चेट्ठेदि कमलभवणे देवी कित्ति त्ति विक्खादा१।।२३३२।।
धिदिदेवीय समाणो तीए सोहेदि सव्वपरिवारो।
दसचावािंण तुंगा णिरुवमलावण्णसंपुण्णा।।२३३३।।
आदिमसंठाणजुदा वररयणविभूसणेिह विविहेिह।
सोहिदसुंदरमुत्ती ईसािणदस्स सा देवी१।।२३३४।।
महापुण्डरीक सरोवर के कमलों में जिनमंदिर
महपुंडरीयणामा दिब्वदहो सिहरिसेलसिहरम्मि।
पउमद्दहसारिच्छा वेदीपहुदेिह कयसोहा२।।२३६०।।
तस्स सयवत्तभवणे लच्छियणामेण णिवसदे देवी।
सिरिदेवीए सरिसा ईसाणिंदस्स सा देवी।।२३६१।।
कमलों में जिनमंदिर (तिलोयपण्णत्ति से)
तालाब के मध्य में बयालीस कोस ऊँचा और एक कोस मोटा कमल का नाल है। इसका मृणाल रजतमय और तीन कोस बाहल्य से युक्त है।।१६६७।। उत्सेध को. ४२, बा. को. १। उस कमल का कन्द अरिष्टरत्नमय और नाल वैडूर्यमणि से निर्मित है। इसके ऊपर चार कोस ऊँचा किंचित् विकसित पद्म है।।१६६८।। उसके मध्य में चार कोस और अन्त में दो अथवा चार कोस विस्तार है। उसकी कर्णिका की ऊँचाई और आयाम में से प्रत्येक एक कोसमात्र है।।१६६९।। को. ४। २। ४। को. १। अथवा कर्णिका की ऊँचाई और लम्बाई दो-दो कोस मात्र है। यह कमलकर्णिका ग्यारह हजार पत्तों से संयुक्त है। इस कर्णिका के ऊपर वैडूर्यमणिमय कपाटों से संयुक्त और उत्तम स्फटिकमणि से निर्मित कूटागारों में श्रेष्ठ भवन है। इसकी लम्बाई एक कोस, विस्तार अर्ध कोस प्रमाण और ऊँचाई एक कोस के चार भागों में से तीन भागमात्र है।।१६७०-१६७१।। को १। १/२ । ३/४। इस भवन में पल्योपम प्रमाण आयु की धारक और दश धनुष ऊँची श्री नामक सौधर्म इन्द्र की सहदेवी निवास करती है।।१६७२।। श्रीदेवी के सामानिक, तनुरक्ष, तीनों प्रकार के पारिषद, अनीक, प्रकीर्णक, आभियोग्य और किल्विषिक जाति के देव हैं।।१६७३।। विविध प्रकार के अंजन और भूषणों से शोभायमान तथा सुप्रशस्त एवं विशालकाय वाले वे सामानिक देव चार हजार प्रमाण हैं।।१६७४।। ४०००। ईशान, सोम (उत्तर) और वायव्य दिशाओं के भागों में पद्मों के ऊपर उन सामानिक देवों के चार हजार भवन हैं।।१६७५।। ४०००। श्रीदेवी के तनुरक्षक देव सोलह हजार हैं। इनके पूर्वादिक दिशाओं में से प्रत्येक दिशा में चार हजार भवन हैं।।१६७६।। ४ ² ४००० · १६०००। अभ्यन्तर परिषद् में बत्तीस हजार देवों का अधिपति धीर आदित्य नामक उत्तम देव है।।१६७७।। पद्मद्रह के कमलों के ऊपर आग्नेय दिशा में उन देवों के उत्तम रत्नों से रचित बत्तीस हजार भवन हैं।।१६७८।। ३२०००। पद्मद्रह पर मध्यम परिषद् के बहुत यान और शस्त्रयुक्त चालीस हजार देवों का अधिपति चन्द्र नामक देव है।।१६७९।। ३२०००। (यहाँ भवनों की दिशा और संख्यासूचक गाथा त्रुटित प्रतीत होती है) बाह्य परिषद् के अड़तालीस हजार देवों का स्वामी प्रतापशाली जतु नामक देव श्रीदेवी की सेवा करता है।।१६८०।। ४८०००। नैऋत दिशा में उन देवों के उन्नत तोरणद्वारों से रमणीय अड़तालीस हजार भवन पद्मद्रह के मध्य में स्थित हैं।।१६८१।। ४८०००। कुंजर, तुरंग, महारथ, बैल, गन्धर्व, नर्तक और दास, इनकी सात सेनाएँ हैं। इनमें से प्रत्येक सात कक्षाओं से सहित हैं।।१६८२।। प्रथम अनीक का प्रमाण सामानिक देवों के सदृश है। शेष छह सेनाओं से प्रत्येक का प्रमाण उत्तरोत्तर दूना-दूना है।।१६८३।। निर्मल शक्ति से संयुक्त देव हाथी आदि के शरीरों की विक्रिया करते हैं और माया एवं लोभ से रहित होकर नित्य ही श्रीदेवी की सेवा करते हैं।।१६८४।। सात अनीक देवों के सात घर पद्मद्रह के पश्चिम प्रदेश में कमलकुसुमों के ऊपर सुवर्ण से निर्मित हैं।।१६८५।। उत्तम रूप व विनय से संयुक्त और बहुत प्रकार के उत्तम परिवार से सहित ऐसे एक सौ आठ प्रतीहार, मंत्री एवं दूत हैं।।१६८६।। उनके अतिशय रमणीय एक सौ आठ भवन द्रह के मध्य में कमलों पर दिशा और विदिशा के विभागों में स्थित हैं।।१६८७।। पद्मपुष्पों पर स्थित जो प्रकीर्णक आदिक देव हैं, उन चारों के प्रमाण का उपदेश कालवश नष्ट हो गया है।।१६८८।। वे सब अकृत्रिम पृथिवीमय सुन्दर कमल एक लाख चालीस हजार एक सौ सोलह हैं।।१४०११६।। १६८९।। इस प्रकार कमलों के ऊपर स्थित उन महानगरों का प्रमाण (एक लाख चालीस हजार एक सौ सोलह) है। इनके अतिरिक्त क्षुद्रपुरों की पूर्णरूप से गिनती करने के लिए कौन समर्थ हो सकता है?।।१६९०।। पद्मद्रह में सब ही उत्तम गृह पूर्वाभिमुख हैं और शेष क्षुद्रगृह यथायोग्य उनके सन्मुख स्थित हैं।।१६९१।। उन कमलपुष्पों पर जितने भवन कहे गए हैं, उतने ही वहाँ विविध प्रकार के रत्नों से निर्मित जिनगृह भी हैं।।१६९२।। वे जिनेन्द्रप्रासाद नाना प्रकार के तोरणद्वारों से सहित और झारी, कलश, दर्पण, बुदबुद्, घंटा एवं ध्वजा आदि से परिपूर्ण हैं।।१६९३।। उन जिनभवनों में उत्तम चमर, भामण्डल, तीन छत्र और पुष्पवृष्टि आदि से संयुक्त जिनेन्द्र प्रतिमाएँ विराजमान हैं।।१६९४।।
रोहितास्या नदी का वर्णन
पद्मद्रह के उत्तर भाग से रोहितास्या नामक उत्तम नदी निकलकर दो सौ छियत्तर योजन से कुछ अधिक दूर तक (पर्वत के ऊपर) जाती है।।१६९५।। २७६-६/१९। इस नदी का विस्तार, गहराई, तोरणों का अन्तर, कूट, प्रणलिकास्थान, धारा का विस्तार, कुण्ड, द्वीप, अचल और कूट का विस्तार इत्यादि तथा वहाँ पर तोरणद्वार में तोरणस्तम्भ इन सबका वर्णन गंगानदी के सदृश ही जानना चाहिये। विशेष यह है कि यहाँ पर इन सबका विस्तार गंगानदी की अपेक्षा दूना है।।१६९६-१६९७।।
महापद्म सरोवर में कमलों पर जिनमंदिर
महाहिमवान् पर्वत पर स्थित महापद्म नामक द्रह पद्मद्रह की अपेक्षा दुगुणे विस्तार, लंबाई व गहराई से सहित है।।१७२७।। विस्तार १०००। आयाम २०००। गहराई २०। उन तालाब में कमल के ऊपर स्थित प्रासाद में बहुत से परिवार से संयुक्त तथा श्रीदेवी के सदृश वर्णनीय गुणसमूह से परिपूर्ण ह्री देवी रहती है।।१७२८।। यहाँ विशेषता केवल यह है कि ह्री देवी के परिवार और पद्मों की संख्या श्रीदेवी की अपेक्षा दूनी है। इस तालाब में जितने प्रासाद हैं उतने ही रमणीय जिनभवन भी हैं।।१७२९।। इस तालाब के ईशानदिशाभाग में सुन्दर वैश्रवण नामक कूट, दक्षिणदिशाभाग में श्रीनिचय नामक कूट, नैऋत्यदिशाभाग में विचित्र रत्नों से निर्मित महाहिमवान् कूट, पश्चिमोत्तरभाग में ऐरावत नामक कूट और उत्तरभाग में श्रीसंचय नामक कूट स्थित है। इन कूटों से महाहिमवान् पर्वत पंचशिखर कहलाता है।।१७३०-१७३२।। ये सब कूट व्यन्तरनगरों से परम रमणीय और उपवनवेदियों से संयुक्त हैं। तालाब के उत्तरपाश्र्व भाग में जल में जिनकूट है।।१७३३।। श्रीनिचय, वैडूर्य, अंकमय, आश्चर्य, रुचक, उत्पल और शिखरी, ये कूट जल में प्रदक्षिण रूप से स्थित हैं।।१७३४।। इस तालाब के दक्षिणद्वार से प्रचुर जलसंयुक्त रोहित् नदी निकलती है और पर्वत पर पाँच से गुणित तीन सौ इक्कीस योजन से अधिक दक्षिण की ओर जाती है।।१७३५।। ३२१ ² ५ · १६०५-५/१९। रोहित् नदी का विस्तार आदि रोहितास्या के समान है। यह नदी हैमवतक्षेत्र में नाभिगिरि की प्रदक्षिणा करती हुई पूर्वाभिमुख होकर आगे जाती है।।१७३६।। इस प्रकार यह नदी उस हैमवतक्षेत्र के बहुमध्यभाग से द्वीप की वेदी के बिलद्वार में जाकर अट्ठाईस हजार नदियों सहित लवणसमुद्र में प्रवेश करती है।।१७३७।। २८०००।
तिगिछ सरोवर के कमलों में जिनमंदिर
निषधपर्वत के बहुमध्यभाग में पद्मद्रह की अपेक्षा चौगुणे विस्तारादि से सहित और तिगछ नाम से प्रसिद्ध एक दिव्य तालाब है।।१७६१।। व्यास २०००, आयाम ४०००, अवगाह ४०, नाल की ऊँचाई ४२, संख्या ५६०४६४, बाहल्य १, मृणाल ३, पद्म ४, मध्यव्यास ४, अंतव्यास २ वा ४ योजन। उस द्रहसम्बन्धी पद्म के ऊपर स्थित भवन में बहुत परिवार से संयुक्त और अनुपम लावण्य से परिपूर्ण धृति देवी निवास करती है।।१७६२।। एक पल्यप्रमाण आयु की धारक और नाना प्रकार के रत्नों से भूषित शरीर वाली अतिरमणीय वह व्यन्तरिणी सौधर्म इन्द्र की देवी है।।१७६३।। उस तालाब में जितने पद्मगृह हैं, उतने ही भव्यजनों को आनन्दित करने वाले किन्नरदेवों के युगलों से संकीर्ण जिनेन्द्रपुर हैं।।१७६४।। तििगछ तालाब के ईशानदिशाभाग में सुन्दर निषध नामक कूट, पश्चिमोत्तरकोण में ऐरावतकूट और उत्तरदिशा भाग में श्रीसंचय नामक कूट है। इन कूटों से निषधपर्वत ‘पंचशिखरी’ इस प्रकार प्रसिद्ध है।।१७६५-१७६७।। ये कूट उत्तम वेदिकाओं से सहित और व्यन्तरनगरों से अतिशय रमणीय है। उत्तरपाश्र्वभाग में जल में जिनकूट है।।१७६८।। तििगछ तालाब के जल में श्रीनिचय, वैडूर्य, अंकमय, अंबरीक (अच्छरीय · आश्चर्य), रुचक, शिखरी और उत्पल कूट स्थित हैं।।१७६९।।
पुण्डरीक सरोवर में कमलों में जिनमंदिर
रुक्मिपर्वत के ऊपर बहुमध्यभाग में फूले हुए प्रचुर कमलों से संयुक्त तििगछद्रह के समान प्रमाण वाला पुण्डरीक द्रह है।।२३४४।। उस द्रहसम्बन्धी कमल-भवन में बुद्धि नामक देवी निवास करती है। इसका परिवार कीर्तिदेवी की अपेक्षा आधा है।।२३४५।। अनुपम लावण्यमय शरीर से संयुक्त, उत्तम रत्नों के भूषणों से रमणीय और विविध प्रकार के विनोद से क्रीड़ा करने वाली वह ईशानेन्द्र की देवी है।।२३४६।। उस द्रह के दक्षिण तोरणद्वार से निर्गत नारी नदी स्तोकमुखी (अल्प-विस्तार) होकर नारी नामक कुण्ड में गिरती है।।२३४७।। पश्चात् वह कुण्ड के दक्षिण तोरणद्वार से निकलकर दक्षिणमुख होती हुई नाभिगिरि को पाकर और उसे हरित् नदी के समान ही प्रदक्षिण करके रम्यक भोगभूमि के बहुमध्य भाग में से पूर्व की ओर जाती हुई परिवार नदियों से युक्त होकर लवणसमुद्र में प्रवेश करती है।।२३४८-२३४९।।
नीलगिरि के केसरी सरोवर में कमलों में जिनमंदिर
नीलगिरि के ऊपर स्थित केसरी नामक दिव्य द्रह के मध्य में रहने वाले कमल-भवन पर कीर्ति नाम से विख्यात देवी स्थित है।।२३३२।। उस देवी का सब परिवार धृतिदेवी के समान ही शोभित है। यह देवी दश धनुष ऊँची और अनुपम लावण्य से परिपूर्ण है।।२३३३।। आदिम संस्थान अर्थात् समचतुरस्र संस्थान से सहित, विविध प्रकार के उत्तम रत्नों के भूषणों से सुशोभित सुन्दरमूर्ति वह ईशानेन्द्र की देवी है।।२३३४।।
महापुण्डरीक सरोवर के कमलों में जिनमंदिर
इस शिखरी शैल के शिखर पर पद्मद्रह के सदृश वेदी आदि से शोभायमान महापुण्डरीक नामक दिव्य द्रह है।।२३६०।। इस तालाब के कमल भवन में श्रीदेवी के सदृश जो लक्ष्मी नामक देवी निवास करती है, वह ईशानेन्द्र की देवी है।।२३६१।।
सीता-सीतोदा के सरोवरों में जिनमंदिरसीता-सीतोदा के सरोवरों में जिनमंदिर
एवं लक्षं चत्वारिंशत्सहस्राणि शतं दश पञ्च प्रमाणानि
कमलस्य परिवारपद्मानि १४०११५।।५७२।।
कमलों में जिनमंदिर (त्रिलोकसार से)
गाथार्थ —नील, उत्तरकुरु, चन्द्र, ऐरावत और माल्यवन्त ये पाँच द्रह सीता नदी के हैं तथा निषध, देवकुरु, सूर, सुलस और विद्युत ये पाँच सीतोदा नदी के द्रहों के नाम हैं।।६५७।।
गाथार्थ — ये सभी सरोवर नदी के प्रवेश एवं निर्गम द्वारों से सहित हैं तथा इन सरोवरों के परिवार आदि कमलों का वर्णन पद्मद्रह के सदृश ही है किन्तु सरोवर स्थित कमलों के गृहों में नागकुमारी देवियाँ निवास करती हैं।।६५८।।
विशेषार्थ — दोनों नदियों के प्रवाह के बीच में सरोवर हैं और इन सरोवरों की वेदिकाएँ हैं, जो नदी के प्रवेश और निर्गम द्वारों से युक्त हैं। इन सरोवरों के परिवार कमलों का वर्णन पद्मद्रह के परिवार कमलों के सदृश ही है। विशेषता केवल इतनी है कि इन कमलों पर स्थित गृहों में नागकुमारी देवियाँ सपरिवार निवास करती हैं। गाथार्थ — उन सरोवरों के दोनों तटों पर पाँच-पाँच काञ्चन पर्वत हैं जिनका उदय, भूव्यास और मुखव्यास क्रमशः सौ योजन, सौ योजन और पचास योजन प्रमाण है। ये सभी पर्वत ह्रदाभिमुख अर्थात् ह्रदों के सम्मुख हैं। इन पर्वतों के शिखरों पर पर्वत सदृश नाम एवं शुक सदृश कान्ति वाले देव निवास करते हैं।।६५९।।
हिमवन आदि कुलाचलों पर स्थित सरोवरों के नाम
हिमवत् आदि कुलाचलों पर स्थित सरोवरों के नाम कहते हैं—
गाथार्थ — हमवत् आदि पर्वतों पर क्रमशः पद्म, महापद्म, तिगिञ्छ, केसरी, महापुण्डरीक और पुण्डरीक ये छह सरोवर पर्वतों के सदृश हीनाधिक आयाम वाले हैं।।५६७।। उन सरोवरों के व्यासादिक का प्रतिपादन करते हुए वहाँ स्थित कमलों का स्वरूप कहते हैं—
गाथार्थ — पर्वतों के (अपने-अपने) उदय (उँचाई) को पाँच से गुणित करने पर द्रहों का व्यास, दस से गुणित करने पर द्रहों का आयाम और दस से भाजित करने पर द्रहों की गहराई प्राप्त होती है। द्रहों में रहने वाले कमलों का व्यास एवं उदय ये दोनों भी द्रहों की गहराई के दसवें भाग प्रमाण हैं।।५६८।।
विशेषार्थ — उन सरोवरों का व्यास, आयाम और गहराई का प्रमाण अपने-अपने पर्वतों की उँचाई के प्रमाण को क्रमशः ५ और १० से गुणित करने पर तथा १० से भाजित करने पर प्राप्त होता है तथा सरोवरों में स्थित कमलों का व्यास और उदय भी सरोवरों की गहराई के दशवें भाग प्रमाण है यथा हमवान् पर्वत की उँचाई १०० योजन है अतः उस पर स्थित पद्मद्रह की लम्बाई (१०० ² १०) · १००० योजन, चौड़ाई (१०० ² ५) · ५०० योजन और गहराई (१०० ´ १०) · १० योजन प्रमाण है। इस पद्मद्रह में रहने वाले कमल की उँचाई एवं चौड़ाई दोनों (१० ´ १०)· एक-एक योजन प्रमाण है। (२) महाहिमवान् पर्वत की उँचाई २०० योजन है अतः उस पर स्थित महापद्म सरोवर की लम्बाई (२०० ´ १०) · २० योजन, प्रमाण है। इस द्रह में रहने वाले कमल की उँचाई और व्यास दोनों (२० ´ १०) · २-२ योजन प्रमाण है। निषध पर्वत की उँचाई ४०० योजन है अतः उस पर रहने वाले तिगिञ्छ द्रह की लम्बाई (४०० ² १०) · ४००० योजन चौड़ाई (४०० ² ५) · २००० योजन और गहराई (४०० ´ १०) · ४० योजन प्रमाण है। इसमें स्थित कमल की उँचाई और व्यास दोनों (४०´१०) · ४-४ योजन प्रमाण है। कुलाचलों का उदय एवं सरोवरों के व्यास आदि का प्रमाण—
कमलों का वर्णन
दो गाथाओं द्वारा उन कमलों के विशेष स्वरूप को कहते हैं—
गाथार्थ —अपनी सुगन्ध से सुवासित की हैं दिशाएँ जिसने तथा जो वैडूर्यमणि से निर्मित उँची नाल से संयुक्त है ऐसा एक हजार ग्यारह पत्रों से युक्त नवविकसित कमल के सदृश पृथ्वीकायिक कमल सरोवर के मध्य में है।।५६९।।
विशेषार्थ—प्रथम पद्म सरोवर के मध्य में जो कमल है वह पृथ्वीस्वरूप है, उसकी नाल उँची और वैडूर्यमणि से बनी हुई है। उसके पत्रों की संख्या १०११ है और उसका आकार नवविकसित कमल के सदृश है।
गाथार्थ —कमल का अर्ध उत्सेध जल के बाहर निकला हुआ है। कमल की कर्णिका की उँचाई और चौड़ाई कमल के उदय और व्यास का चतुर्थांश है। उस कर्णिका पर श्रीदेवी का रत्नमय गृह है, उसकी दीर्घता, व्यास और उदय ये तीनों क्रमशः एक कोश, अर्ध कोश और दोनों के योग का अर्धभाग अर्थात् (१ ± १/२ · ३/२ ´ २) · पौन कोश प्रमाण है।।५७१।।
विशेषार्थ—कमल के उत्सेध का अर्ध प्रमाण अर्थात् १/२ योजन नाल जल से ऊपर निकली हुई है। कर्णिका का उदय और व्यास कमल के उदय और व्यास का चतुर्थांश है अर्थात् कमल का उदय और व्यास एक-एक योजन प्रमाण है अतः कर्णिका का उदय और व्यास (१ ´ ४) · १/४ · एक-एक कोश प्रमाण है। इसी कर्णिका पर श्रीदेवी का रत्नमय गृह है जिसकी लम्बाई एक कोश, चौड़ाई १/२ कोश और ऊँचाई ३/४ (पौन) कोश प्रमाण है।
कमल का विस्तार बताने वाली प्रक्षेप गाथा—
गाथार्थ —पद्मद्रह के मध्य में कमलनाल की उँचाई ४२ कोस और मोटाई एक कोस प्रमाण है। उसका मृणाल तीन कोस मोटा और रजतवर्ण का है।।५७०।।
विशेष—पद्मद्रह की गहराई १० योजन है। गाथा ५७० में कहा गया है कि कमलनाल जल से अर्ध योजन प्रमाण ऊपर है, इसी से यह सिद्ध होता है कि कमल नाल की कुल उँचाई १०-१/२ योजन है, तभी तो वह सरोवर की १० योजन की गहराई को पार करती हुई आधा योजन जल से ऊपर है। यही बात प्रक्षेप गाथा (५७०) कह रही है। इस गाथा में नाल की उचाई ४२ कोश कही गई है जिसके १०-१/२ योजन होते हैं। कमल, कमलनाल एवं कमलकर्णिका का उत्सेधादि—
कमलों पर निवास करने वाली देवियाँ एवं परिवार कमल की संख्या
कमलों पर निवास करने वाली देवियों के नाम, आयु और उनके परिवार के सम्बन्ध में कहते हैं—
गाथार्थ —श्री, ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी ये छहों देवाङ्गनाएँ (देवियाँ) एक-एक पल्य की आयु वाली हैं। ये देवांगनाएँ पद्मादि द्रह सम्बन्धी कमलों पर निवास करती हैं। उन्हीं पद्मादि द्रहों में एक-एक कमल के १, ४०, ११५ परिवार कमल हैं।
पद्मसरोवर में प्रत्येक कमल में जिनमंदिर हैं
(जंबूद्वीवपण्णत्ति से)
वरकण्णिया दुकोसा कोसपमाणा हवंति तह पत्ता।
णालाण रुंद कोसा दसजोयण साहिया दीहा।१२५।।
वेरुलियरयणणाला वंचणवरकण्णिया य णायव्वा।
विद्दुमपत्तेयारससहस्सगुणिदा समुद्दिट्ठा।।१२६।।
दिव्वामोदसुगंधा णववियसियपउमकुसुमसंकासा।
पउम त्ति तेण णामा जिणदइंदेिह णिद्दिट्ठा।।१२७।।
एयं च सयसहस्सं चालीसा तह सहस्ससंगुणिदा।
एयं च सयं सोलस पउमाणं होंति परिसंखा।।१२८।।
सत्तेव सयसहस्सा पंचसया तह असीदा य।
पंचण्हं तु दुहाणं परिमाणं हुंति पउमाणं।।१२९।।
जिणइंदवरगुरूणं सुिरदवरधिट्ठमउडचलणाणं।
रयणमया वरपडिमा पउमिणिपुफ्पेसु णिद्दिट्ठा।।१३०।।
तेसु पउमेसु णेयं वंचणमणिरयणसंधैसंछण्णा।
लंबंतकुसुममाला कालागरुकुसुमगंधड्ढा।।१३१।।
धुव्वंतधयवडाया मुत्तादामेिह सोहिया रम्मा।
गोउरकबाडजुत्ता मणिवेदिविहूसिया दिव्वा।।१३२।।
गाउअदलविक्खंभा गाउवदीहा दहाण पउमेसु।
गाउयवउभागूणा उत्तुंगा होति पासादा।।१३३।।
णिसधकुमारी णेया तह चेव य देवकुरुकुमारी य।
सूरकुमारी सुलसा विज्जुप्पह तह कुमारी य।।१३४।।
सीता-सीतोदा नदी के सरोवरों में कमलों में जिनमंदिर
अरहंताणं पडिमा पंचधणुस्सयसमुच्छिदा दिव्वा।
पलियंकासणबद्धा णाणामणिरयणपरिणामा१।।११३।।
लक्खणवंजणकलिया संपुण्णमियंकसोम्ममुहकमला।
उदयक्कमंडलणिभा विबुद्धसयवत्तकरकमला।।११४।।
आरत्तकमलचरणा भिण्णंजणसंणिहा हवे केसा।
आरत्तकमलणेत्ता विद्दुमसमतेयवरअहरा।।११५।।
सीहासणछत्तत्तयभामंडलधवलचामराजुत्ता।
मणिवंचणरयणमया पासादवरेसु ते होंति।।११६।।
चित्तविचित्तकुमारा ते देवा होंति तेसु सेलेसु।
भोगोवभोगजुत्ता बहुअच्छरपरिउडा धीरा।।११७।।
उत्तरदिसाविभागं गंतूणं जोयणाणि पंचसदा।
जमगेहिंतो परदो महादहा होंति सरिमज्झे।।११८।।
वरवेदिएहिं जुत्ता तोरणदारेहि मंडिया दिव्वा।
अक्खयअगाहतोया पंचेव य होंति णायव्वा।।११९।।
एक्केक्काणं अंतर पंचेव हवंति जोयणसयाणि।
तेवीसा बादाला बे चेव कला य मेरुस्स।।१२०।।
तेसीदा बादाला बे चेव कला य होइ परिमाणं।
दहमेरूणं अंतर णादव्वं होइ जिणदिट्ठं।।१२१।।
पुव्वावरवित्थिण्णा पंचेव हवंति जोयणसयाणि।
उत्तरदक्खिणभागे सहस्समेयं वियाणाहि।।१२२।।
पायालम्मि पइट्ठे दसजोयण वण्णिया समासेण।
पप्पुल्लकमलकुवलयणीलुप्पलकुमुदसंछण्णा।।१२३।।
तेसु वरपउमपुप्फा विक्खंभायाम जोयणपमाणा।
बाहल्लेण य कोसा जलादु बे उण्णया कोसा।।१२४।।
वरकण्णिया दुकोसा कोसपमाणा हवंति तह पत्ता।
णालाण रुंद कोसा दसजोयण साहिया दीहा।।१२५।।
वेरुलियरयणणाला वंचणवरकण्णिया य णायव्वा।
विद्दुमपत्तेयारससहस्सगुणिदा समुद्दिट्ठा।।१२६।।
दिव्वामोदसुगंधा णववियसियपउमकुसुमसंकासा।
पउम त्ति तेण णामा जिणिंदइंदेहिं णिद्दिट्ठा।।१२७।।
एयं च सयसहस्सं चालीसा तह सहस्ससंगुणिदा।
एयं च सयं सोलस पउमाणं होंति परिसंखा।।१२८।।
सत्तेव सयसहस्सा पंचसया तह असीदा य।
पंचण्हं तु दहाणं परिमाणं हुंति पउमाणं।।१२९।।
जिणइंदवरगुरूणं सुरिंदवरघिट्ठमउडचलणाणं।
रयणमया वरपडिमा पउमिणिपुप्पेसु णिद्दिट्ठा।।१३०।।
तेसु पउमेसु णेयं वंचणमणिरयणसंवैसंछण्णा।
लंबंतकुसुममाला कालागरुकुसुमगंधड्ढा।।१३१।।
धुव्वंतधयवडाया मुत्तादामेहिं सोहिया रम्मा।
गोउरकबाडजुत्ता मणिवेदिविहूसिया दिव्वा।।१३२।।
गाउअदलविक्खंभा गाउवदीहा दहाण पउमेसु।
गाउयवउभागूणा उत्तुंगा होंति पासादा।।१३३।।
णिसधकुमारी ण्ोया तह चेव य देवकुरुकुमारी य।
सूरकुमारी सुलसा विज्जुप्पह तह कुमारी य।।१३४।।
एदाओ णामाओ णागकुमाराण वरकुमारीओ।
एगपल्लाउगाओ दसधणुउत्तुंगदेहाओ।।१३५।।
णिच्चं कुमारियाओ आहिणवलावण्णरूवजुत्ताओ।
आहरणभूसियाओ मिदुकोमलसहुरवयणाओ।।१३६।।
तेसु भवणेसु णेया देवीओ होंति चारुरूवाओ।
धम्मेणुप्पण्णाओ विसुद्धसीलस्सभावाओ।।१३७।।
देवीण तिण्णि परिसा सत्ताणीया हवंति णायव्वा।
तह आदरक्खअसुरा सामाणीया य सुरसंघा।।१३८।।
तिण्णेव य परिसाणं धूमदिसे सीहसाणभागेसु।
होंति भवणाणि णेया पपुल्लपउमेसु सव्वेसु।।१३९।।
बत्तीसा चालीसा अडदाला तह सहस्ससंगुणिदा।
परिसंखा णिद्दिट्ठा समासदो ताण सव्वाणं।।१४०।।
धयसीहवसहगयवरदिसासु पउमाणि होंति रक्खाणं।
पत्तेयं पत्तेयं चदुरो चदुरो सहस्साणि।।१४१।।
सामाणियाण वि तहा खरगजढंखेसु चदुसहस्साणि।
सत्त पउमाणि णेया सत्ताणीयाण वसहम्मि।।१४२।।
धयधूमसिंहमंडलगोवइखरणागढंखआसासु।
होंति पउमाणि णेया सदं च अट्ठाणि देवाणं।।१४३।।
एक्केक्काण दहाणं दोदोपासेसु पुव्वपच्छिमदो।
कंचणसेला दस दस णायव्वा होंति रमणीया।।१४४।।
सीतोदा नदी के सरोवर में जिनमंदिर
सोमणसस्स य अवरे विज्जुप्पहणामयस्स पुव्वेण।
मंदरदक्खिणपासे देवकुरू होइ णायव्वा१।।८१।।
एक्को य चित्तकूडो विचित्तकूडो य पव्वदो पवरो।
एक्वं च कंचणसयं णियमा तत्थ दु मुणेयव्वा।।८२।।
णिसधद्दहो य पढमो देवकुरुदहो तहेव बिदिओ य।
सूरद्दहो य णेया सुरसद्दह विज्जुतेओ य।।८३।।
पंचेव जोयणसदा वित्थिण्णा दस य होंति उव्वेधा।
जोयणसहसायामा सव्वदहा होंति णायव्वा।।८४।।
सीतोदापणदीए तत्थ दहा पंच होति णायव्वा।
मेरुस्स सामलीओ दक्खिणपच्छिमे होइ।।८५।।
पद्मसरोवर में प्रत्येक कमल में जिनमंदिर हैं
(जंबूद्वीपपण्णत्ति से)
इनकी उत्तम कर्णिका दो कोश और पत्र एक कोश प्रमाण हैं। नालों का विस्तार एक कोश और दीर्घता दश योजन से अधिक है।।१२५।। इनके नाल वैडूर्यमणिमय और कर्णिकाएँ सुवर्णमय जानना चाहिए। उनके विद्रुममय पत्ते ग्यारह हजार कहे गए हैं।।१२६।। चूँकि उक्त (पार्थिव) कमल दिव्य आमोद से सुगंधित और नवीन विकसित पद्म कुसुम के सदृश हैं इसीलिए जिनेन्द्र भगवान् के द्वारा इनके नाम पद्म निर्दिष्ट किए गए हैं।।१२७।। पद्मों की संख्या एक लाख चालीस हजार एक सौ सोलह (१,४०,११६) है।।१२८।। पाँचों द्रहों के कमलो का प्रमाण सात लाख पाँच सौ अस्सी (१,४०,११६ ² ५ · ७,००,५८०) है।।१२९।। पद्मिनी पुष्पों पर, जिनके चरणों में श्रेष्ठ सुरेन्द्रों ने अपने मुकुट को घिसा है अर्थात् नमस्कार किया है, ऐसी श्रेष्ठ जिनेन्द्रदेव की रत्नमय उत्तम प्रतिमाएँ निर्दिष्ट की गई हैं।।१३०।। द्रहों के उन कमलों पर सुवर्ण, मणि एवं रत्नों के समूह से व्याप्त, लटकती हुई कुसुममालाओं से सहित, कालागरु व कुसुमों की गन्ध से युक्त, फहराती हुई ध्वजा-पताकाओं से संयुक्त, मुक्तामालाओं से शोभित, रमणीय, गोपुरकपाटों (गोपुरद्वारों) से युक्त मणिमय वेदियों से विभूषित, दिव्य, अर्ध कोश विस्तृत, एक कोश दीर्घ और चतुर्थ भाग से हीन एक (३/४) कोश ऊँचे प्रासाद हैं।।१३१-१३३।। निषधकुमारी, देवकुरुकुमारी, सूरकुमारी, सुलसाकुमारी तथा विद्युत्प्रभकुमारी नामक ये नागकुमारों की उत्तम कुमारियाँ हैं।।१३४।।
सीता-सीतोदा नदी के सरोवरों में कमलों में जिनमंदिर
उन श्रेष्ठ प्रासादों में पाँच सौ धनुष ऊँची दिव्य पल्यंकासन से युक्त, नाना मणियों एव रत्नों के परिणाम रूप, लक्षण एवं व्यंजनों से सहित, सम्पूर्ण चन्द्र के समान सौम्य मुख-कमलवाली, उदयकालीन सूर्यमण्डल के सदृश, विकसित कमल के समान कर-कमलों से संयुक्त,किंचित् लाल कमल के समान चरणों वाली, भिन्न अंजन के सदृश केशों से संयुक्त, िंकचित् लाल कमल के समान नेत्रों से सहित, विद्रुम के समान कान्ति वाले उत्तम अधरोष्ठों से विभूषित तथा सिहासन, तीन छत्र, भामण्डल एवं धवल चामरों से युक्त; ऐसी मणि, सुवर्ण एवं रत्नों के परिणामरूप अरहन्तों की प्रतिमायें हैं।।११३-११६।। उन शैलों पर भोगोपभोग से युक्त और बहुत अप्सराओं से वेष्टित वे धैर्यशाली चित्रकुमार और विचित्रकुमार देव रहते हैं।।११७।। यमक पर्वतों से आगे उत्तर दिशाविभाग में पाँच सौ योजन जाकर सीता नदी के मध्य में पाँच महाद्रह हैं।।११८।। उत्तम वेदियों से युक्त, तोरणद्वारों से मण्डित दिव्य और अक्षय अगाध जल से परिपूर्ण वे द्रह पाँच ही होते हैं, ऐसा जानना चाहिए।।११९।। एक-एक द्रह का अन्तर पाँच सौ योजन है। तेईस ब्यालीस व दो कला मेरु का है।।१२०।। तेरासी ब्यालीस व दो कला प्रमाण, यह जिन भगवान के द्वारा देखा गया द्रह और मेरु का अन्तर जानना चाहिए।।१२१।। उक्त द्रह पूर्व-पश्चिम में पाँच सौ योजन प्रमाण विस्तीर्ण हैं। उत्तर-दक्षिण भाग में इनका विस्तार एक हजार योजन प्रमाण जानना चाहिए।।१२२।। प्रपुल्लित कमल, कुवलय, नीलोत्पल और कुमुदों से व्याप्त वे द्रह पाताल में प्रविष्ट होने पर दश योजन अवगाह से युक्त हैं। इस प्रकार संक्षेप से उनका वर्णन किया गया है।।१२३।। उनमें एक योजन प्रमाण विष्कम्भ व आयाम तथा एक कोश बाहल्य से सहित और जल से दो कोश ऊँचे उत्तम कमल पुष्प हैं।।१२४।। इनकी उत्तम कर्णिका दो कोश और पत्र एक कोश प्रमाण हैं। नालों का विस्तार एक कोश और दीर्घता दश योजन से अधिक है।।१२५।। इनके नाल वैडूर्यमणिमय और कर्णिकाएँ सुवर्णमय जानना चाहिए। उनके विद्रुममय पत्ते ग्यारह हजार कहे गये हैं।।१२६।। चूँकि उक्त (पार्थिव) कमल दिव्य आमोद से सुगंधित और नवीन विकसित पद्म कुसुम के सदृश हैं, इसीलिए जिनेन्द्र भगवान के द्वारा इनके नाम पद्म निर्दिष्ट किये गये हैं।।१२७।। पद्मों की संख्या एक लाख चालीस हजार एक सौ सोलह (१४०११६) है।।१२८।। पाँचों द्रहों के कमलों का प्रमाण सात लाख पाँच सौ अस्सी (१४०११६² ५·७००५८०) है।।१२९।। पद्मिनि पुष्पों पर, जिनके चरणों में श्रेष्ठ सुरेन्द्रों ने अपने मुकुट को घिसा है अर्थात् नमस्कार किया है, ऐसी श्रेष्ठ जिनेन्द्र गुरुओं की रत्नमय उत्तम प्रतिमाएँ निर्दिष्ट की गई हैं।।१३०।। द्रहों के उन कमलों पर सुवर्ण, मणि एवं रत्नों के समूह से व्याप्त, लटकती हुई कुसुममालाओं से सहित, कालागरु व कुसुमों की गंध से युक्त, फहराती हुई ध्वजा-पताकाओं से संयुक्त, मुक्तामालाओं से शोभित, रमणीय, गोपुर कपाटों (गोपुरद्वारों) से युक्त, मणिमय वेदियों से विभूषित, दिव्य, अर्ध कोश विस्तृत, एक कोश दीर्घ और चतुर्थ भाग से हीन एक (३/४) कोश ऊँचे प्रासाद हैं।।१३१-१३३।। निषधकुमारी, देवकुरुकुमारी, सूरकुमारी, सुलसाकुमारी तथा विद्युत्प्रभकुमारी नामक ये नागकुमारों की उत्तम कुमारियाँ एक पल्य प्रमाण आयु वाली और दस धनुष उन्नत देह की धारक हैं।।१३४।। उन भवनों में सदा कुमारी रहने वाली ये देवियाँ अभिनव लावण्यमय रूप से संयुक्त, आभरणों से भूषित, मृदु, कोमल एवं मधुर वचनों को बोलने वाली, सुन्दर रूप से सहित और विशुद्ध शील व स्वभाव से सम्पन्न होती हैं।।१३६-१३७।। इन देवियों के तीन पारिषद, सात अनीक तथा आत्मरक्षक देवों एवं सामानिक देवों के समूह होते हैं, ऐसा जानना चाहिए।।१३८।। तीनों पारिषद देवों के भवन आग्नेय, दक्षिण और ईशान भागों में स्थित सब विकसित पद्मों के ऊपर होते हैं।।१३९।। उन सबकी संख्या संक्षेप से क्रमश: बत्तीस हजार, चालीस हजार और अड़तालीस हजार निर्दिष्ट की गई है।।१४०।। ध्वजा, सिंह, वृषभ और गज दिशाओं (पूर्वादिक चारों) में से प्रत्येक दिशा में आत्मरक्षक देवों के चार-चार हजार कमल हैं।।१४१।। तथा सामानिक जाति के देवों के भी चार हजार कमल खर, गज और ढंख अर्थात् काक (ईशान, उत्तर व वायव्य) दिशाओं में है। सात अनीकों के सात कमल वृषभ (पश्चिम) दिशा में जानना चाहिए।।१४२।। ध्वजा, धूम, सिंह, मण्डल, गोपति (वृषभ), खर, नाग (गज) और ढंख (ध्वाङ्क्ष) इन आठ दिशाओं में (प्रतीहार, मंत्री व दूत) देवों के एक सौ आठ पद्म जानना चाहिए।।१४३।। प्रत्येक द्रह के पूर्व व पश्चिम दो-दो पाश्र्वभागों में रमणीय दस-दस कंचन शैल जानना चाहिए।।१४४।।
सीतोदा नदी के सरोवर में जिनमंदिर
सौमनस के पश्चिम में विद्युत्प्रभ नामक गजदंत के पूर्व और मन्दरगिरि के दक्षिण-पाश्र्व भाग में देवकुरु स्थित है।।८१।। वहाँ नियम से एक चित्रकूट व दूसरा विचित्रकूट ये दो श्रेष्ठ यमक पर्वत तथा एक सौ कंचन पर्वत जानना चाहिए।।८२।। प्रथम निषध द्रह, द्वितीय देवकुरु द्रह, सूर द्रह, सुरस (सुलस) द्रह और विद्युत्तेज, ये पाँच द्रह जानना चाहिए। सब द्रह पाँच सौ योजन विस्तीर्ण, दश योजन उद्वेध से सहित और एक हजार योजन आयत जानना चाहिए।।८३-८४।। ये पाँच द्रह वहाँ सीतोदा के प्रणिधि भाग में जानना चाहिए। मेरु के दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य) में शाल्मलि वृक्ष है।।८५।।
सीता-सीतोदा नदी के २० सरोवरों में नागकुमारी देवियों के कमलों में जिनमंदिर
त्वग्रे पञ्चाशतं रुन्द्राः शतोच्छ्रायाश्च ते समाः।।१५६।।
।१००। ७५। ५०। १००।
आक्रीडावासकेष्वेषां शिखरेषु शुकप्रभाः।
देवा काञ्चनका नाम वसन्ति मुदिताः सदा।।१५७।।
उत्तं च द्वयम् (ति. प. ४-२१३६-३७)
मेरुगिरिपुव्वदक्खिणपच्छिमये उत्तरम्मि पत्तेक्वं।
सीदासीदोदाये पंच दहा केइ इच्छंति।।४।।
ताणं उवदेसेण य एक्केक्कदहस्स दोसु तीरेसु।
पण पण वंचणसेला पत्तेक्वं होंति णियमेण।।५।।
सीता-सीतोदा के २० सरोवरों में नागकुमारी देवियों के कमलों में जिनमंदिर
(लोकविभाग से)
मेरु के दक्षिण-पश्चिम में सीतोदा के पश्चिम तट पर निषध पर्वत के समीप में उत्तम रजतमय स्थल है।।१४२।। वहाँ पर शाल्मलि वृक्ष का अवस्थान बतलाया गया है। उसका वर्णन जंबूवृक्ष के समान है। उसकी दक्षिण शाखा पर उत्तम सिद्धायतन है।।१४३।। शेष दिशागत शाखाओं पर तीन भवन हैं। उनमें देवकुरु अधिवासी वेणु और वेणुधारी देव रहते हैं।।१४४।। नील पर्वत से दक्षिण की ओर हजार (१०००) योजन जाकर सीता महानदी के पूर्व तट पर चित्र और पश्चिम तट पर विचित्र नामक दो कूट हैं।।१४५।। निषध पर्वत की उत्तर दिशा में भी सीतोदा महानदी के दोनों तटों में से पूर्व तट पर यमककूट और पश्चिम तट पर मेघकूट स्थित है।।१४६।। इन कूट का विस्तार मूल में एक हजार (१०००) योजन, मध्य में उससे चतुर्थ भाग हीन अर्थात् साढ़े सात सौ (७५०) योजन और शिखर पर अर्ध सहस्र (५००) योजन प्रमाण है। ऊँचाई उनकी शुद्ध एक हजार योजन मात्र है।।१४७।। इस प्रकार महर्षिजन उक्त वूकूट में से प्रत्येक वूकूट प्रमाण बतलाते हैं। उनके ऊपर सदा सुखी रहने वाले कूटमधारी देव आनंदपूर्वक रहते हैं।।१४८।। नील पर्वत के दक्षिण में सार्ध दो हजार अर्थात् अढ़ाई हजार (२५००) योजन जाकर नील, कुरु, चन्द्र, उसके आगे ऐरावत और माल्यवान् ये पाँच द्रह सीता नदी के मध्य में हैं। ये प्रमाण में पद्मद्रह के समान होते हुए दक्षिण-उत्तर आयत हैं।।१५९-१५०।। निषध पर्वत के उत्तर में सीतोदा नदी के मध्य में निषध, कुरु, सूर्य, सुलस और विद्युत् नाम के पाँच द्रह हैं।१५१।। इन विशाल द्रहों के तट रत्नों से विचित्र हैं। मूल भाग इनका वङ्कामय है। उनके भीतर पद्मभवनों में नागकुमारियाँ रहती हैं।।१५२।। जल से पद्म की ऊँचाई आधा योजन है। वह एक योजन ऊँचा और उतना ही विस्तृत है। उसकी र्किणका का विस्तार एक कोस तथा ऊँचाई भी उतनी ही है।।१५३।। उस पद्म के परिवार का प्रमाण एक लाख चालीस हजार एक सौ पन्द्रह (१,४०,११५) कहा गया है।।१५४।। द्रहों के दोनों तटों में से प्रत्येक तट पर दस कांचन पर्वत हैं जो उक्त द्रहों के अभिमुख स्थित हैं।।१५५।। कहा भी है— प्रत्येक द्रह के पूर्व दिग्भाग और पश्चिम दिग्भाग में एक सौ (१००) योजन मात्र ऊँचे दस-दस कांचन पर्वत हैं।।१।। वे पर्वत मूल में सौ (१००) योजन, मध्य में पाँच के वर्गस्वरूप पच्चीस से रहित अर्थात् पचहत्तर (७५) योजन और अग्रभाग में पचास (५०) योजन विस्तृत तथा सौ (१००) योजन ऊँचे हैं। यह प्रमाण समान रूप से उन सभी पर्वतों का है।।१५६।। क्रीडा के आवासरूप इन पर्वतों के शिखरों पर तोता के समान कान्ति वाले कांचन देव निवास करते हैं। जो सदा प्रमुदित रहते हैं।।१५७।। यहाँ दो गाथायें कही गई हैं— मेरु पर्वत के पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर इनमें से प्रत्येक दिशा में सीता और सीतोदा नदियों के आश्रित पाँच द्रह हैं, ऐसा कितने ही आचार्य मानते हैं। उनमें उपदेश के अनुसार प्रत्येक द्रह के दोनों किनारों पर नियम से पाँच-पाँच कांचन पर्वत स्थित हैं।।४-५।। अर्थात् इस आधार से सीता-सीतोदा नदी के २० द्रह होते हैं।