैं या मान के त्याग की भावना मायाचार के त्याग रूप सरलता प्राप्त करने की भावना है। इस तरह से हम देखते हैं कि दश लक्षण पर्व के तुरन्त बाद आने वाला क्षमावाणी पर्व एक महान पर्व है। यदि संसार के सभी धर्मों के लोग क्षमावाणी पर्व मनाने लगें तो समूचे विश्व में शांति अनायाय ही स्थापित हो सकती है।