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पनिहार जिला ग्वालियर से प्राप्त जैन मूर्ति का विशाल भंडार!

July 19, 2017जैन पुरातत्त्वjambudweep

पनिहार जिला ग्वालियर से प्राप्त जैन मूर्ति का विशाल भंडार


 पुरातत्व विभाग गूजरी महल संग्रहालय से प्राप्त जानकारी के आधार पर मैं दिनांक १-१०-९० को ग्राम पनिहार जिला ग्वालियर, जो राजकीय राजमार्ग आगरा—बाम्बे पर ग्वालियर से २० कि.मी. की दूरी पर है, में गया। वहाँ एक विशालकाय टीले पर खुदाई कार्य चल रहा था। विदित हो कि इस भाग से एक रेलवे लाइन डाली जा रही थी उसी की खुदाई में जैन तीर्थंकर की मूर्तियाँ, जिसमें सर्वतो भद्रिका की लगभग चार मूर्तियाँ, जिसमें सर्वतो भद्रिका की लगभग चार मूर्तियाँ, जिसमें सर्वतो भद्रिका की लगभग चार मूर्तियाँ एवं कायोत्सर्ग में जैन तीर्थंकर जिनमें आदिनाथ एवं नेमिनाथ की कई मूर्तियाँ १०वीं शताब्दी की प्राप्त हुई, जो वहीं संग्रहीत हैं। संभवत: प्राचीन काल में यहाँ विशाल जैन मन्दिर था जिसके अवशेष प्राप्त हो रहे हैं। चूँकि यह गोपाचल सिद्धक्षेत्र से नजदीक है एवं इस ग्राम में मौर्यकाल से लेकर प्रतिहार काल तक के पुरावशेष बिखरे पड़े हैं। यहीं से लगा हुआ ग्राम बरई है जो मध्यकाल में तोमर राजा मानिंसह की रास लीला स्थली रही है।
आज यह स्मारक म. प्र. शासन द्वारा संरक्षित है जो सुरक्षित तरीके से है। १४—१५ वीं शती का यह सबसे प्रसिद्ध खुला रंगमंच था यहाँ विशेष समारोह आयोजित किये जाते रहे। स्मारक के अन्दर गोलाकार प्लेट फार्म बना है चारों तरफ ऊँचे—ऊँचे स्तम्भ बनें हैं। जिसमें प्रकाश व्यवस्था रही थी, चारो तरफ दर्शकों के बैठने की भी व्यवस्था है। ज्ञात हो कि तोमर राजा डुँगरेन्द्र सिंह जो स्वयं जैन धर्म को मानते थे और किले के चारों तरफ जैन मूर्तियाँ पहाड़ी को काटकर बनवाई गई है। इससे सिद्ध होता है पनिहार में भी जैनधर्म का प्रमुख केन्द्र रहा है। पुरातत्व विभाग इस क्षेत्र को सुरक्षित रखने हेतु कटिबद्ध है। पनिहार में ही एक किला है ग्वालियर से पनिहार तक रेलवे लाइन भी पहुँच गई है। जैन श्रद्धालु यहाँ पर पहुँचते हैं। ग्राम में कई नये जैन मन्दिर भी बने हैं। इस प्रकार एक ही जगह जैन C का भंडार प्राप्त होने से यह क्षेत्र विशिष्ट स्थान रखता है। निश्चित ही जैन आचार्यों में से किसी आचार्य का यह महत्वपूर्ण स्थान रहा होगा विशेष तो शोध कार्य से ही ज्ञात हो सकता है।
लाल बहादुर सिंह
संग्रहाध्यक्ष, केन्द्रीय पुरातत्व संग्रहालय,
गूजरी महल, ग्वालियर
अर्हत् वचन जनवरी १९९३ पेज नं. ५३
Tags: Jain Archeology, Madhya Pradesh
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