महावीर भगवान की कथा
तर्ज-अरे! हट जा रे ताऊ……….
सुनो! वीर कथा सब ध्यान से,
महावीर की कथा निराली है।
अपने पिछले भवों को संवारा, तब मिला तीर्थंकर पद प्यारा।
सुनो पुरुरवा भील ही वीर बना,
महावीर की कथा निराली है।।१।।
जंगल में इक बार भील वह, घूम रहा था धनुष बाण ले।
देखा दूर से इक मुनिराज को,
महावीर की कथा निराली है।। सुनो वीर कथा.।।२।।
भील ने धनुष पे बाण चढ़ाया, मुनिवर पे था चलाना चाहा।
तभी रोका पत्नी ने भील को,
महावीर की कथा निराली है।। सुनो वीर कथा.।।३।।
बोली ये धरती के देवता, इनसे सुनो उपदेश धर्म का।
तब भील को मिला उपदेश था,
महावीर की कथा निराली है।। सुनो वीर कथा.।।४।।
गुरु ने कहा हे भव्यात्मन्! अब, मद्य-मांस-माधु त्याग करो सब।
होगा तेरा कल्याण है,
महावीर की कथा निराली है।। सुनो वीर कथा.।।५।।
गुरु उपदेश को पालन करके, भील देव बना स्वर्ग में जाके।
देखो भील भी बन गया देव रे,
महावीर की कथा निराली है।। सुनो वीर कथा.।।६।।
पुन: मरीचिकुमार बना वह, दीक्षा लेली ऋषभ देव सह।
थे ऋषभदेव के पौत्र वे,
महावीर की कथा निराली है।। सुनो वीर कथा.।।७।।
चक्रवर्ती सम्राट भरत थे, उनके पुत्र मरीचि कुंवर थे।
सुनो आगे मरीचि का क्या हुआ?
महावीर की कथा निराली है।।सुनो वीर कथा.।।८।।
इन्हीं भरत का देश है भारत, सोने की चिड़िया है भारत।
इसी देश में जनमे वीर प्रभु,
महावीर की कथा निराली है।।सुनो वीर कथा.।।९।।
जय बोलो महावीर भगवान की जय।
शासन नायक प्रभु महावीर के प्यारे-प्यारे भक्तो।!
आपने संक्षेप के महावीर कथा के माध्यम से उनके अनेकों भव पूर्व का कथानक जाना है कि एक आदिवासी भील ने मात्र एक बार सच्चे गुरु का उपदेश प्राप्त करके अपने जीवन का उत्थान प्रारंभ कर लिया और वह स्वर्गों के सुख भोगकर पुन: मनुष्य के ऊश्प में प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के ज्ये… पुत्र सम्राट चक्रवर्ती भरत महाराज की महारानी अनंतमती के गर्भ से मरिचि कुमार के ऊश्प में मनुष्य जन्म प्राप्त किया।
यहाँ प्रसंगानुसार आपको जानना है कि इन्हीं सम्राट भरत के नाम पर हमारे राष्ट्र का नाम भारत पड़ा है-भारत! इस भारत देश के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि अपने आदर्शों के द्वारा भारत को सदैव उत्थान के शिखर पर ले जाएं। तो चलिए प्रस्तुत है भारतीय संस्कृति की श्रद्धा में पक्तियाँ-
तर्ज—है प्रीत जहाँ की रीत सदा……
प्रभु ऋषभदेव के पुत्र भरत से, भारतदेश सनाथ हुआ।
यह आर्यावर्त इण्डिया हिन्दुस्तान नाम से सार्थ हुआ।। टेक.।।
यहाँ तीर्थंकर प्रभु लार्ड गॉड, साधूजन सेन्ट कहाते हैं। हो……
यहाँ गुलदस्ते की भांति कई, जाती व पंथ आ जाते हैं।। हो……
चैतन्य तत्त्व की प्राप्ती का-२, संचालित यहाँ से पाठ हुआ।
यह आर्यावर्त इण्डिया हिन्दुस्तान नाम से सार्थ हुआ।।१।।
भारत को भारत रहने दो, इण्डिया न यह बनने पाए। हो……
इसकी आध्यात्मिक संस्कृति का, अपमान नहीं होने पाए।। हो……
यहाँ ऋषभ, राम, महावीर, बुद्ध-२, का अमर सदा सिद्धान्त हुआ।
यह आर्यावर्त इण्डिया हिन्दुस्तान नाम से सार्थ हुआ।।२।।
यहाँ की सीता सम नारी पर, छाया न किसी की पड़ पाए। हो……
यहाँ जन्मीं ब्राह्मी माता सम, माँ ज्ञानमती के गुण गायें।। हो……
‘‘चन्दनामती’’ भारत की संस्कृति-२, का तब ही उत्थान हुआ।
यह आर्यावर्त इण्डिया हिन्दुस्तान नाम से सार्थ हुआ।।३।।
तर्ज-जिस गली में तेरा घर न हो………..
अब सुनो तुम मरीचि की आगे कथा,
अपने दादा ऋषभदेव संग मुनि बना!
वे तो षट्मास के योग में लीन थे,
चार हज्जार मुनियों से व्रत ना पला।।अब सुनो.।।
उनमें ही थे मरीचिकुमार एक मुनि,
सबके संग खाने पीने लगे फूल फल।सबके संग…
उनको समझाया वन देवता ने कहा,
यह है जिनमुद्रा इसमें करो ऐसा ना।। अब सुनो तुम.।।१।।
फिर तो सबने ही मुनि मुद्रा को तज दिया,
तपसी बन करके मारग अलग कर लिया।तपसी…
इस सहस वर्ष के बाद फिर वे सभी,
प्रभु निकट जाके दिव्य ध्वनि को सुना।।अब सुनो.।।२।।
आए सब पर मरीचि न आया वहाँ,
मान में उसने मिथ्यात्व मत रच दिया। मान में उसने…
जिससे भव-भव भ्रमण उसका होता रहा,
वर्ष असंख्यातों तक चारों गति में भ्रमा।।अब सुनो तुम.।।३।।
आया कुछ पुण्य का योग उस जीव ने,
राजगृहि नगरी में जा जनम ले लिया। राजगृहि नगरी में…
वहाँ से देव बन फिर मनुज जन्म ले,
अर्धचक्री नारायण त्रिपृ… बना।।अब सुनो तुम.।।४।।
बन्धुओं! यह है मरीचि कुमार का संक्षिप्त कथानक जो भील की पर्याय से किसी तरह पुण्य के संयोगवश तीर्थंकर के कुल में राजकुमार बनकर पैदा हुआ किंतु वहाँ भी अहंकार के कारण मिथ्यात्व परम्पराओं को शुरु कर देने से वह असंख्यात वर्षों तक संसार में भटकता रहा। कभी-कभी कुतप करने से देव पर्याय भी प्राप्त की किन्तु वहाँ से भी मिथ्यात्व के संस्कारों में मरकर जब मनुष्य गति में आता तो परिव्राजक दीक्षा ही लेकर संसार भ्रमण को बढाता था पुन: त्रिपृ… नारायण की पर्याय से जाकर वह सातवें नरक में नारकी हुआ और वहाँ से आकर सिंह बना।
वह मांसाहारी सिंह पुन: मरकर प्रथम नरक में चला गया, वहाँ के दुखों को भोगकर पुनरपि वह नारकी जम्बूद्वीप में हिमवन् पर्वत के शिखर पर सुन्दर बालों बाला शेर हो गया। अब सुनिये, यह शेर कैसे अपने जीवन का उत्थान प्रारंभ करता है? और आगे जाकर दशवें भव में अहिंसा के अवतार महावीर तीर्थंकर के ऊश्प में जन्म धारण करता है।
-चौपाई-
वीर महावीर, बोलो जय जय महावीर-२
शेर था इक जंगल का राजा, उसको डर न किसी का भी था।
एक हिरण को मार गिराया, अपना भोजन उसे बनाया।।।
वह क्या जाने पर की पीर, वीर महावीर-
बोलो जय जय महावीर।।१।।
उसी समय आकाश मार्ग से, दो मुनि आ गये दया भाव से।
जोर से उसे उपदेश सुनाया, हे मृगराज! बहुत दु:ख पाया।।
अब तू तज दे हिंसा वीर! वीर महावीर-
बोलो जय जय महावीर।।२।।
शेर ने गुरु संबोधन पाया, जतिस्मरण उसे हो आया।
पिछले भवों का स्मरण जो आया, आँखों से झर झर अश्रु बहाया।।
मन में भरा सम्यक्त्व का नीर, वीर महावीर-
बोलो जय जय महावीर।।३।।
शेर की शांत भावना लख के, अणुव्रत ग्रहण कराया मुनि ने।
वह अब सच्चा श्रावक बन गया, निराहार व्रत ग्रहण कर लिया।
रोमांचक है चरित महावीर, वीर महावीर-
बोलो जय जय महावीर।।४।।
एक माह निराहार रहा वो, पशुओं ने मृतक समझ लिया उसको।
नोच नोच कर शेर को खाया, कष्ट सहनकर सुरपद पाया।।
स्वर्ग में पाया दिव्य शरीर, वीर महावीर-
बोलो जय जय महावीर।।५।।
दो सागर की आयु बिताकर, जनमा धातकि खंड में जाकर।
राजपुत्र कनकोज्वल बनकर, दीक्षा लेकर बन गये मुनिवर।।
फिस सन्यास से तजा शरीर, वीर महावीर-
बोलो जय जय महावीर।।६।।
देव बना फिर मनुज जनम ले, चक्रवर्ती प्रियमित्र बने वे।
फिर गये स्वर्ग वहाँ से आकर, मूल्यवान नरतन को पाकर।।
नन्द मुनि बन तजा शरीर, वीर महावीर-
बोलो जय जय महावीर।।७।।
इसी नन्द मुनि की पर्याय में, सोलह कारण भावना भाके।
तीर्थंकर प्रकृति को बांधा, अपने परम लक्ष्य को साधा।
अब उन्हें बनना है महावीर, वीर महावीर-
बोलो जय जय महावीर।।८।।
सुनो बंधु! सम्यक्त्व की महिमा, चार बार मुनि बनने की महिमा।
आखिर तीर्थंकर पद पाया, जग को मोक्ष का मार्ग बताया।
खुद बन गये वीरा अशरीर, वीर महावीर-
बोलो जय जय महावीर।।९।।
मेरे प्यारे भाई-बहनों! अब तुम्हें मैं ले चलती हूँ। उस कुण्डलपुर नगरी में, जहाँ आज से लगभग २६०० से अधिक वर्ष पूर्व भगवान महावीर का जन्म हुआ। तो आपको भी मेरे साथ बोलना है-
जैनी वीरों! हाँ भाई हाँ।
मेरे संग चलोगे, हाँ भाई हाँ।
इक चीज मिलेगी, क्या भाई क्या?
महावीर का जलवा, वाह भाई वाह।
अब सुनिये आगे की बात,
वीरायण को रखना याद।
यह है सबके हित की बात,
वीरा जनमे कुण्डलपुर में,
सिद्धार्थ राज त्रिशला के घर में।
देवों ने आ खुशी मनाई,
जन्मकल्याणक की बजी बधाई।
गीत-
बजी कुण्डलपुर में बधाई, नगरी में वीर जनमे-२
महावीर जी।
सबके मन खुशियाँ छाईं, नगरी में वीर जनमे-२
महावीर जी।
आप जानते हैं कि २६०० वर्षों के बाद अब न तो कुण्डलपुर में कोई महल रह गया और न ही उसके अवशेष, इसीलिए सन् २००१ में जब पूरे देश में भगवान महावीर का २६००वां जन्म कल्याणक महोत्सव मनाया तो पूज्य गणिनीप्रमुख आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी ने स्वयं बिहार प्रांत के उस कुण्डलपुर तीर्थ पर जाकर वहाँ भगवान के जन्म का प्रतीक नंद्यावर्त महल बनाने की प्रेरणा देकर प्राचीन इतिहास को साकार ऊश्प प्रदान किया है। सब मिलकर बोलें-
तर्ज-सज धज कर जिस दिन….
तेरी चंदन सी रज में, इक उपवन खिलाया है।
कुण्डलपुर के महावीरा तेरा महल बनाया है।।टेक.।।
जन्में जहाँ खेले जहाँ, त्रिशला माँ के नंदन।
उस कुण्डलपुर की धरती का सचमुच कण कण चंदन।।
चंदन सी उस माटी को सिर पर लगाया है।
कुण्डलपुर के महावीरा तेरा महल बनाया है।।१।।
सोने का नंद्यावर्त महल सिद्धारथ जी का था।
मणियों के पलंग पर त्रिशला ने सपनों को देखा था।।
उन सपनों को सार्थक करके फिर से दिखलाया है।
कुण्डलपुर के महावीरा तेरा महल बनाया है।।२।।
महानुभावों! आप लोग जब भी सम्मेदशिखर की यात्रा करने जाते हैं तो उधर कुण्डलपुर की यात्रा भी करते हैं अत: नंद्यावर्त महल के ऐतिहासिक दृश्यों को अवश्य देखा होगा। सब मिलकर पुन: बोलिए-
-चौपाई-
वीर महावीर, बोलो जय जय महावीर-२।
पन्द्रह महीने कुण्डलपुर में, रत्नवृष्टि की थी धनपति ने।
इन्द्रदेवगण आये वहाँ पर, जन्म कल्याण मनाया धरा पर।।
क्षीरोदधि का लाये नीर, जन्माभिषेक किया शिशु वीर।।
वीर महावीर बोलो जय जय महावीर।।१।।
प्यारे भक्तों! जन्मकल्याणक के ये रोमांचक दृश्य आप पंचकल्याणक महोत्सवों में देखते ही हैं, जिसे देखने मात्र से रोम-रोम पुलकित हो जाता है। देखो! सौधर्म इन्द्र ने तो भगवान के ऊश्प को निरखने के लिए अपने नेत्र एक हजार बना लिए थे। आप भी जब भगवान की प्रतिमा के दर्शन करें तो अपनी दो आँखों से प्रतिमा की अच्छी प्रकार से निरखें, देखें और उनकी वीतराग छवि को अपने हृदय में अंकित कर लें। तो मिलकर बोलिए-
नाम तिहारा तारनहारा कब तेरा दर्शन होगा।
तेरी प्रतिमा इतनी सुन्दर, तू कितना सुन्दर होगा।। टेक.।।
जाने कितनी माताओं ने, कितने सुत जन्में हैं।
पर इस वसुधा पर तेरे सम, कोई नहीं बने हैं।।
पूर्व दिशा में सूर्य देव सम, सदा तेरा सुमिरन होगा।
तेरी प्रतिमा इतनी सुन्दर, तू कितना सुन्दर होगा।।१।।
पृथ्वी के सुन्दर परमाणू, सब तुझमें ही समा गए।
केवल उतने ही अणु मिलकर, तेरी रचना बना गए।।
इसीलिए तुझ सम सुन्दर नहिं, कोई नर सुन्दर होगा।
तेरी प्रतिमा इतनी सुन्दर, तू कितना सुन्दर होगा।।२।।
मन में तव सुमिरन करने से, पाप सभी नश जाते हैं।
यदि प्रत्यक्ष करें तव दर्शन, मनवांछित फल पाते हैं।।
आज ‘‘चंदनामती’’ प्रभू का, अनुपम गुण कीर्तन होगा।
तेरी प्रतिमा इतनी सुन्दर, तू कितना सुन्दर होगा।।३।।
मेरी प्यारी बहनों! आप लोग भगवान महावीर का पालना भी तो बड़े चाव से झुलाती हैं। शचि इन्द्राणी भगवान तीर्थंकर बालक को स्वर्ग से लाए हुए दिव्य वस्त्र-आभूषणों से सजाती है और सब मिलकर जब रत्नजडित पालने में पालनहारे प्रभु को झुलाते हैं तो कितना आनंद आता है। तो चलो झुलाओ और गाओ पालना गीत-
महावीरा झूलें पलना, जरा होले झोटा दीजो।
जरा होले झोटा दीजो, नेक धीरे झोटा दीजो।।
अब कुण्डलपुर के राजकुमार त्रिशला नंदन महावीर धीरे-धीरे दूज के चांद सदृश बड़े होने लगे। ध्यान दीजिएगा कि तीर्थंकर के पाँच नाम संसार में प्रसिद्ध हैं-वीर-वर्धमान- सन्मति-महावीर और अतिवीर। इनमें से वीर और वर्धमान ये दो नाम सौधर्मइंद्र ने पाण्डुक शिला पर जन्माभिषेक करने के बाद रखे थे। पुन: भगवान जब शिशु के ऊश्प में नंद्यावर्त महल के अंदर पालना झूल रहे थे तब एक दिन आकाशमार्ग से संजय-विजय नामके दो चारण ऋद्धिधारी मुनिराज आकर बालक की प्रदक्षिणा करने लगे तभी उनके मन की किसी सूक्ष्म शंका का समाधान स्वयं ही हो गया अत: उन्होंने वीर का नाम ‘‘सन्मति’’ रखकर अपनी श्रद्धा प्रगट की। सब मिलकर बोलिए-