Jambudweep - 7599289809
encyclopediaofjainism@gmail.com
About Us
Facebook
YouTube
Encyclopedia of Jainism
  • विशेष आलेख
  • पूजायें
  • जैन तीर्थ
  • अयोध्या

अभिनन्दननाथ भगवान -चतुर्थ तीर्थंकर

November 22, 2022जैनधर्मHarsh Jain

तीर्थंकर भगवान अभिनन्दननाथ


 

चौथे तीर्थंकर भगवान अभिनन्दननाथ का जीवन दर्शन

(Life-sketch of Fourth Teerthankar Bhagwan Abhinandannath)


जन्म भूमि अयोध्या (उत्तर प्रदेश) प्रथम आहार साकेत नगरी के राजा इन्द्रदत्त द्वारा (खीर)
पिता  महाराज स्वयंवरराज केवलज्ञान पौष शु. १४
माता  महारानी सिद्धार्था मोक्ष वैशाख शु.६
वर्ण क्षत्रिय मोक्षस्थल सम्मेद शिखर पर्वत
वंश इक्ष्वाकु समवसरण में गणधर श्री वज्रनाभि आदि १०३
देहवर्ण  तप्त स्वर्ण सदृश मुनि  तीन लाख (३०००००)
चिन्ह बंदर गणिनी  आर्यिका मेरुषेणा
आयु पचास (५ ०) लाख पूर्व वर्ष आर्यिका  तीन लाख तीस हजार छह सौ (३३०६००)
अवगाहना चौदह सौ (१४००) हाथ श्रावक  तीन लाख (३०००००)
गर्भ वैशाख शु. ६ श्राविका  पांच लाख (५०००००)
जन्म माघ शु. १२  जिनशासन यक्ष  यक्षेश्वर देव
तप माघ शु. १२ यक्षी  वज्रश्रृंखला देवी
दीक्षा -केवलज्ञान वन एवं वृक्ष सहेतुक वन एवं असन वृक्ष


परिचय

जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में सीता नदी के दक्षिण तट पर एक मंगलावती देश है उसके रत्नसंचय नगर में महाबल राजा रहता था। किसी दिन विरक्त होकर विमलवाहन गुरू के पास दीक्षा लेकर ग्यारह अंग का पठन करके सोलहकारण भावनाओं का चिन्तवन किया, तीर्थंकर प्रकृति का बंध करके अन्त में समाधिमरणपूर्वक विजय नाम के अनुत्तर विमान में तेतीस सागर आयु वाला अहमिन्द्र देव हो गया।

गर्भ और जन्म

इसी जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में अयोध्या नगरी के स्वामी इक्ष्वाकुवंशीय काश्यपगोत्रीय ‘स्वयंवर’ नाम के राजा थे, उनकी ‘सिद्धार्था’ महारानी थी। माता ने वैशाख शुक्ला षष्ठी के दिन उस अहमिन्द्र को गर्भ में धारण किया और माघ शुक्ला द्वादशी के दिन उत्तम पुत्र को उत्पन्न किया। सौधर्म इन्द्र ने देवों सहित मेरू पर्वत पर जन्म महोत्सव मनाया और भगवान का ‘अभिनन्दननाथ’ नाम प्रसिद्ध करके वापस माता-पिता को सौंप गये। उनकी आयु पचास लाख पूर्व और ऊँचाई साढ़े तीन सौ धनुष की थी।

ज्ञान और तप

कुमार काल के साढ़े बारह लाख पूर्व वर्ष बीत जाने पर राज्य पद को प्राप्त हुए, राज्य काल के साढ़े छत्तीस लाख पूर्व वर्ष व्यतीत हो गये और आठ पूर्वांग शेष रहे तब वे एक दिन आकाश में मेघों का महल नष्ट होता देखकर विरक्त हो गये और देवनिर्मित ‘हस्तचित्रा’ नामक पालकी पर आरूढ़ होकर माघ शुक्ला द्वादशी के दिन बेला का नियम लेकर एक हजार राजाओं के साथ जिनदीक्षा धारण कर ली, उसी समय उन्हें मन:पर्यय ज्ञान प्रगट हो गया। पारणा के दिन साकेत नगरी के राजा इन्द्रदत्त ने भगवान को क्षीरान्न का आहार कराया और पंचाश्चर्य को प्राप्त किया।

केवलज्ञान और मोक्ष

छद्मस्थ अवस्था के अठारह वर्ष बीत जाने पर दीक्षा वन में असन वृक्ष के नीचे बेला का नियम लेकर ध्यानारूढ़ हुए। पौष शुक्ल चतुर्दशी के दिन शाम के समय पुनर्वसु नक्षत्र में उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हो गया। इनके समवसरण में वज्रनाभि आदि एक सौ तीन गणधर, तीन लाख मुनि, मेरुषेणा आदि तीन लाख तीस हजार छह सौ आर्यिकाएँ, तीन लाख श्रावक, पाँच लाख श्राविकाएँ, असंख्यातों देव-देवियाँ और संख्यातों तिर्यंच बारह सभा में बैठकर धर्मोपदेश श्रवण करते थे। इन अभिनन्दननाथ भगवान ने अन्त में सम्मेदशिखर पर पहुँचकर एक महीने का प्रतिमायोग लेकर वैशाख शुक्ला षष्ठी के दिन प्रात:काल के समय अनेक मुनियों के साथ मोक्ष प्राप्त किया। इन्द्रों के द्वारा किये गये सारे वैभव यहाँ भी समझना चाहिए। .

भगवान अभिनन्दननाथ चालीसा!

भगवान अभिनन्दननाथ वन्दना

अभिनन्दननाथ स्तोत्र

अभिनंदननाथ स्तुति

अभिनन्दननाथ पूजा

अभिनंदननाथ विधान

अभिनन्दननाथ भगवान की आरती!

Tags: Mahapuraan saar, Teerthankar Intoduction
Previous post संभवनाथ भगवान-तृतीय तीर्थंकर Next post तीर्थंकर भगवान सुमतिनाथ (संक्षिप्त वर्णन)

Related Articles

अजितनाथ भगवान-द्वितीय तीर्थंकर

November 22, 2022Harsh Jain

हरिषेण चक्रवर्ती

February 12, 2017jambudweep

पुण्य-पाप पदार्थ

February 12, 2017jambudweep
Privacy Policy