विजओ हेरण्णवदो हेमवदो वप्पवण्णणाजुत्तो।
णवरि विसेसो एक्को दहणाभिणईण अण्णणामािण१।।२३५०।।
तस्स बहुमज्झभागे विजयड्ठो होदि गंधवंतो त्ति।
तस्सोवरिमणिकेदे पभासणामो ठिदो देवो।।२३५१।
हैरण्यवतक्षेत्र हैमवतक्षेत्र के समान वर्णन से युक्त है। विशेषता केवल एक यही है कि यहाँ द्रह, नाभिगिरि और नदियों के नाम भिन्न हैं।।२३५०।।
इस क्षेत्र के बहुमध्य भाग में गन्धवान् नामक विजयार्ध (नाभिगिरि) है। इसके ऊपर स्थित भवन में प्रभास नामक देव रहता है।।२३५१।।