मानव शरीर में ५६८९९५८४ रोग हैं। मनुष्य का शरीर रोगों का घर है। ये रोग किसी भी विपरीत पदार्थ व कर्म का निमित्त पाते ही व्याधियों के रूप में शरीर में व्याप्त हो जाते हैं और अनेक प्रकार के कष्टों को जन्म देते हैं लेकिन इन सभी रोगों के दो महारोग हैं जो अतीत के कर्म व वर्तमान के संस्कारों के साथ शीघ्रता से उभरकर सामने आ जाते हैं और जीवन को, धर्म को, संस्कृति को, सभ्यता को, मर्यादा को, शरीर को समाप्त कर देते हैं। इन दो महारोगों में पहला रोग है फैशन एवं दूसरा रोग है व्यसन। ये रोग पूर्व कर्मोदय से कम वर्तमान संस्कार, भौतिक लिबास, दुर्जन संगत, टेलीविजन, टाकीज एवं आधुनिक विज्ञापन, चित्र तथा पत्रिकाओं की वजह से ज्यादा उत्पन्न होते हैं। जब यह रोग जीवन में उत्पन्न होता है तब यह शरीर आत्मा, धन, परिवार, अिंहसा, ब्रह्मचर्य एवं भारतीय संस्कृति को ले डूबता है। इन दो महारोगों में प्राय: एक रोग महिलाओं को लगता है एवं दूसरा रोग पुरुषों को लगता है।
पुरुष के जीवन की कमाई का चौथा हिस्सा महिलाओं के शृंगार में व्यर्थ चला जाता है। महिलाओं का शृंगार पति के कमाए धन को तो नष्ट करता ही है साथ ही साथ प्रकृति द्वारा कमाए गये जीव जन्तुओं को भी नष्ट करता है इसलिए तो कहते हैं—महिलाओं का शृंगार, मौत का आगार है। प्राकृतिक, वैज्ञानिक, शारीरिक, मानसिक, आर्थिक तथा र्धामिक सभी दृष्टिकोण से प्रसाधन सामग्री हानिप्रद एवं हिंसक हैं। जिस देश में नारी को देवी का सम्मान प्राप्त है, संस्कृति की नारी का सम्मान प्राप्त है, जहाँ नारी के सतीत्व के समक्ष देवता भी अपनी अहंता छोड़ देते हैं, जहाँ सीता, मनोरमा, द्रोपदी, मैना सुन्दरी, मनोवती, सोमा, गार्गी, अनुसुइया, नीली, चन्दना, वृषभसेना, अनंगसरा आदि नारियाँ आज भी पूजी जाती हैं उस देश की नारियाँ अपनी करुणा, वात्सल्यता, मातृत्व की भावना को आग लगाकर हिंसक सौन्दर्य प्रसाधनों का प्रयोग कर अपनी मातृत्व शक्ति के साथ धरती माता की शक्ति को भी क्षीण करती जा रही हैं। जिस भारत भूमि पर अनंगसरा नाम की स्त्री ने स्वयं के प्राणों की आहुति दे दी पर अजगर को मारने नहीं दिया, उसने मूक जीव के प्राणों की सुरक्षा की, उसी भारत की आधुनिक नारी हाथों में सौन्दर्य के अदृश्य हथियार लिए अपने चेहरे की लिपाई—पुताई करने में करोड़ों जीवों को मृत्यु की शय्या पर हँस—हँसकर सुला रही है। जिह्वा लोलुपी मानव एवं महिलाओं के शृंगार के कारण धरती की हरी—भरी खोल लगभग ध्वस्त हो चुकी है। प्राकृतिक सौन्दर्य समाप्त होने लगे हैं। महिलाओं के बर्बर व्रूर खूनी शोक के कारण कई उपयोगी सुन्दर पशु—पक्षियों की नस्लें समाप्त हो चुकी हैं। महिलाओं की शृंगार सामग्री को तैयार करने के लिए जो भोले—भाले जीव जन्तुओं के साथ बदसलूक किया जाता है उसे कुदरत कभी माफ नहीं कर सकती है। शरीर के शृंगार के लिए मनुष्य ने बेहिसाब पशुओं के ऊपर जुल्म किये हैं जो प्रकृति व संस्कृति के लिए आत्मघाती सिद्ध हुए हैं। संकट के दौर से गुजरते हुये इन्सान ने माँ के स्तन से करूणा का दुग्ध पान नहीं किया बल्कि बोतलों के माध्यम से पाश्चात्य संस्कृति का, भौतिक विलासिता का, क्रूरता का रक्त पान किया है इसलिए आधुनिक सभ्यता के जन्मदाता विज्ञान की तस्वीर उजली भी है और मैली भी है। उजली इसलिए है कि उसने पदार्थों की खोज की, एक नई सुव्यवस्थित विश्वसनीय और तर्वक संगत पद्धति दी है जिससे मनुष्य पदार्थ की वास्तविकता को समझकर परमार्थ की यात्रा करता है, विवेक से जीता है और सत्य को समझने का प्रयास करता है और मैली इसलिए है कि उसने मनुष्य के हाथ में नये—नाये आधुनिक हथियार थमा दिये हैं जिससे वह अपना ही नुकसान कर रहा है, साथ ही साथ प्रकृति का भी नुकसान कर रहा है। अपने ही हाथों से प्रदूषण युक्त वातावरण निर्मित कर रहा है। विज्ञान ने हमें सोफा सेट दिया, डिनर सेट दिया, टी सेट दिया, टी. वी. सेट दिया, लेकिन दिमाग अपसेट कर दिया। बुद्धि में हिंसा, व्रूरता का विष भर दिया है, आत्मिक सुन्दरता को समाप्त कर दिया है और शारीरिक सौन्दर्य के विकास के लिए औषधि निर्माण व जिह्वा तृप्ति के लिए लाखों करोड़ों अरबों जीवों को मौत के घाट उतार रहा है। मात्र इंग्लैंड की विभिन्न प्रयोगशालाओं में प्रतिवर्ष ३४ लाख जीव जन्तुओं का वध किया जाता है एवं पूरे विश्व में ९६ करोड़ जीवों का वध किया जाता है जो अमानवीय कृत्य है कलंक से परिपूर्ण है, शर्मनाक है। यह बात अक्षरश: सत्य है कि शृंगार नारी के सौन्दर्य को निखारता है लेकिन प्रकृति के सौन्दर्य को उजाड़कर स्वयं के सौन्दर्य को निखारना कहाँ की विद्वत्ता है ? अपितु निरी मूर्खता है। आज से हजारों लाखों वर्ष पूर्व भी महिलायें शृंगार करती थीं लेकिन वह हसात्मक शृंगार नहीं होता था, प्रकृति द्वारा प्रदत्त वृक्षों से प्राप्त सौन्दर्य सामग्री का ही उपयोग शृंगार में किया जाता था। प्राचीन काल की स्त्रियाँ कई प्रकार के शृंगार करती थीं। शृंगार करना उनकी परम्परागत आदत ही थी। उनके शृंगार करने में मुख्यत: सिन्दूर लगाना, काजल लगाना, हल्दी लगाकर स्नान करना, मेंहदी लगाना, सुगन्धित तेल लगाना, केश संवारना, पूल लगाना, होठों को रंगना, लाक्षारस से अपने नाखूनों को रंगना, चन्दन—केसर से शरीर को सुगन्धित करना आदि ये सभी शृंगार सामग्री स्थावर हसाकारक थी, त्रस हिसाकारक नहीं थी। प्राचीन काल में हमारे देश में सौन्दर्य प्रसाधन का उत्पादन हिसात्मक तरीके से नहीं होता था। घरों में स्त्रियाँ अपने शारीरिक सौन्दर्य को बढ़ाने के लिये स्वयं ही विभिन्न प्रकार की सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री तैयार करती थी जो न शरीर को हानि पहुँचाते थे, न ही पशुओं को हानि पहुँचाते थे और न ही महंगे होते थे। समय की गति के साथ सौन्दर्य में गति आयी है। सौन्दर्य के साथ महिलाओं का आकर्षण बढ़ा है। आवश्यकता को देखते हुए भारत में अब बड़े पैमाने पर सौन्दर्य प्रसाधनों का उत्पादन हो रहा है और विदेशी सामग्रियों का भी खूब आयात हो रहा है। ये सामग्रियाँ महंगी होने के साथ—साथ व हानिप्रद भी हैं। ये सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री विभिन्न जाति के जानवरों, पशु—पक्षियों को मारकर बनायी जाती हैं। जिस गाय को माता का सम्मान प्राप्त है उस गाय का वध भी माता (नारी) के शृंगार के लिये ही होता है। शृंगार सामग्री को तैयार करने के लिए गाय के बछड़े के ऊपर खौलता हुआ गरम—गरम पानी डाला जाता है ताकि गर्मी से रक्त चमड़ी के साथ चिपक जाये, उसके उपरान्त एक मशीन के सहारे उसकी चमड़ी को एक साथ खींच लिया जाता है, रक्त की धार बहती है। बहे हुए रक्त से बनता है टॉनिक—चिपके रक्त चर्बी से बनती है शृंगार सामग्री तथा चमड़े से बनते हैं जूते, चप्पल और कमर कसने के बेल्ट………। ओफ् क्रूरता की पराकाष्ठा सीमा लांघ गई………। क्या बीतती होगी निरीह प्राणियों पर! कितनी वेदना कितनी व्यथा!!! कितना दुख! कितना कष्ट!! कितनी परेशानी!!! मौत का भयंकर मातम है, फिर भी ये मौन हैं ना कुछ कह सकते, ना कुछ कर सकते! बस इतना ही सोचते हुए विदा हो जाते हैं कि काश! मेरे स्थान पर यह होता तो……!
नाखून में खून न लगायें
नाखून को रंगीन करना भी एक शृंगार है। नाखून शब्द स्वयं कहता है ना ± खून किसी का खून कभी ना करो लेकिन जिसने सिंह, सियार, गीदड, बिल्ली आदि की पर्याय से धोखे से मनुष्य पर्याय को प्राप्त कर लिया है ऐसी ही महिलाएँ अपने नाखून में खून लगाती हैं और अंगुलियों की शोभा बढ़ाती हैं। यह बात सत्य है कि सुन्दर व आकर्षक नाखून सभी चाहते हैं पर नाखून का सौन्दर्य निखारने के पूर्व एक बार विचार करें कि तरह—तरह की रंग—बिरंगी नाखून पालिश आप नाखूनों में लगाती हैं वह एक धीमा जहर है जो आपको धीमे—धीमे अपनी गिरफ्त में ले लेता है और जब आप संभलना चाहती हैं तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नेल पालिश को घातक एवं जहरीला प्रसाधन घोषित किया है। उसने भी सलाह दी है कि उपभोक्ता इसका इस्तेमाल न करें क्योंकि इसमें भी व्हेल मछली के रक्त का प्रयोग होता है और कई ऐसे रसायन छिपे हैं जो उपभोक्ता की सेहत के लिए नुकसान देह हैं। महिलायें जब भी नेल पालिश लगाती हैं तो नाखूनों को सजाने संवारने के अभियान में उसकी शीशी पर लिखे रसायनों के नाम तक पढ़ना भूल जाती हैं। यदि आप उन रसायनों के नाम पढ़ लें तो शायद ही कभी उनका इस्तेमाल करें लेकिन साधारणतया महिलायें न तो रसायनों को समझ पाती हैं न ही उनके घातक परिणामों को और फिर निर्माता तो उपभोक्ता से ज्यादा चतुर है वह उन घातक रसायनों के नाम शीशी पर छापता ही नहीं जो उसमें प्रयुक्त हुए हैं क्योंकि कानून ने नेल पालिश के घातक रसायनों को उजागर करने के लिए बाध्य नहीं किया है। यदि किसी ने उसका उल्लेख भी किया तो वह भी अंग्रेजी में ताकि जनसाधारण न पढ़ पायें और न ही समझ पाये। नेल पालिश में टोल्यूएशन, फार्मल डी हाइडेरिसन, आइसोप्रोपाइल, नाइट्रोसोल्यूलोज, अल्कोहल, टाटेनियम आक्साइड, स्प्रिट, एसीटोन आदि…….। ये सभी रसायन अपना—अपना कुप्रभाव छोड़ते हैं। सबसे सामान्य प्रभाव चर्म के रूप में उभरकर सामने आता है अर्थात् खाज—खुजली, चमड़ी उतरना आदि की शिकायत होती है। नेल पालिश में इस्तेमाल होने वाला एक रसायन ‘फार्मल डी हाइडेरिसन’ है। यह एक प्रकार का एसिड है जो किसी भी स्थिति में कम घातक नहीं है। यह जलन पैदा करता है तथा नाक एवं श्वसन संस्थान के ऊपरी हिस्से इससे अधिक प्रभावित होते हैं। ‘फार्मल डी हाइडेरिसन’ एसिड से दमा जैसा रोग भी पैदा हो सकता है साथ ही गुर्दे की बीमारी भी उत्पन्न हो सकती है। यह एसिड इतना तेज होता है कि एक बार के लगाने से ही नाखूनों का प्राकृतिक रंग सदैव के लिए नष्ट हो जाता है। नेल पालिश की शीशी पर ‘टोल्यूएशन’ नामक रसायन लिखा होता है। जानते हैं आप कि यह रसायन क्या है ? इसका आशय ‘मिथाइल बेंजीन’ से है, इससे सिर दर्द, चक्कर आना, उल्टी आना, भूख न लगना, श्लेष्मा झिल्ली में जलन आदि होने लगते हैं। नेल पालिश में स्प्रिट का इस्तेमाल इसलिए किया जाता है कि वह जल्दी उड़ जाती है लेकिन इससे उत्पन्न वाष्प सांस में मिलकर पेफड़ों को क्षति पहुँचाती है। यदि स्प्रिट खून में मिल जाय तो नई समस्या पैदा कर सकती है। ‘ऐसीटोन’ से नाखूनों की प्राकृतिक छटा समाप्त होती है और वे स्थाई तौर पर पीले भी पड़ सकते हैं। नेल पालिश के घातक परिणाम न केवल लगाने वाले को भुगतने पड़ते हैं वरन् उसके घर, परिवार वाले भी अप्रत्यक्ष रूप से उसकी चपेट में आ जाते हैं। जब महिलायें आटा गूँथती हैं तो नेल पालिश की पपड़ी उखड़कर आटे में चली जाती है जब आप सब्जी धोती हैं, बनाती हैं, बघारती हैं, हिलाती हैं तो किसी भी क्षण अंगुलियों में लगी नेल पालिश की परत उसमें गिर सकती है इससे वह भोजन दूषित हो जाता है और दूषित भोजन कितना घातक होता है यह आप सब जानते हैं। यह धारणा गलत है कि सस्ती नेल पालिश ही घातक होती है क्योंकि वह घटिया किस्म की है पर ऐसा नहीं है नेल पालिश चाहे सस्ती हो चाहे महंगी, वह घातक ही होती है इसलिए दोनों नेल पालिशों से सावधान रहें, इसके चक्कर में न पड़ें। प्रकृति ने जो श्वेत नाखून दिये हैं उसकी प्राकृतिक सुन्दरता को स्वीकारें उसमें गन्दगी न जमनें दे, खूबसूरती के चक्कर में अपनी सेहत व स्वास्थ्य को नष्ट न करें स्वयं के सेहत की सुरक्षा में लाखों मूक प्राणियों की सुरक्षा निहित है। जानवरों की भाँति बड़े नाखून न रखकर इन्सान की भाँति नाखून रखें और ना किसी का खून करें। इतना ही विचार करें—सुन्दता का निवास मनुष्य के मन में है, बाजार में बिकने वाली शृंगार सामग्रियों में नहीं।
लिपिस्टिक
जो करें जीवन को इस्टिक, भेजें नरक का डिस्टिक, उसका नाम है लिपिस्टक।
स्त्री करुणा की मुर्ति है। दया की भावना रग—रग में समाई होती है। स्त्री में पालन एवं रक्षण करने की अपूर्व क्षमता होती है इसलिए प्रकृति ने भी स्त्री को ही नौ माह तक गर्भ धारण करने की क्षमता दी है क्योंकि उसके मन में प्रेम है, अिंहसा है, करूणा है, वात्सल्य है। वह जानती है कि एक पुत्र को जन्म देने के लिए कितनी पीड़ायें झेलनी पड़ती हैं उसकी यह अनुभूति कदापि उसे दूसरों के पुत्र को उजाड़ने की अनुमति नहीं देती। लेकिन वैसी दुर्दशा हो चुकी है आज की महिला की ? भीतर की संवेदना समाप्त हो चुकी है, अपने मातृत्व गुणों को नारी ने खो दिया है दया, करुणा, अहिंसा, प्रेम, वात्सल्य को गंवा दिया है आज नारी जीवों की नाड़ी न होकर आरी का काम करने लगी है। एक बार फिर से नारी की नारीत्व की पराकाष्ठा का स्पर्श करना होगा उसे अपने मृतप्राय गुणों को जीवित करना होगा, सोचना होगा कि अन्जान में किया गया अपराध क्षम्य होता है पर जान—बूझकर किया गया अपराध अक्षम्य होता है। आज की नारी अपने सतीत्व के सौन्दर्य को घटाकर चेहरे को सुन्दर बनाने में लगी है। क्या कभी आपने विचार किया कि एक चेहरे के शृंगार के लिए कितने चेहरे उजड़ जाते हैं ? होठों को लाल करने के लिए कितने पशुओं के लाल, काल के गाल में समाते हैं। नहीं! एक बार अपने होठों को लाल गुलाबी करने के पूर्व ठंडे दिमाग से सोचें कि लिपिस्टिक लगाने से चेहरे का सौन्दर्य निखरता है या प्रकृति का सौन्दर्य बिखरता है। अिंहसा का अनुयायी कभी भी हिंसक कृत्य को स्वीकार नहीं करता है। प्रकृति ने, आपके शुभ नाम कर्म ने सौन्दर्य दिया है उस सौन्दर्य पर विश्वास करके अपने जीवन का निर्वाह करना चाहिए। सौन्दर्य में निखार शृंगार से नहीं, सदाचार से आता है। यूं समझिये—कोई काली कलूटी औरत पाउडर, काजल, लिपिस्टिक आदि शृंगार की सामग्री लगा लेवें और सड़क पर निकल जावें तो वह सुन्दर लगने वाली नहीं है क्योंकि उसका वास्तविक रूप लिपिस्टिक व पाउडर के पीछे से स्पष्ट रूप से झलक रहा है उस वक्त वह ऐसे दिखती है जैसे किसी ने जामुन में नमक छिड़क दिया हो इसलिए तो लोग उसे देखकर व्यंग कसते हैं और कहते हैं……हाथों में है पर्स इनके चाल तो निराली है, पाउडर का उजाला है सूरत तो काली है।सच है! किसी गधी को सुन्दर वस्त्र पहना देवें ! मुख में लिपिस्टिक पाउडर आदि पोत देवें और उसके चेहरे को देखें तो वह विश्व सुन्दरी दिखने वाली नहीं है वह गधी ही दिखेगी क्योंकि प्रकृति ने उसे सौन्दर्य नहीं दिया है और जो सुन्दर है वह शृंगार न भी करें तो वह सहज ही लोगों के मन को भा जाती है। नारी अगर कुरुप है तो सोचें की प्रकृति ने जो रूप दिया है उसे बदलने के लिए बाहरी साधन का प्रयोग क्यों करूँ ? क्या गोबर की मिठाई पर चाँदी का वर्व चढ़ाने से वह स्वादिष्ट हो जाती है ? नहीं ! तो क्या जो स्वाभाविक कालापन है कुरुपता है उसे शृंगारित करने से वह सुरूप हो जायेगी? नहीं। तब मैं व्यर्थ क्यों शृंगार करूँ ? कोयले को घिसकर सपेदी की आकांक्षा में समय, धन व शक्ति को क्यों बरबाद करूँ ? इस प्रकार विचार करके शृंगार से बचना चाहिए और अिंहसा एवं ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। इतना ही विचार करना चाहिए कि दीवार संगमरमर की है तो पुताई की आवश्यकता नहीं, मिट्टी की है तो भी पुताई की आवश्यकता नहीं इसे पोतना व्यर्थ का खर्च करना है। right”200px”]] एक काली कलूटी स्त्री थी उसे शृंगार करने का बड़ा शौक था वह मंदिर, क्लब, पार्टी, पार्व, टॉकीज, शादी आदि कहीं पर भी जाती तो पहले अपने चेहरे को अंग्रेजी गोबर से पोत लेती थी। वैसे तो तथाकथित आधुनिक धर्मात्मा महिलाएँ प्राय: शृंगार करके मंदिर जाती हैं। पर्यूषण, दीपावली, महावीर जयन्ती आदि प्रमुख पर्वो में शृंगार करके मंदिर जाना तो आम बात हो गई है, शायद धर्म का महत्व इससे ही प्रगट होता हो क्योंकि आज के युग में अपने सौन्दर्य को प्रर्दिशत करने का स्थान मंदिर ही रह गया है। जिन मंदिरों में पहले चन्दन व धूप की सुगन्ध आती थी उन मंदिरों में आज शृंगार सामग्री की दुर्गन्ध आती है। आज धर्म स्थान सौन्दर्य प्रदर्शन का केन्द्र बन गया है। वह महिला शृंगार करके पीली साड़ी पहनकर मंदिर आई और प्रभु के दर्शन करने लगी। स्वाभाविक कुछ महिलाओं की नजर उस महिला पर पड़ी एक महिला ने पूछा जीजी! क्या बात है इतनी सुन्दर साड़ी कहाँ से ले आई? वह प्रसन्नचित्त होकर कहती है अभी सम्मेद शिखर गई थी वहाँ से कलकत्ता गई थी वहीं से यह साड़ी लाई हूँ। क्यों, मैं। इस साड़ी में कैसी लग रही हूँ ? दूसरी महिला ने व्यंगात्मक रूप से उत्तर देते हुए कहा—तुम तो बहुत सुन्दर लग रही हो जैसे सरसों के खेत में भैंस खड़ी हो। सच है। काली स्त्री शृंगार करके पीली साड़ी पहनती है तो सरसों के खेत में भैंस के समान नजर आती है और गोरी स्त्री लिपिस्टिक पाउडर लगाकर शृंगार करती है तो ऐसे नजर आती जैसे कोई भूरी बिल्ली, चूहे का रक्त चूसकर आई हो। ध्यान रखें सजावट में बनावट है, बनावट में दिखावट है, और दिखावट में ही गिरावट है। वास्तव में आज की महिला फैशन के रंग में इतनी रंगी हुई है कि वह हिंसक सामग्री को छोड़ना नहीं चाहती पर एक बात सदैव ध्यान रखें मछली पकड़ने हेतु दिन भर जाल पैलाने वाला धीवर (भले ही एक भी मछली जाल में न आई हो)हिंसक है क्योंकि उसका मन हिंसा से भरा है और विवेक पूर्वक चलने वाले व्यक्ति के शरीर से टकराकर कोई कीट, पतंगा आदि मर जाये तो भी वह व्यक्ति अहिंसक है क्योंकि जीव रक्षा अहिंसक का भाव है। उसी प्रकार जिन लोगों के क्रूर मस्तिष्क में निरीह पशु—पक्षियों की हिंसा एवं उनके रक्त, चर्बी आदि हिंसक पदार्थों से सम्मिश्रित इत्र, सेन्ट, क्रीम, लोशन, शेम्पू लिपिस्टिक, नेल पॉलिश, हेयर स्प्रे, आई ब्रो, पन्सिल, ब्लीचग पाउडर, वेक्सिंग पाउडर, मनी बेग पर्स आदि सभी सामग्री हिंसा से उत्पन्न होती है आपको इसे लगाने का भाव है तो भले ही इन सामग्रियों की हिंसा से आपको कोई मतलब न हो या आपके जीवनोपयोगी न हो पर त्याग न होने से एक भी सामग्री का किसी भी रूप से प्रयोग करते हैं वह तीव्र हिंसा के पापाश्रव में कारण है। हिंसा के माध्यम से पापाश्रव तो होता ही है, साथ ही साथ व्यर्थ के शृंगार करने से ब्रह्मचर्य भी खण्डित होता है। कई घरों में तो विवाद की स्थिति भी आ जाती है, पति नहीं चाहता कि पत्नी व्यर्थ का शृंगार करे और सड़कों पर चूमें पर पत्नी पूर्ण तौर तरीके से शृंगार करती है। पति की इच्छा के विरुद्ध पत्नी के शृंगार करने का अर्थ इतना ही है कि वह पति से संतुष्ट नहीं है, वह अन्य किसी को रिझाने के लिए शृंगार कर रही है। शृंगार का अर्थ ही इतना है कि मैं अपने आपसे सन्तुष्ट नहीं हूँ, जो हूँ वह नहीं दिखना चाहती पर जो नहीं हूँ वह दिखना चाहती हूँ। पति की इच्छा के विरुद्ध शृंगार करने की छूट देती है, अन्य किसी के लिए नहीं। पति पत्नि का आपस में तालमेल होता है लेकिन वर्तमान सभ्यता में तो कुमारी कन्या भी इस कदर शृंगार करती है जिसका कोई जवाब नहीं, शृंगार के कारण उसने अपनी इज्जत व आबरु को एक आले में रख दिया है। right”200px”]] यौवन अवस्था से भरपूर कुवांरी कन्यायें सौन्दर्य को निखारने जब फैशन सामग्री का उपयोग करती हैं एवं चुस्त पारदर्शी अंगों का उभार प्रर्दिशत करने वाले वस्त्रों को धारण करती हैं तो ऐसा महसूस होता है कि कन्या, कन्या नहीं रही इसके अन्दर बाजारू स्त्री के गुण आ गये हैं। पाश्चात्य संस्कृति के अन्धानुकरण ने, टी. वी. पिक्चर की तारिकाओं ने, कन्या के जीवन को छीन लिया है और उसे नपुंसक बना दिया है क्योंकि आधुनिक कन्याऐं बाल कटाकर, जिन्स पहनकर, शृंगारित होकर मटक—मटक कर दूसरों को आर्किषत करती हुई चलती हैं और जीवन को अन्धकार में ले जाती हैं स्वयं नपुंसक पर्याय का बन्ध करती हैं तथा कामांध व्यक्ति के जीवन को भी अन्धकार में धकेल देती हैं। भारतीय संस्कृति में तो साध्वी के अलावा अन्य किसी स्त्री के कटे बाल सौभाग्य एवं सुहाग का अपमान है, अखण्ड बाल प्राचीन संस्कृति का द्योतक है उसमें सभ्यता है, शालीनता है। साध्वी के छोटे बाल जीव रक्षा के उद्देश्य से होते हैं लेकिन अन्य स्त्री के कटे बाल जीव रक्षण हेतु नहीं मन आकर्षण हेतु होते हैं। पाश्चात्य संस्कृति को भेड़िया समझ स्वीकार कर भारतीय संस्कृति का लोप न करें, अन्यथा पाश्चात्य संस्कृति जीवन को नष्ट भ्रष्ट करने के साथ ही साथ आपके माता—पिता को भी वाणी से नष्ट कर देगी क्योंकि आज की अंग्रेजियत माँ को ममी (लाश) पिता को डेड (मुर्दा) कहती है। जो संस्कृति अच्छे खासे जीते जागते माता—पिता को मार देगे उस संस्कृति का क्या अनुसरण करना। आज की कन्याएँ पाश्चात्य संस्कृति एवं सुन्दरता की दलील देकर माता—पिता को क्या समझाती है कि…… right”200px”]] एक बाप ने अपनी बेटी से कहा बेटी ! तू मुझे जीते जी डेड कहती है डेड सुनकर मेरी आत्मा बेहद रोती है बेटी अब तू मुझे डेडी नहीं, पिताजी कहा कर जरा मेरी बात का ख्याल कर बेटी, बाप की बात सुनकर झल्लाई क्रोध में अपना मुंह फुलाई और कहने लगी डेडी आप भारत के वासी हैं हम इण्डिया निवासी हैं आपको मेरी परिस्थिति का जरा भी ज्ञान नहीं मेरे चेहरे का आपको जरा भी ध्यान नहीं अरे डेडी ! पिताजी कहने से मेरे दोनों होठ चिपकते हैं और होठों के चिपकने से मेरे होठों पर लगी लिपिस्टिक की शायिंनग बिगड़ती है पाश्चात्य संस्कृति के संस्कार इस प्रकार दो टूक जबाब देकर माता—पिता का सम्मान खो रहे हैं। इज्जत आबरु दांव पर लगाने को मजबूर कर रहे हैं शील खण्डित कर रहे हैं और शृंगार सामग्री का उपयोग कर लाखों करोड़ों जीवों के प्राण ले रहे हैं। पाश्चात्य संस्कृति का अनुकरण करके हमने सारी मर्यादा खो दी है, एड़ी से चोटी तक के शृंगार से हमने सौन्दर्य और अंग प्रदर्शन को ही प्रगट किया है जो हमारे चरित्र के लिए तेजाब सिद्ध हुए हैं। जीवन में शृंगार की कोई मनाई नहीं है पर मर्यादा की विशेष आवश्यकता है। अतीत में भी महिलायें शृंगार करती थीं पर पति के अभाव में शृंगार नहीं करती थीं, मैनासुन्दरी, सीता, अंजना आदि की घटना सभी को ज्ञात है। कन्यायें भी शृंगार करती थीं पर शृंगार करके सड़कों पर नहीं घूमती थीं। मकान की छत से, झरोखे से, द्वार पर बैठकर किसी को नहीं निहारती थीं। वह एक मर्यादा थी, सभ्यता थी क्योंकि भारतीय संस्कृति स्वयं के आचरण के साथ, पर के आचरण को भी शुद्ध रखने की बात करती है। left”200px”]] पाश्चात्य देशें में अवैधानिक व्यापार, पदार्थों में मिश्रण, पराई वस्तुओं का ग्रहण, झूठ आदि की अधिकता नहीं है, ये गुण हमारे लिए भी अनुकरणीय हैं। भारत, शील एवं धर्म प्रधान देश है जिन वस्त्रों से शरीर के अवयव दिखाई दें, जो वस्त्र शरीर के अंगों का पूर्ण रूपेण (घुटने से ऊपर गर्दन से नीचे) आच्छादन न कर सवें या जो वस्त्रालंकार शीलवती नारियों के कुल के विपरीत हों उसका ध्यान रखते हुए हिंसा जन्य समस्त सौन्दर्य प्रसाधनों का त्याग करते हुए असंख्य प्राणियों के प्राणों की सुरक्षा करें। क्या आप अब भी चाहेंगी कि उन मूक, असहाय एवं लाचार प्राणियों के रक्त से अपने मुख, नख को रंगे, अपने सौन्दर्य में निखार लायें। नहीं! कदापि नहीं!! यदि नहीं तो आज से ही इन सब सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री व विदेशी आइटमों का त्याग कर प्रकृति प्रदत्त सौन्दर्य को संभालें। आज समाज में या अखबारों में बलात्कार, किसी लड़के के साथ किसी लड़की का भागना या लव मैरिज आदि की घटनायें घटती हैं उसका मूल कारण है—बाल कटाकर अत्यधिक शृंगार कर स्कूल कॉलेजों में जाना, बाजार में घूमना। मुझे याद है एक घटना। एक कन्या ने अदालत में मुकदमा दायर किया कि फलाने लड़के ने मेरे साथ गलत हरकत करने का दुस्साहस किया है। पुलिस उस लड़के को पकड़कर लाई और उससे पूछा? क्या तुमने इसके साथ गलत हरकतें करने का दुस्साहस किया है ? लड़के ने कहा—साहब। मैंने इसे देखा ही नहीं, मैं इसे जानता ही नहीं, हरकतें करने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। अदालत में कन्या की तरफ से न कोई गवाह था न कोई सबूत था। जज ने कहा—ठीक है, आज जाओ कल आना। ध्यान रखना—जिस दिन इस लड़के ने तुम्हें छेडा था उस दिन जो वस्त्र शृंगार तुमने किया था उन्हीं वस्त्र और शृंगार के साथ उपस्थित होना। दूसरे दिन कन्या पुन: उपस्थित हुई जैसे ही लड़के ने उसे देखा मुख से आह निकल आई। जज महोदय भी रूप का रसपान करने लगे। जज ने उस युवक से पूछा क्यों तुमने इसे छेड़ा है ? लड़के ने जबाब दिया—जी मैंने इसे नहीं छेड़ा बल्कि इसके वस्त्र व शृंगार ने मुझे छेड़ने को मजबूर कर दिया। जज महोदय ने वास्तविक स्थिति को भांपते हुए लड़के को छुट्टी दे दी और उस कन्या से कहा आइन्दा इस प्रकार के पारदर्शी वस्त्र पहनकर, शृंगार करके सड़क पर न घुमा करो अन्यथा फिर कोई गलत हरकत तुम्हारे साथ कर गुजरे तो उसकी सारी जिम्मेदारी तुम्हारी स्वयं की होगी। right”200px”]] सच है। छेड़ने और छिड़वाने में जमीन आसमान का अन्तर होता है। अगर गोरी नारी, सुन्दर कन्या काले वस्त्र पहनकर ऊँचाी एड़ी की चप्पल, हाथों में पर्स, सिर के कटे बाल, काजल से युक्त चंचल निगाहें, लिपिस्टिक युक्ह होठों पर स्मित मुस्कान, मटकती चाल, भीतर बैठी वासना की उछलती तरंगे हैं जो प्रदर्शन के रूप में बाहर उभरी हैं यह स्वयं के जीवन को खराब करती है तथा दूसरे के भी मनोभावों का विचलित करने में कारण होती हैं। इसमें दोष लड़के का थोड़ा है और कन्या का पूरा उससे ज्यादा माता—पिता का है जो अंकुश नहीं लगाते और अपनी पुत्रियों को पारदर्शी चुस्त वस्त्र लाकर देते हैं, अंग—प्रदर्शन की खुली छूट देते हैं। ऐसे शृंगार से अिंहसा धर्म का नाश होता है, पैसे का अपव्यय होता है, जो कई रूपों से चोरी करने को मजबूर कर देता है और किसी के आकर्षण के कारण स्वयं का एवं पर का ब्रह्मचर्य शीलव्रत भी खण्डित हो जाता है इसलिए तो कहा है….
चाँदनी, चाँद करता है, चमकना तारों को पड़ता है। लड़कियाँ फैशन करती हैं, तड़फना लड़कों को पड़ता है।
आपका अत्यधिक शृंगार, कटाक्षात्मक वार्ता आपको एवं अन्य को गलत राह पर ले जाने में कारण है, स्वयं सावधान रहें अहिंसा एवं शील का ख्याल रखें। मैं किसी भी प्रकार के शृंगार का निषेध नहीं कर रहा हूँ अपितु शृंगार के माध्यम से होने वाली हिंसा, व्यभिचार, अनाचार का निषेध कर रहा हूँ क्योंकि आज सभी जगह शाकाहार का प्रचार एवं मांसाहार का निषेध जोरों से किया जा रहा है पर उन्हीं के घरों में देखा जाये तो शृंगार बढ़ता जा रहा है। लेखकों को मांसाहार की हानियों के साथ शृंगार की हानियाँ भी प्रस्तुत करनी चाहिए। घर में, समाज में, बाजार में गुप्त या उजागर रूप से मांसाहार न हो यह बात अच्छी है, श्रेष्ठ है, अनुकरणीय है ऐसा होना भी चाहिए जहाँ पर शृंगार का भरपूर समर्थन हो, ऐसा नहीं होना चाहिए। प्राणियों की सुरक्षा खाने व लगाने इन दोनों रूपों में नहीं होना चाहिए तभी आत्मा में अहिंसा धर्म का आगमन हो सकता है। right”200px”]] भगवान महावीर स्वामी कहते हैं कि मन—वचन—काय की शुद्धि हुए बिना धर्म की आत्म तत्व की उपलब्धि असंभव है। मन की शुद्धि को लाने के लिए वचन और काय की शुद्धि आवश्यक है। वचन की शुद्धि के लिए शाकाहार सात्विक भोजन की आवश्यकता है और तन की शुद्धि के लिए हिंसक सौन्दर्य प्रसाधन सामग्रियों का त्याग आवश्यक है। आज मुख शुद्धि के लिये कई नारे दिये गये, कई लेख लिखे गये, करोड़ों की संख्या में पम्पलेट व पुस्तवें बाँटी गयीं पर किसी भी लेखक, प्रचारक अथवा संस्था ने पूर्ण जोर लगाकर काय शुद्धि हेतु हिंसक सौन्दर्य सामग्री का विरोध नहीं किया। आज उन्हीं लेखक, प्रकाशक, प्रचारक, संस्था, सोसायटी, मिलन, संघ, क्लब आदि के कर्णधार लखपति करोड़पति के परिवार में ही मांसाहार तो किसी हद तक नहीं है पर शृंगार सर्वाधिक है उनके घर के पत्नी, बच्चे पैशनेबल होकर नख से शिख तक शृंगार करके घर में, स्कूल में, शादी में अथवा संस्था, सोसायटी, मिलन, संघ, क्लब के सामूहिक कार्यक्रमों में उपस्थित हो अपने वैभव एवं सौन्दर्य के साथ अमानुषित क्रूरता का प्रदर्शन कर धर्मच्युत होते नजर आयेंगें। मांसाहार को घर से बाहर करना सरल है पर हिंसक को घर से बाहर करना अत्यन्त कठिन है, उसके लिए अिंहसा निष्ठ धर्मात्मा व्यक्ति की आवश्यकता है। मैंने दिल्ली लाल मन्दिर की एक घटना सुनी थी कि लाल मन्दिर के निर्माता सेठ धर्मात्मा स्वाध्याय प्रेमी दयालु प्रवृत्ति के थे उन्हें सादगी पसन्द थी, मन्दिर बनने के उपरान्त सैकड़ों श्रद्धालु दर्शनार्थ आने लगे। सेठ जी को यह बात बुरी लगी। वे सोचने लगे—मन्दिर आत्म सौन्दर्य निखारने का केन्द्र है या तन सौन्दर्य मुखरित करने का केन्द्र है ? बाह्य सौन्दर्य को मुखरित करने मन्दिर आने वाले कभी भी वीतरागता के दर्शन नहीं कर सकते हैं, और न ही आत्म सौन्दर्य प्रगट कर सकते हैं, क्योंकि वे मन्दिर आत्म दर्शन हेतु नहीं, प्रदर्शन हेतु आये हैं। कुछ उपाय करना चाहिए ? वे घर पहुँचे। पत्नी के सामने अपनी बात रखी और कहा कल सामूहिक धर्म सभा मन्दिर जी में होगी तुम पूर्णरूपेण सज—धज कर आना, मैं कुछ कहूँ तुम बुरा मत मानना। यह कार्य मैं सुधार के लिए कर रहा हूँ, अपमान के लिए नहीं। आज्ञाकारिणी पत्नी ने बात मानी और दूसरे दिन वह इत्र के फूलेल लगाकर, सुन्दर साड़ी पहनकर, चेहरे को लीप पोतकर, पाँवों में पायल पहनकर, पूर्ण शृंगार कर मन्दिर जी में प्रवेश करती है। पायल की छम—छम आवाज……. सभा लगी हुई है सभी शास्त्र श्रवण कर रहे थे। पायल की आवाज सुनकर सभी की निगाहें उठी। इतने में सेठ जी चिल्लाकर बोले—कौन मन्दिर जी में वैश्या का रूप लेकर आई है ? यह जिनालय शृंगार प्रदर्शन करने का केन्द्र नहीं, श्रद्धा प्रर्दिशत करने का स्थान है। निकल जाओ यहां से, आइन्दा इस जिनालय में सज—धज कर नहीं, सादे वेश में आये। लोगों ने सेठ जी का क्रोध देखा—उधर शृंगार युक्त महिला को देखा और सेठ जी से कहा—सेठ जी ये तो आपकी ही पत्नी है। सेठ जी ने कहा—धर्म, सम्बन्धों को नहीं, सिद्धान्तों को देखता है भविष्य में ख्याल रखें। दूसरे दिन से मन्दिर जी में सभी सादे वस्त्र पहनकर, शृंगार रहित होकर, श्रद्धा प्रर्दिशत करने आने लगे। निज पर शासन फिर अनुशासन वाली कहावत ने सभी दर्शनार्थियों को सुधार दिया। मैं चाहता हूँ शाकाहार प्रेमी भी शृंगार से हिंसा व हानि को समाज के समक्ष प्रस्तुत करें ताकि समाज की महिलाओं में सुधार आयें क्योंकि आज की तथाकथित धर्मात्मा महिलाएं माँस को चबाकर नहीं, चाट कर खा रही हैं। पुन: सोचें ? आपकी शृंगार सामग्री के लिए कितने जीवों का किस तरह वध होता है और उसके रक्त, माँस, चर्बी आदि को आप किस तरह अपने चेहरे व शरीर में लगाकर संतुष्ट होती हैं। इन सब हिंसक सामग्री के उपयोग में हिंसा के भागीदार स्त्री व पुरुष दोनों हैं शरीर को सुन्दर बनाने में हिंसक सामग्री का उपयोग करते हैं। पढ़ें! आपके शृंगार के लिए पशु कितने प्रहार सहते हैं।
खरगोश
छोटा मुलायम, बड़े कान वाला जानवर, निर्दयता से इसकी खाल खींची जाती है। नर्म आँखों में शैम्पू डाला जाता है यह तडप—तडप कर मर जाता है। शैम्पू नर नारियों की त्वचा को नुकसान न दे इसलिए टेस्ट करते हैं कोमल खरगोश की जान पर……..
कछुआ
छोटा ऊपर से बङ्का, नीचे से नरम, इसे उल्टा करके कोमल अंगों के टुकड़े करके उसकी चर्बी से तेल बनाकर सौन्दर्य प्रसाधन सामग्रियां बनाई जाती हैं।
कबर बिज्जू
छोटा प्यारा जानवर—बेतों की मार से उद्विग्न होने पर योन ग्रन्थि स्रवित हो जाती है इस स्राव को तेज धार वाले चावू से निर्ममता से खरोंच लिया जाता है और आपको दिया जाता है सुगन्धित इत्र—सोचिये कहाँ गया आपका चारित्र…….।
व्हेल मछली
सबसे बड़ी ६३ पुट की….. चारों तरफ से घिरकर चोट सहती है और दे देती है अपनी जान बनती है सुगन्धित लिपिस्टक, नेल पॉलिश एवं मिसाइलों में लगाया जाने वाला तेल। क्या इनकी जान आपकी शान में कारण है।
लोरिस बन्दर
प्यारी आँखे कोमल जिगर—आपके शृंगार के लिए आँखे व जिगर पीसे जाते हैं। कोई आपके पीसे तो…….।
गिनी पिग
चूहे की जात—हजामत बनाने के बाद लोशन का आप प्रयोग करते हैं वह आपके गाल की सुरक्षा के लिए इनकी खाल पर प्रयुक्त होता है। लाखों मरते हैं प्रतिवर्ष…..।
बीबर
चूहे जैसा जन्तु—इसके शरीर के तेल से बने हैं सौन्दर्य प्रसाधन के सामान—खाल से कोट और माँस से दवा।
कस्तूरी मृग
पहले पुरी पिटाई ताकि ग्रन्थियों में आवे कस्तूरी। १५ दिन बाद पेट चीरा निकाला कस्तूरी और बनाया आपके लिये परफ्यूम, सेन्ट, इत्र……हाय री निर्दयता। सोचें। मानवीय सद्गुणों की महक के समक्ष परफ्यूम की महक व्यर्थ है।
सांप
प्यारा मुलायम खूबसूरत जानवर—सूप—दवा—शराब, पर्स, चप्पल कई चीजों का निर्माण निर्दयता की पराकाष्ठा वृक्ष के तने पर कीलों से ठोंककर तेज धार वाले चावू से चीरते हैं ….. खून के फव्वारे आपसे बहुत कुछ कहते हैं।
रेशम का कीड़ा
खोलते पानी में दम घोंटकर मार डालते हैं ताकि बाहर निकलते हुए रेशम के टुकड़े न हो जाये ५००० कीड़ों को मारकर बनी है एक साड़ी क्या आपका शरीर कीड़ों का मसान है। रेशमी वस्त्र बनाने की सम्पूर्ण प्रक्रिया व्रूर अमानवीय हिंसक और बर्बर है रेशम उत्पादन के नाम पर रेशम कीड़ों को उबाल कर ही मारा जाता है। रेशम के कीड़ों को उबालना करोड़ों जीवों को एक साथ मौत के घाट उतारना है। संसार में बहुत से वस्त्र हैं। रेशमी वस्त्र को पहनना कोई आवश्यक नहीं है। इस संसार में महिलाओं की इज्जत दया की र्मूति, वात्सल्य की देवी नम्र होने की वजह से है लेकिन आज की महिला कुछ हद तक पुरुष दोनों ही आंखों देखी मक्खी खा रहे हैं। करोड़ों जीवों की जान को छीनकर बनाये गये रेशमी वस्त्र को पहनकर निर्लज्जतापूर्वक णमोकार, भक्ताम्बर आदि का पाठ कर रहे हैं उसी वस्त्र में ग्रंथ लपेट रहे हैं स्वाध्याय कर रहे हैं, चन्दोवा लगा रहे हैं उसी सूत की बनी मालायें पेर रहे हैं। देह की शोभा बढ़ाने वाला वस्त्र आत्मा की शोभा क्षीण करके जोंक का काम कर रहा है लेकिन हम अन्जान बने बैठे हैं आप स्वयं सोचें—मूर्खता का प्रवेश हमारे मस्तिष्क में कहां तक कर गया? श्मशान से आकर सूती वस्त्र को धोकर इस्तेमाल करते हैं पर रेशमी वस्त्र को पहनकर श्मशान भी हो आये तो उस वस्त्र का उपयोग बिना धोये कर लेते हैं जबकि रेशमी वस्त्र तो साक्षात् मसान है, एक बार ठंडे दिमाग से सोचें पैशन के बहाव में आकर रेशमी साड़ियां पहनकर गर्व से फूलकर पूरे श्मशान को अपने शरीर में नहीं लादें। हजारों कीड़ों के मृत शरीर को सिल्क के रूप में अपने शरीर पर लादने से आप कदापि अिंहसक धर्मात्मा नहीं हो सकते हैं जिस दिन आप रेशम के धागे बनते देख लेंगे, उस दिन आपका कलेजा थम जायेगा और मुख से करुणा की चित्कार निकल पड़ेगी। अगर आपके भीतर संवेदना होगी तो आप रेशम को स्वयं पहचानकर इससे बच सकते हैं क्योंकि रेशम बालों की तरह जलता है। जले बाल, रेशम, ऊन व चमड़े की गन्ध एक सी होती है। ये रेशम कई वस्त्रों में काम आती है उन सभी वस्त्रों को छोड़ें, शास्त्र न लपेटें मन्दिर जी में एवं आहार के समय चौके में भी रेशमी वस्त्र पहनकर न आवें। संसार में अनेक वस्त्र हैं उनका उपयोग करें और दया धर्म का निर्वाह करें। जीव की सुरक्षा में ही जीवन की सुरक्षा है, नरकों से बचें एवं सिल्क के वस्त्रों को तजें।
गंध मार्जार
रोयेंदार खूबसूरत जानवर, तड़फा कर खींची जाती है खाल, बनाने टोपियाँ, कोट, स्वेटर, खिलौने, पर्स, सीट कवर्स—प्रतिवर्ष ढाई करोड की मौत। आप सभी अिंहसा प्रेमी जनों को चाहिए कि हिंसक चर्बी युक्त प्रसाधन सामग्री साबुन, पेस्ट, बेल्ट, पर्स, जूते, चप्पल आदि का भी उपयोग न करें क्योंकि ऐसा पढ़ा है कि मात्र हिन्दुस्तान लीवर कम्पनी में प्रातिवर्ष चर्बी की खपत १५०००० टन है। साबुन और डिटरजेन्ट बार में १३९,००० टन, घी में मिलावट २००० टन, संशोधित ग्लेसरिन में ३५०० टन, टूथ पेस्ट पेस क्रीम में २००० टन, ग्लेसरिन से बने उत्पादन में ४००० टन चर्बी का प्रयोग होता है। पहले देश को बरबाद करने सिर्प एक ‘‘ईस्ट इण्डिया कम्पनी’’ आई आज देश में १५०० विदेशी कम्पनियां हैं जो १७०० उत्पादन कर रही हैं। धन की बरबादी के साथ आचरण को भी बरबाद किये दे रही हैं। भारत में प्रतिदिन बेहिसाब गाय, बैल, बकरे, सुअर, मृग, खरगोश, कछुआ, बन्दर, कुत्ते, बिल्ली, सिंह, हाथी, मुर्गी आदि को विभिन्न रूपों में समाप्त किया जा रहा है मात्र पेट भरने दवा बनाने और सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री तैयार करने हेतु। क्या आप निरपराध प्राणियों की हत्या से बने, खून माँस से सने शृंगार सामग्री का उपयोग अपने चेहरे पर करेंगीं ? नहीं। कदापि नहीं।। तो जीवन में घरेलू प्रसाधन सामग्री का उपयोग करें। सीता, द्रोपदी, चन्दना, मनोरमा, मैना, सोमा, अनंगसरा जैसा आदर्श उपस्थित करें, प्रकृति के सौन्दर्य पर विश्वास करें ताकि आपके साथ आपके सहयोगी जीवों के प्राणों की सुरक्षा हो सके। अपनी प्रसन्नता व सुरक्षा चाहने वालों को दूसरे की प्रसन्नता व सुरक्षा का सदैव ख्याल रखना चाहिए अन्यथा प्रकृति व कर्म द्वारा किये गये दण्ड को भुगतने हेतु तैयार रहना चाहिए। अन्त में पुन: एक बार सचेत कर दूँ अगर आप अहिंसक होना चाहते हैं, जीव दया को प्रोत्साहन देना चाहते हैं, भीतर करुणा का स्तोत्र बह रहा हो, जरा भी आपका धड़कता दिल हो तो कदापि…. # नाखून पॉलिश, लिपिस्टिक का प्रयोग न करें। # सुगन्धित तेल, सेन्ट, शैम्पू, क्रीम, सेवग क्रीम का प्रयोग न करें। # चर्बी युक्त साबुनों का प्रयोग न करें। # सिल्क की साड़ी का प्रयोग न करें। # पारदर्शी चुस्त वस्त्र न पहनें। # बेल्ट, पर्स, चप्पल एवं जूते, चमड़े के न पहनें। # पेस्ट में हड्डियों का चूर्ण है अत: उसका प्रयोग न करें। आपके पास समय का अभाव है आप घर में प्रसाधन सामग्री तैयार नहीं कर सकती। आपकी इस मजबूरी को ख्याल में रखते हुए ‘‘ब्यूटी विदाउट कुअहरी’’ पूना की संस्था ने अपनी पुस्तक ‘‘लिस्ट ऑफ आर्नर’’ के माध्यम से बता दिया है कि कौन से ऐसे प्रसाधन हैं जो रक्त से रहित हैं दयालु स्त्री पुरुष के प्रयोग करने योग्य हैं। पहले पदार्थ का नाम है, बे्रकेट में ब्राण्ड का नाम है क्रीम और लोशन—ब्यूटी क्रीम (सुन्दर), हर्बल मसाज क्रीम (क्राउन), सैण्डलवुड ऑइल (मैसूर), स्नोवेसलीन (हेमा), क्रीम (टिआरा लक्ष्मी विशाल), हर्बल पिम्पल क्रीम (क्राउन) स्किन क्रीम (निबिया), कोल्ड क्रीम (लक्मे), ब्रण लेपन (गढ़वाल), वेनेिंशग (लक्मे), टरमेरिक वेनेशग क्रीम (विको), क्लीन्सग मिल्क (लक्में), आइमेकअप, आई—पेन्सिल (लक्में), सुरमा (नेत्र ज्योति), काजल संजोग काजल (सोनिया, श्रीमती), आई—लाइनर (लक्मे), मैस्करा (लक्मे)।