क्षमा फूल है कांटा नहीं, क्षमा प्यार हैं चांटा नहीं
अन्तर्मना मुनि १०८ श्री प्रसन्न सागर जी महाराज
उदयपुर, ९ सितम्बर १३ आज। यहां सर्वऋतुविलास स्थित अन्तर्मना सभागार में पर्युषण पर्व के दिवस पर सम्बोधित करते हुए पूज्य अन्तर्मना मुनि १०८ श्री प्रसन्न सागर जी महाराज ने कहा कि पर्युषण महापर्व दशलक्षण पर्व के नाम से भी दिगम्बर आमनाओं में महामहोत्सव के रूप में आयोजित है। पर्युषण पर्व का अर्थ सभी तरह से अपनी कषाय और कर्मों का उष्ण करना, तप्त करना, भस्म करना है। यह विशुद्धि आध्यात्मिक पर्व हैं, जिसमें कर्मों और कषायों का विधिवत् नाश करने की साधना है। इसके दस आयाम है, उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम शौच, उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिंचन्य, और उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म। इन्हें ही दशलक्षण धर्म कहते हैं। यह दसों धर्म उत्तरोत्तर ऊँचाइयों की ओर ले जाते हैं एवं परम मुक्ति द्वार में प्रवेश कराते हैं। मुनि श्री ने आज के उत्तम क्षमा धर्म पर कहा कि उत्तम क्षमा धर्म:—क्षपृथ्वी / पृथ्वी जैसे सहन करती हैं, उसी आकार समता स्वभाव से दूसरों के क्रोध को सहन करना क्षमा धर्म है। क्षनष्ट होना, मानहीं, जो नष्ट होने से बचाये वही उत्तम क्षमा धर्म है। क्रोध के निमित्त उपस्थित होने पर भी जो महानुभाव उत्तम क्षमा भाव को धारण करता है उन श्रमण राज को उत्तम क्षमा धर्म होता है। अथवा दुष्ट, अज्ञानी, जीव गाली निंदा—आताड़ना आदि करने पर भी जो समता भाव से सहन किया जाता है उसको उत्तम क्षमा कहते हैं। क्षुभित होने के कारण होते हुए भी एवं अतिशोध लेने की शक्ति होने पर भी क्षुभित नहीं होना ही उत्तम क्षमा है।
अपकारी के प्रति भी उपकार की भावना रखना, विपरीत कारण मिले, क्रोध नहीं करने की साधना को कहते हैं उत्तम क्षमा। किसी भी परिस्थिति में क्रोध अच्छा नहीं। क्रोध के आवेग में व्यक्ति विचार शून्य हो जाता है, हिताहित का विवेक खो देता है। क्रोध एक तात्कालिक पागलपन है। जिसके बाद पश्चाताप शेष रह जाता है। तलवार उठाता वीरता नहीं, तलवार छोड़ना वीरता है क्रोध करने से कोई महान नहीं होता, क्षमा से महानता मिलती है। क्रोध से दुश्मन को मारा जाता हैं, क्षमा से दुश्मनी को मारा जाता है। दुश्मन को मारने से दुश्मन नहीं मरता। दुश्मनी को मारने से दुश्मन सदा के लिए समाप्त हो जाता है। भगवान महावीर ने कहा की, क्रोध से भी ज्यादा खतरनाक बैर होता है। क्रोध आता है और चला जाता है पर बैर जन्म जन्मांतर तक साथ जाता है। इसलिये क्रोध को कभी बैर मत बनने देना। क्रोध बैर बनता है जब आपस में बोलाचाली बंद हो जाती हैं। इसलिये वैâसी भी परिस्थिति आ जाये आदमी को बोलाचाली बंद नहीं करना चाहिये। बस यही बोलचाल क्षमा का एक रूप है। क्षमा मांगने की चीज नहीं धारण करने की चीज हैं। क्षमा धारण करके किया गया क्रोध एक अभिनय होगा, पर क्रोध नहीं। मुनि श्री ने [[तत्वार्थ सूत्र]] का वाचन करते हुए बताया कि तत्त्वार्थ सूत्र के संस्कार इसके सुनने मात्र से ही मिलते हैं जो जिन्दगी के अन्त समय तक अपना प्रभाव छोड़ते है। प्रतिकूल परिस्थितियों के आने पर भी हमने यदि अपनी सहन शीलता, क्षमता को नहीं खोया तो समझ लेना हमने उत्तम क्षमा को पा लिया है। इसके पूर्व संघस्थ मुनि श्री पीयुष सागर जी महाराज ने भी धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि तत्त्वार्थ सूत्र का दूसरा नाम मोक्ष शास्त्र है। इसमें लोक विज्ञान, भू—विज्ञान, जीव विज्ञान, खगोल, वनस्पति आदि सभी गूढ़ विषयों की सूक्ष्म विवेचना है। इसकी रचना परम पूज्य आचार्य [[उमा स्वामी]] द्वारा की गयी थी। यह तत्त्वार्थ सूत्र गागर में सागर है, जैन धर्म की गीता समान है। हमारी धरोहर क्या है, और आत्मा के स्वरूप के चिन्तन की विवेचना इस ग्रंथ में कही गयी है। हम अपने स्वरूप को समझे, और पर्युषण पर्व के १० दिनों में [संयम, तप, त्याग, ब्रह्मचर्य आदि का पालन करते हुए अपने जीवन को उन्नत और जाग्रत बनायें। अन्तर्मना रजत वर्षा याग समिति के प्रचार—प्रसार मन्त्री महावीर प्रसाद भाणावत ने बताया कि आज प्रात: से सामूहिक पूजन, अभिषेक कार्य अत्यधिक संख्या में उपस्थित श्रावकों द्वारा पूज्य मुनि श्री के सानिध्य में सम्पन्न हुये। सांयकाल ५ : ३० बजे श्रावक प्रतिक्रमण एवं ७ : ०० बजे से आनन्द यात्रा सत्संग के नियमित कार्यक्रम होंगे। अनेक श्रावों द्वारा आज मुनि श्री के सम्मुख १० उपवास की तप आराधना करने का संकल्प देने हेतु निवेदन किया गया है।