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संभवनाथ भगवान-तृतीय तीर्थंकर

November 22, 2022जैनधर्मHarsh Jain

 तीर्थंकर भगवान संभवनाथ

 


 

तृतीय तीर्थंकर भगवान संभवनाथ का जीवन दर्शन

(Life-sketch of Third Teerthankar Bhagwan Sambhavnath


जन्म भूमि श्रावस्ती (जिला-बहराइच) उत्तर प्रदेश  प्रथम आहार श्रावस्ती के राजा सुरेन्द्रदत्त द्वारा (खीर)
पिता  महाराज दृढ़राज केवलज्ञान कार्तिक कृ.४
माता  महारानी सुषेणा मोक्ष चैत्र शु.६
वर्ण क्षत्रिय मोक्षस्थल सम्मेद शिखर पर्वत
वंश इक्ष्वाकु समवसरण में गणधर श्री चारूषेण आदि १०५
देहवर्ण  तप्त स्वर्ण सदृश मुनि  दो लाख (२०००००)
चिन्ह  घोड़ा गणिनी  आर्यिका धर्मार्या
आयु साठ (६०) लाख पूर्व वर्ष आर्यिका  तीन लाख बीस हजार (३२००००)
अवगाहना सोलह सौ (१६००) हाथ श्रावक  तीन लाख (३०००००)
गर्भ फाल्गुन शु.८ श्राविका  पांच लाख (५०००००)
जन्म कार्तिक शु. १५  जिनशासन यक्ष  त्रिमुखदेव
तप मगसिर शु.१५ यक्षी  प्रज्ञप्तिदेवी
दीक्षा -केवलज्ञान वन एवं वृक्ष सहेतुक वन एवं शाल्मलि वृक्ष


परिचय

जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में सीता नदी के उत्तर तट पर एक ‘कच्छ’ नाम का देश है। उसके क्षेमपुर नगर में राजा विमलवाहन राज्य करता था। एक दिन वह किसी कारण से विरक्त होकर स्वयंप्रभ जिनेन्द्र के पास दीक्षा लेकर ग्यारह अंग श्रुत को पढ़कर उन्हीं भगवान के चरण सान्निध्य में सोलह कारण भावना द्वारा तीनों लोकों में क्षोभ उत्पन्न करने वाले तीर्थंकर नामकर्म का बंध कर लिया। संन्यासविधि से मरण कर प्रथम ग्रैवेयक के सुदर्शन विमान में तेतीस सागर की आयु वाला अहमिन्द्र देव हो गया।

गर्भ और जन्म 

इसी जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र की श्रावस्ती नगरी के राजा दृढ़राज इक्ष्वाकुवंशीय, काश्यपगोत्रीय थे। उनकी रानी का नाम सुषेणा था। फाल्गुन शुक्ला अष्टमी के दिन, मृगशिरानक्षत्र में रानी ने पूर्वोक्त अहमिन्द्र को गर्भ में धारण किया और कार्तिक शुक्ला पौर्णमासी के दिन मृगशिरा नक्षत्र में तीन ज्ञानधारी पुत्र को जन्म दिया। इन्द्र ने पूर्वोक्त विधि से गर्भकल्याणक मनाया था, उस समय जन्मोत्सव करके ‘संभवनाथ’ यह नाम रखा। इनकी आयु साठ लाख पूर्व की तथा ऊँचाई चार सौ धनुष थी।

तप

भगवान को राज्य सुख का अनुभव करते हुए जब चवालीस लाख पूर्व और चार पूर्वांग व्यतीत हो चुके,तब किसी दिन मेघों का विभ्रम देखने से उन्हें आत्मज्ञान प्राप्त हो गया।
तब भगवान देवों द्वारा लाई गई ‘सिद्धार्था’ पालकी में बैठकर सहेतुक वन में शाल्मली वृक्ष के नीचे जाकर एक हजार राजाओं के साथ दीक्षित हो गये। भगवान की प्रथम पारणा का लाभ श्रावस्ती के राजा सुरेन्द्रदत्त ने प्राप्त किया था।

केवलज्ञान और मोक्ष

संभवनाथ भगवान चौदह वर्ष तक छद्मस्थ अवस्था में मौन से तपश्चरण करते हुए दीक्षा वन में शाल्मली वृक्ष के नीचे कार्तिक कृष्ण चतुर्थी के दिन मृगशिर नक्षत्र में अनन्तचतुष्टय को प्राप्त कर केवली हो गये। इनके समवसरण में चारूषेण आदि एक सौ पाँच गणधर थे, दो लाख मुनि, धर्मार्या आदि तीन लाख बीस हजार आर्यिकाएँ, तीन लाख श्रावक, पाँच लाख श्राविकाएँ, असंख्यात देव-देवियाँ और संख्यात तिर्यंच थे। अन्त में जब आयु का एक माह अवशिष्ट रहा, तब उन्होंने सम्मेदाचल पर जाकर एक हजार राजाओं के साथ प्रतिमायोग धारण किया तथा चैत्रमास के शुक्लपक्ष की षष्ठी के दिन सूर्यास्त के समय मोक्षलक्ष्मी को प्राप्त किया। देवों द्वारा किए गए पंचकल्याणक महोत्सव को पूर्ववत् समझना चाहिए।

भगवान संभवनाथ जन्मभूमि श्रावस्ती

भगवान संभवनाथ विधान

भगवान संभवनाथ पूजा

भगवान संभवनाथ की आरती

भगवान संभवनाथ चालीसा

भगवान संभवनाथ जन्मभूमि श्रावस्ती तीर्थक्षेत्र चालीसा!

भगवान संभवनाथ वन्दना

संभवनाथ जन्मभूमि श्रावस्ती तीर्थ

Tags: Teerthankar Intoduction
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