Jambudweep - 7599289809
encyclopediaofjainism@gmail.com
About Us
Facebook
YouTube
Encyclopedia of Jainism
  • विशेष आलेख
  • पूजायें
  • जैन तीर्थ
  • अयोध्या

भगवान ऋषभदेव चालीसा

May 23, 2020जिनेन्द्र भक्तिjambudweep
 

भगवान ऋषभदेव चालीसा

दोहा
 
अठरह दोषों से रहित, श्री अरिहन्त जिनेश।
मुख्य आठ गुण से सहित, सिद्धप्रभू परमेश।।१।।
इनके चरण-कमल नमूँ, हाथ जोड़ सिर नाय।
वीणावादिनि मात को, हृदयाम्बुज में ध्याय।।२।।
इस युग के प्रथमेश श्री ऋषभदेव भगवान।
चालीसा के पाठ से, करूँ प्रभू गुणगान।।३।।
 
चौपाई
 
आदीब्रह्मा आदिनाथ जी, हैं पुरुदेव युगादिनाथ जी।।१।।
वृषभजिनेश्वर! नाभिललन की, जय हो युगस्रष्टा प्रभुवर की।।२।।
इस युग के तुम आदिविधाता, शरणागत को सुगति प्रदाता।।३।।
कर्मभूमि के कर्ता तुम हो, विधि के प्रथम विधाता तुम हो।।४।।
भगवन्! तुमने ही इस युग में, मोक्षमार्ग बतलाया जग में।।५।।
सबसे पहले ब्राह्मी-सुन्दरि, कन्याओं को शिक्षा दी थी।।६।।
वही प्रथा अब भी चलती है, नारी शिक्षा खूब बढ़ी है।।७।।
तुमने सबसे पहले प्रभु जी, कला सिखाई थी जीने की।।८।।
असि-मसि-कृषि-विद्या-व्यापार-शिल्प ये जीवन के आधार।।९।।
सबसे पहला केशलोंच भी, तुमने ही तो किया प्रभू जी।।१०।।
सबसे पहली मुनिदीक्षा भी, तुमने ही प्रभु धारण की थी।।११।।
सबसे पहला समवसरण प्रभु, बना तुम्हारा अधर गगन में।।१२।।
इस युग में पहली दिव्यध्वनि, प्रभु के श्रीमुख से ही खिरी थी।।१३।।
एक बात हम तुम्हें बताएँ, भ्रान्ति तुम्हारे मन की मिटाएँ।।१४।।
कहते हैं प्रभु को छह महिने, नहीं मिला आहार कहीं पे।।१५।।
क्योंकी उनने पूरब भव में, वस्त्र लगाया बैल के मुँह में।।१६।।
जिससे बैल नहीं कुछ खाए, अन्न कहीं कम ना हो जाए।।१७।।
लेकिन भैया! यह सच नहिं है, किसी ग्रन्थ में वर्णन नहिं है।।१८।।
तुम इसका सच आज समझ लो, आदिपुराण ग्रंथ को पढ़ लो।।१९।।
किसी को ज्ञात न थी मुनिचर्या, अत: नहीं आहार दिया था।।२०।।
इसी तरह इक और भ्रांति है, जो जन-जन में पूर्ण व्याप्त है।।२१।।
ब्राह्मी-सुन्दरि कन्याओं ने, क्यों नहिं ब्याह रचाया उन्होंने।।२२।।
क्यों उन दोनों ने दीक्षा ली, उत्तर सही बताओ जल्दी।।२३।।
सब कहते हैं उनके पति के, आगे झुकना पड़ता पितु को।।२४।।
इसीलिए वे दोनों कन्या, दीक्षा ले बन गयीं आर्यिका।।२५।।
लेकिन इसको सच न समझना, जैन दिगम्बर आगम पढ़ना।।२६।।
पूज्य ज्ञानमती माताजी ने, पढ़े सैकड़ों ग्रंथ पुराने।।२७।।
किसी ग्रंथ में नहीं लिखा है, जाने यह कैसी चर्चा है।।२८।।
उन दोनों ने तो जग-वैभव, समझा साररहित नश्वर है।।२९।।
उनके मन वैराग्य समाया, तभी आर्यिका पद अपनाया।।३०।।
पहले तुम निज भ्रान्ति मिटाओ, फिर जन-जन को सच बतलाओ।।३१।।
आदिनाथ प्रभु के बारे में, अब कुछ और सुनो तुम आगे।।३२।।
नगरि अयोध्या में जन्मे थे, चैत्र कृष्ण नवमी शुभतिथि में।।३३।।
दीक्षा धारण की प्रयाग में, वहीं हुआ था दिव्यज्ञान भी।।३४।।
मोक्ष हुआ कैलाशगिरी से, शत-शत नमन करें उन प्रभु को।।३५।।
ऋषभदेव की टोंक पे भव्यों! इक सुन्दर मंदिर निर्मित है।।३६।।
पूज्य ज्ञानमति माताजी की, मिली प्रेरणा कार्य हुआ तब।।३७।।
शाश्वत तीर्थ अयोध्या जी के, दर्शन करना आवश्यक है।।३८।।
अपने जीवन में कम से कम, एक बार तो कर लो दर्शन।।३९।।
नरभव सार्थक हो जाएगा, पुण्य बहुत ही मिल जाएगा।।४०।।
जन्मभूमि का दर्शन सबको, खूब ‘‘सारिका’’ मंगलमय हो।।४१।।
 
दोहा
 
प्रथम जिनेश्वर देव का, यह चालीसा पाठ।
पढ़ो सभी चालीस दिन, तक चालीसहिं बार।१।।
भारतगौरव ज्ञानमती गणिनी मात महान।
उनकी शिष्या ज्योतिपुंज चन्दना-मति मात।।२।।
उनकी मिली सुप्रेरणा, अत: लिखा यह पाठ।
यदि कोई त्रुटि रह गई, करें नहीं उपहास।।३।।
इसको पढ़कर भव्यजन, दूर करें निज भ्रान्ति।
धन-सम्पति-सौभाग्य अरु प्राप्त करें सुख शान्ति।।४।।
 
 
 
Tags: Chalisa
Previous post भगवान अजितनाथ चालीसा! Next post भगवान सुमतिनाथ चालीसा!

Related Articles

भगवान महावीर केवलज्ञान भूमि ज्रम्भिका तीर्थक्षेत्र चालीसा!

June 11, 2020jambudweep

भगवान संभवनाथ चालीसा!

May 23, 2020jambudweep

श्री महालक्ष्मी चालीसा!

June 11, 2020jambudweep
Privacy Policy