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निर्ग्रन्थ वन्दना गुरु स्तुति

June 11, 2020कविताएँIndu Jain

निर्ग्रन्थ वन्दना गुरु स्तुति



 
त्याग तपस्या लखकर जगके,रोम खड़े हो जाते है-2।
 
ये धरती के देव दिगम्बर,महा मुनि कहलाते है-2॥
 
उपसर्गों से डिगे नहीं ,सम्मान नहीं अपनाते है।
 
समयसार के समता रस का,पल पल पान कराते है॥
 
अरघ चढ़े या असी चले पर-2,तनिक नही अकुलाते है।
 
ये धरती के देव दिगम्बर,महा मुनि कहलाते है-2॥
 
शीत ऋतु में नदी किनारे,आतम ध्यान लगाते है।
 
वर्षा ऋतु में वृक्ष तले गुरु,आतम रस झलकाते है॥
 
ग्रीष्म काल पर्वत पर तपकर-2,चेतन स्वर्ण बनाते है।
 
ये धरती के देव दिगम्बर,महा मुनि कहलाते है-2॥
 
एक बार आहार करें गुरु,धरती पर सो जाते है।
 
करवट यूं ही नहीं बदलते,पिच्छी पास लगाते है॥
 
करुणा विग्लित रौंम रौंम से-2,करुणा रस झलकाते है।
 
ये धरती के देव दिगम्बर,महा मुनि कहलाते है-2॥
 
अंतराय आने पर गुरुवर,समता रस झलकाते है।
 
बिन भोजन पानी के गुरुवर,घंटो ज्ञान सुनाते है॥
 
कलयुग मे सतयुग को लखकर-2,धन्य धन्य हो जाते है।
 
ये धरती के देव दिगम्बर,महा मुनि कहलाते है-2॥
 
धर्म ध्यान को तजकर गुरुवर;शुद्धातम में जाते है।
 
पुन्य पाप के फल को तजकर,शुद्धातम प्रगटाते है॥
 
समयसार की मूरत लखकर-2,लघुनन्दन हर्षाते है।
 
ये धरती के देव दिगम्बर,महा मुनि कहलाते है-2॥
 
Tags: Jain Poetries
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