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तीर्थंकर भगवान वासुपूज्य (संक्षिप्त वर्णन)

November 22, 2022जैनधर्मHarsh Jain

तीर्थंकर भगवान वासुपूज्य


 

बारहवें तीर्थंकर भगवान वासुपूज्य का जीवन दर्शन

(Life-sketch of Twelfth Teerthankar Bhagwan Vasupoojya)


जन्म भूमि चंपापुर (जि.-भागलपुर) बिहार प्रथम आहार महानगर के राजा सुंदर द्वारा (खीर)
पिता महाराजा वसुपूज्य केवलज्ञान माघ शु.२
माता महारानी जयावती मोक्ष भाद्रपद शु.१४
वर्ण क्षत्रिय मोक्षस्थल चंपापुर (मंदारगिरि)
वंश इक्ष्वाकु समवसरण में गणधर श्री धर्म आदि ६६
देहवर्ण  पद्मरागमणि सदृश मुनि बहत्तर हजार (७२०००)
चिन्ह भैंसा गणिनी  आर्यिका सेनार्या
आयु बहत्तर लाख (७२) वर्ष आर्यिका  एक लाख छह हजार (१०६०००)
अवगाहना दो सौ अस्सी (२८०) हाथ श्रावक  दो लाख (२०००००)
गर्भ आषाढ़ कृ.६ श्राविका  चार लाख (४०००००)
जन्म फाल्गुन कृ. १४ जिनशासन यक्ष  षण्मुख देव
तप फाल्गुन कृ.१४ यक्षी  गांधारी देवी
दीक्षा -केवलज्ञान वन एवं वृक्ष मनोहर उद्यान एवं कदंब वृक्ष
का चिन्तवन करते हुए दीक्षित हो गया। ग्यारह अंगों का अध्ययन करके दर्शनविशुद्धि आदि भावनाओं की सम्पत्ति से तीर्थंकर नामकर्म का बन्ध कर लिया जिससे महाशुक्र विमान में महाशुक्र नामका इन्द्र हुआ।

गर्भ और जन्म 

इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में चम्पानगर में ‘अंग’ नाम का देश है जिसका राजा वसुपूज्य था और रानी जयावती थी। आषाढ़ कृष्ण षष्ठी के दिन रानी ने पूर्वोक्त इन्द्र को गर्भ में धारण किया और फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी के दिन पुण्यशाली पुत्र को उत्पन्न किया। इन्द्र ने जन्म उत्सव करके पुत्र का ‘वासुपूज्य’ नाम रखा। जब कुमार काल के अठारह लाख वर्ष बीत गये, तब संसार से विरक्त होकर भगवान जगत के यथार्थस्वरूप का विचार करने लगे।

तप

तत्क्षण ही देवों के आगमन हो जाने पर देवों द्वारा निर्मित पालकी पर सवार होकर मनोहर नामक उद्यान में गये और फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी के दिन छह सौ छिहत्तर राजाओं के साथ स्वयं दीक्षित हो गये।

केवलज्ञान और मोक्ष

छद्मस्थ अवस्था का एक वर्ष बीत जाने पर भगवान ने कदम्ब वृक्ष के नीचे बैठकर माघ शुक्ल द्वितीया के दिन सायंकाल में केवलज्ञान को प्राप्त कर लिया। भगवान बहुत समय तक आर्यखंड में विहार कर चम्पानगरी में आकर एक वर्ष तक रहे। जब आयु में एक माह शेष रह गया, तब योग निरोध कर रजतमालिका नामक नदी के किनारे की भूमि पर वर्तमान चम्पापुरी नगरी में स्थित मन्दारगिरि के शिखर को सुशोभित करने वाले मनोहर उद्यान में पर्यंकासन से स्थित होकर भाद्रपद शुक्ला चतुर्दशी के दिन चौरानवे मुनियों के साथ मुक्ति को प्राप्त हुए।
Tags: Teerthankar Intoduction
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