Jambudweep - 7599289809
encyclopediaofjainism@gmail.com
About Us
Facebook
YouTube
Encyclopedia of Jainism
  • विशेष आलेख
  • पूजायें
  • जैन तीर्थ
  • अयोध्या

णमोकार महामंत्र की महिमा!

July 6, 2017स्वाध्याय करेंjambudweep

णमोकार महामंत्र की महिमा


प्रस्तुति-गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी
णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं। णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं।।१।।
अर्थ-अर्हंतों को नमस्कार हो, सिद्धों को नमस्कार हो, आचार्यों को नमस्कार हो, उपाध्यायों को नमस्कार हो और सर्व साधुओं को नमस्कार हो। पंचपरमेष्ठी वाचक इस महामंत्र में सम्पूर्ण द्वादशांग निहित है। यथा-
‘‘आचार्यों ने द्वादशांग जिनवाणी का वर्णन करते हुए प्रत्येक की पदसंख्या तथा समस्त श्रुतज्ञान अक्षरों की संख्या का वर्णन किया है। इस महामंत्र में समस्त श्रुतज्ञान विद्यमान है क्योंकि पंचपरमेष्ठी के अतिरिक्त अन्य श्रुतज्ञान कुछ नहीं है। अत: यह महामंत्र समस्त द्वादशांग जिनवाणीरूप है। इस महामंत्र का विश्लेषण करने पर निम्न निष्कर्ष सामने आते हैं- इस मंत्र में ५ पद और ३५ अक्षर हैं। णमो अरिहंताणं·७ अक्षर, णमो सिद्धाणं·५, णमो आइरियाणं·७, णमो उवज्झायाणं·७, णमो लोए सव्वसाहूणं· ९ अक्षर, इस प्रकार इस मंत्र में कुल ३५ अक्षर हैं। स्वर और व्यंजनों का विश्लेषण करने पर ऐसा प्रतीत होता है-
यथा-
ण्+अ+म्+ओ+अ+र्+इ+ह्+अं+त्+आ+ण्+अं। ण्+अ+म्+ओ+स्+इ+द्+ध्+आ+ण्+अं। ण्+अ+म्+ओ+आ+इ+र्+इ+य्+आ+ण्+अं। ण्+अ+म्+ओ+उ+व्+अ+ज्+झ्+आ+य्+आ+ण्+अं। ण्+अ+म्+ओ+ल्+ओ+ए+स्+अ+व्+व्+अ+स्+आ+ह्+ऊ+ण्+अं।
इस तरह प्रथम पद में ६ व्यंजन, ६ स्वर, द्वितीय पद में ६ व्यंजन, ५ स्वर, तृतीय पद में ५ व्यंजन, ७ स्वर, चतुर्थ पद में ६ व्यंजन, ७ स्वर, पंचम पद में ८ व्यंजन, ९ स्वर हैं। इस मंत्र में सभी वर्ण अजंत हैं, यहाँ हलन्त एक भी वर्ण नहीं है। अत: ३५ अक्षरों में ३५ स्वर और ३० व्यंजन होना चाहिए था किन्तु यहाँ स्वर ३४ हैं। इसका प्रधान कारण यह है कि ‘णमो अरिहंताणं’ इस पद में ६ ही स्वर माने जाते हैं। मंत्रशास्त्र के व्याकरण के अनुसार ‘णमो अरिहंताणं’ पद के ‘अ’ का लोप हो जाता है। यद्यपि प्राकृत में ‘एङ:’१-नेत्यनुवर्तते। एङि त्येदोतौ। एदोतो: संस्कृतोक्त: संधि: प्राकृते तु न भवति। यथा देवो अहिणंदणो, अहो अच्चरिअं, इत्यादि। सूत्र के अनुसार संधि न होने से ‘अ’ का अस्तित्व ज्यों का त्यों रहता है। ‘अ’ का लोप या खंडाकार नहीं होता है, किन्तु मंत्रशास्त्र में ‘बहुलम्’ सूत्र की प्रवृत्ति मानकर ‘स्वरयोरव्यवधाने प्रकृतिभावो लोपो वैकस्य।’२ इस सूत्र के अनुसार ‘अरिहंताणं’ वाले पद के ‘अ’ का लोप विकल्प से हो जाता है अत: इस पद में ६ ही स्वर माने जाते हैं। अत: मंत्र में कुल ३५ अक्षर होने पर भी ३४ ही स्वर माने जाते हैं। इनमें जो द्धा, ज्झा, व्व से संयुक्ताक्षर हैं, उनमें से एक-एक व्यंजन लेने से ३० व्यंजन होते हैं। इस प्रकार से कुल स्वर और व्यंजनों की संख्या ३४+३०·६४ है। मूल वर्णों की संख्या भी ६४ ही है। प्राकृत भाषा के नियमानुसार अ, इ, उ और ए मूल स्वर तथा ज झ ण त द ध य र ल व स और ह ये मूल व्यंजन इस मंत्र में निहित हैं। अतएव ६४ अनादि मूलवर्णों को लेकर समस्त श्रुत-ज्ञान के अक्षरों का प्रमाण निम्न प्रकार निकाला जा सकता है। गाथा सूत्र निम्न प्रकार है-
चउसट्ठिपदं विरलिय दुगं च दाऊण संगुणं किच्चा। रूऊणं च कए पुण सुदणाणस्सक्खरा होंति।।
अर्थ-उक्त चौंसठ अक्षरों का विरलन करके प्रत्येक के ऊपर दो का अंक देकर परस्पर सम्पूर्ण दो के अंकों का गुणा करने से लब्ध राशि में एक घटा देने से जो प्रमाण रहता है, उतने ही श्रुतज्ञान के अक्षर होते हैं। इस नियम से गुणाकार करने पर-एकट्ठ च च य छस्सत्तयं च च य सुण्णसत्ततियसत्ता। सुण्णं णव पण पंच य एक्कं छक्केक्कगो य पणयं च।। अर्थात् एक आठ चार-चार-छह-सात-चार-चार-शून्य-सात-तीन-सात-शून्य-नौ-पाँच-पाँच-एक-छह-एक-पाँच, यह संख्या आती है। इस गाथा सूत्र के अनुसार १८४४६७४४०७३७०९५५१६१५ ये समस्त श्रुतज्ञान के अक्षर होते हैं।
इस प्रकार णमोकार मंत्र में समस्त श्रुतज्ञान के अक्षर निहित हैं, क्योंकि अनादिनिधन मूलाक्षरों पर से ही उक्त प्रमाण निकाला गया है अत: संक्षेप में समस्त जिनवाणीरूप यह मंत्र है। इसका पाठ या स्मरण करने से कितना महान् पुण्य का बंध होता है तथा केवलज्ञान लक्ष्मी की प्राप्ति भी इस मंत्र की आराधना से होती है। ज्ञानार्णव में श्री शुभचन्द्राचार्य ने इस मंत्र की आराधना को बताते हुए लिखा है-
‘‘इस लोक में जितने भी योगियों ने मोक्षलक्ष्मी को प्राप्त किया है, उन सबने श्रुतज्ञानभूत इस महामंत्र की आराधना करके ही प्राप्त किया है। इस महामंत्र का प्रभाव योगियों के अगोचर है। फिर भी जो इसके महत्व से अनभिज्ञ होकर वर्णन करना चाहता है, मैं समझता हूँ कि वह वायुरोग से व्याप्त होकर ही बक रहा है। पापरूपी पंक से संयुत भी जीव यदि शुद्ध हुए हैं, तो इस मंत्र के प्रभाव से ही शुद्ध हुए हैं। मनीषीजन भी मंत्र के प्रभाव से ही संसार के क्लेश से छूटते हैं।’’
इसलिए इस महामंत्र की महिमा को अचिन्त्य ही समझना चाहिए। अयं महामंत्र: मंगलाचरणरूपेणात्र संग्रहीतोऽपि अनादिनिधन:, न तु केनापि रचितो ग्रथितो वा। उक्तम च णमोकारमंत्रकल्पे श्रीसकलकीर्तिभट्टारकै:- महापंचगुरोर्नाम, नमस्कारसुसम्भवम्। महामंत्रं जगज्जेष्ठ-मनादिसिद्धमादिदम्२।।६३।। महापंचगुरूणां, पंचत्रिंशदक्षरप्रमम्। उच्छ्वासैस्त्रिभिरेकाग्र-चेतसा भवहानये३।।६८।। श्रीमदुमास्वामिनापि प्रोक्तम्- ये केचनापि सुषमाद्यरका अनन्ता, उत्र्सिपणी-प्रभृतय: प्रययुर्विवर्ता:। तेष्वप्ययं परतर: प्रथितप्रभावो, लब्ध्वामुमेव हि गता: शिवमत्र लोका:४।।३।। अथवा द्रव्यार्थिकनयापेक्षयानादिप्रवाहरूपेणागतोऽयं महामंत्रोऽनादि:, पर्यायार्थिकनयापेक्षया हुंडावसर्पिणीकालदोषापेक्षया तृतीयकालस्यान्ते तीर्थंकरदिव्यध्वनिसमुद्गत: सादिश्चापि संभवति।
यह मंत्र किसी के द्वारा रचित या गूँथा हुआ नहीं है। प्राकृतिक रूप से अनादिकाल से चला आ रहा है। ‘‘णमोकार मंत्रकल्प’’ में श्री सकलकीर्ति भट्टारक ने कहा भी है-
श्लोकार्थ-नमस्कार मंत्र में रहने वाले पाँच महागुरुओं के नाम से निष्पन्न यह महामंत्र जगत् में ज्येष्ठ-सबसे बड़ा और महान है, अनादिसिद्ध है और आदि अर्थात् प्रथम है।।६३।।
पाँच महागुरुओं के पैंतीस अक्षर प्रमाण मंत्र को तीन श्वासोच्छ्वासों में संसार भ्रमण के नाश हेतु एकाग्रचित्त होकर सभी भव्यजनों को जपना चाहिए अथवा ध्यान करना चाहिए।।६८।।
श्रीमत् उमास्वामी आचार्य ने भी कहा है-
श्लोकार्थ-उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी आदि के जो सुषमा, दु:षमा आदि अनन्त युग पहले व्यतीत हो चुके हैं उनमें भी यह णमोकार मंत्र सबसे अधिक महत्त्वशाली प्रसिद्ध हुआ है। मैं संसार से बहिर्भूत (बाहर) मोक्ष प्राप्त करने के लिए उस णमोकार मंत्र को नमस्कार करता हूँ।।३।। अथवा द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा से अनादि प्रवाहरूप से चला आ रहा यह महामंत्र अनादि है और पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा हुंडावसर्पिणी कालदोष के कारण तृतीय काल के अंत में तीर्थंकर की दिव्यध्वनि से उत्पन्न होने के कारण यह सादि भी है। 
 
Tags: Namokar Mahamantra
Previous post नंदिषेण बलभद्र एवं पुण्डरीक नारायण Next post भाग्य एवं पुरुषार्थ का अनेकांत!

Related Articles

णमोकार महामंत्र!

July 6, 2017jambudweep

अनादिनिधन महामंत्र

July 16, 2014jambudweep

01.2 णमोकार मंत्र

November 20, 2022jambudweep
Privacy Policy