पर्यूषण पर्व एक महान पर्व है। जो अनादि—निधन है, जिसे किसी ने तैयार नहीं किया है। यह अनादि पर्व अति महान पर्व है। साल में जो भी त्यौहार आते हैं यह सब मौज—मस्ती के और पैसा खर्च कराने वाले त्यौहार है। लेकिन पर्यूषण पर्व एक ऐसा पर्व है जो अपने आत्मा की विशुद्धि को बढ़ाता है। यह साल में तीन बार आता है भाद्रपद चैत्र और फाल्गुन। लेकिन ज्यदा उत्साह से और विशुद्धि से भाद्रपद महीने के पर्यूषण पर्व को मनाया जाता है। इस दस दिन में दस धर्म आते हैं—उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम शौच, उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम आकिंचन और उत्तम ब्रह्मचर्य। पहला धर्म है उत्तम क्षमा क्योंकि क्षमा यह आत्मा का महत्त्वपूर्ण है। क्षमा वीरों का आभूक्षण है। सब लोग सोने के, मोती के, डायमण्ड के आदि आभूषण पहनकर अपने शरीर को सजाते हैं। लेकिन क्षमा रूपी आभूषण पहनकर अपने आत्मा को सजाना बहुत जरूरी है। मगर हम सोने या डायमण्ड आदि के आभूषण पहनकर दुनियां में घूमेंगे तो चोर शत्रु आपके पीछे पड़ेंगे। अगर आप क्षमा रूपी आभूषण पहनोगे तो आत्मा का शत्रु क्रोध वहां से भाग जायेगा और क्रोध भाग गया तो उसके अनेक साथीदार भी आत्मा से बाहर निकल जायेंगे। इसलिए क्षमारूपी आभूषण से अपने आत्मा को सजाओ। क्षमा दस धर्म का सार है। अगर एक क्षमा गुण आत्मा में आता है तो बाकी के नौ धर्म अपने आप आ जाते हैं। ऐसे कहो कि क्षमा दस धर्मों का राजा है। एक क्षमा गुण अपन धारण करते हैं तो उसके साथ अनेक गुण प्रकट हो जाते हैं। क्षमा को चिंतामणि रत्न कहते हैं। जैसे चिंतामणि रत्न चिंतित वस्तु देता है। पारसमणि लोहे को सोना बनाता है। उसी तरह क्षमा आत्मा को शुद्ध बनता है और इस भयानक संसार रूपी महावन से मुक्त हो जाता है। ऐसे ही बाकी के नौ धर्म भी आत्मा के गुण है। जैसे क्षमा धारण करते हैं तो क्रोध नष्ट होता है। मार्दव गुण को धारण करते हैं तो मान कषाय भाग जाता है। आर्जव को धारण करते हैं, माया कषाय निकल जाता है। शौच गुण धारण करते हैं तो लोभ कषाय भाग जाता है और ये चार कषाय भाग गये तो आत्मा के अनेक गुण प्रकट होते हैं। जिसने क्षमा को धारण किया वह भवसागर को जल्दी ही पार करता है भव समुद्र पार होने के लिए यह क्षमा जहाज है। जिसमें बैठकर यह जीव जल्दी भवसागर को पार कर जाता है। भगवान पाश्र्वनाथ को कमठ के जीव ने सात भव तक उपसर्ग करता रहा लेकिन पाश्र्वनाथ भगवान ने क्षमा को धारण किया तो संसार को पार कर मोक्ष महल में पहुँच गये और कमठ ने क्रोध को अपनाया उसे अपने पास रखा और अपना संसार बढ़ाया। क्षमा को धारण करोगे तो पाश्र्वनाथ की तरह संसार के तीन लोक के ऊपर जाओगे और क्रोध करोगे तो कमठ के मठ में चले जाओगे।क्षमा बराबर तप नहीं, क्षमा धर्म आधार।
ज्ञानी का भूषण क्षमा, क्रोध विनाशन उद्धार।।’क्षमा एक तप है, जिसमें तपकर वह जीव शुद्ध बनता है। जैसे सोने को अग्नि में तपाने से वह ज्यादा चमकता है। जितने ताप सोने को दिया जाता है उतना ही उसमें पीलापन ज्यादा आता है, वह शुद्ध होता है। मिट्टी का घड़ा भी तपने से ही अच्छा बनता है। यह जीव भी संसार में कर्मों की मिट्टी से ढका हुआ है उसको क्षमारूपी तप की अग्नि में तपाने से ये कर्म नष्ट हो जायेंगे और यह जीव भी शुद्ध बन जायेगा। क्षमा को धर्म का आधार कहा है। क्षमा दस धर्म का आधार है, जीव में क्षमा भाव आता है तो उसमें बाकी के धर्म भी उसमें आ जाते हैं और क्षमा ज्ञानी का आभूषण है। जो भी ज्ञानी हुए ज्ञानी है। वह क्षमा धर्म का पालन करते हैं। भगवान पाश्र्वनाथ ज्ञानी थे सो उन्होंने कमठ को क्षमा करते गये और अपने ज्ञाननन्द स्वरूप को प्राप्त हो गये। क्षमा को धारण करने से क्रोध का नाश होता है। क्रोध से आत्मा को कर्मों का बंध होता है और संसार में परिभ्रमण चलता है। क्षमा भाव धारण करने से क्रोध का नाश होता है। आत्मा संसार परिभ्रमण से छूट जाता है। अपने भगवान स्वरूप आत्मा को प्राप्त कर लेता है। इसलिए क्षमा भाव धारण करना आवश्यक है।बंधन के लिए अहंकार काफी है, पतन के लिए कषाय काफी है।
इसलिये कहती हूँ बन्धुओं, भगवान बनने के लिए क्षमा काफी है।।’