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भगवान पार्श्वनाथ केवलज्ञान भूमि अहिच्छत्र तीर्थक्षेत्र चालीसा
June 11, 2020
जिनेन्द्र भक्ति
jambudweep
भगवान पार्श्वनाथ केवलज्ञान भूमि अहिच्छत्र तीर्थक्षेत्र चालीसा
दोहा
तीर्थंकर श्री पार्श्व को ,जहाँ हुआ था ज्ञान
उस तीरथ अहिच्छत्र का,पूज्य है हर स्थान ||१||
चालीसा शुभ तीर्थ का, हो सबको हितकार
मनवांछापूरक बना, पारस का दरबार || २||
चौपाई
जिला बरेली में यह तीरथ, है तहसील आंवला मनहर ||१||
संख्यावती नाम था पहले, रामनगर के एक भाग में ||२||
तेइसवें तीर्थंकर स्वामी, पारस प्रभुवर अंतर्यामी ||३||
ध्यानारूढ वहाँ तिष्ठे थे,संवर ज्योतिष उधर से निकले ||४||
दस भव का वह वैरी संवर, घोरोपसर्ग किया था प्रभु पर ||५||
पद्मावति धरणेन्द्र देव का,दृश्य देख आसन था कंपा ||६||
तत्क्षण अपने लोक से आकर, फण का छत्र लगाया प्रभु पर ||७||
प्रभु को केवलज्ञान था प्रगटा , संवरदेव बहुत लज्जित था ||८||
अहि के छत्र लगाने से ही, कहलाया वह अहिच्छत्र जी ||९||
है इतिहास पुराना लेकिन, देता शिक्षा हमको हर दिन ||१०||
क्षमा,धैर्य हो सहनशीलता , हर शत्रू उसके वश होता ||११||
वर्तमान में भी अतिशय है, मंदिर में राजे जिनवर हैं ||१२||
कहते तिखाल वाले बाबा , जिनके दर आ सब मिल जाता ||१३||
है प्राचीन शिखरयुत मंदिर , रोचक कथा बड़ी ही सुन्दर ||१४||
देवों ने दीवार बनाई, और तिखाल बनाया भाई ||१५||
प्रतिमा छोटी अतिशयकारी , जनसमूह उमड़ा है भारी ||१६||
पूर्वमुखी त्रय वहाँ हैं वेदी, बाच में हैं पदमावति देवी ||१७||
अपने अतिशय को दिखलातीं , सभी मनौती पूर्ण करातीं ||१८||
मंदिर के बीचोंबिच प्रतिमा ,खड्गासन श्री पार्श्व अनुपमा ||१९||
इस मंदिर को ज्ञानमती माँ , जी की मिल गयी पुण्य प्रेरणा ||२०||
सात सौ बीस जिनेश्वर मंदिर, दश क्षेत्रों के त्रैकालिक जिन ||२१||
दस कमलों पर जिनप्रतिमाएं , सर्वसिद्धि सबको दिलवाएं ||२२||
यह मंदिर भी माताजी की, दिव्य प्रेरणा से निर्मित है ||२३||
पार्श्वनाथ पद्मावति मंदिर, गौरव गरिमा है वृद्धिंगत ||२४||
और कथानक जुड़े यहाँ से, छठी सातवीं उस शताब्दि में ||२५||
पात्रकेशरी इस नगरी के, थे विद्वान और ब्राह्मण थे ||२६||
अवनिपाल के राज्यकाल में,नित्य गोष्ठी करते रहते ||२७||
एक दिवस गए पारस मंदिर, देवागम का पाठ करें मुनि ||२८||
ध्यान से उसको सुना था उनने, शंका समाधान हुआ पल में ||२९||
घर जा तत्वचिन्तवन करते , शंका हुई पदमावति प्रगटें ||३०||
पार्श्वनाथ प्रतिमा के ऊपर, लिखी कारिका था निराकरण ||३१||
जैनधर्म उनने स्वीकारा ,इक दार्शनिक ग्रन्थ लिख डाला ||३२||
इक राजा वसुपाल कहाए , सहस्रकूट मंदिर बनवाए ||३३||
लेपकार मांसभक्षी था, लेप प्रभू पर नहिं टिकता था ||३४||
दूजे लेपकार ने मुनि से, नियम लिया और पूजन करके ||३५||
वज्र समाना लेप लगाया, यह जिनधर्म का केन्द्र कहाया ||३६||
यह पांचाल की थी रजधानी , कई विरासत यहाँ हैं मानीं ||३७||
मिले यहाँ स्तंभ व मूर्ती, ग्राम की जनता पूजन करती ||३८||
सन् पचहत्तर में मंदिर का , सुन्दर जीर्णोद्धार हुआ था ||३९||
वार्षिक मेला यहीं है लगता , तीर्थक्षेत्र की गरिमा कहता ||४०||
शम्भु छंद
इस अहिच्छत्र जी तीरथ का, कण-कण सचमुच मनहारी है
उपसर्ग विजयस्थल की यात्रा , भविजन को सुखकारी है
श्रावण शुक्ला सप्तमि तिथि में, निर्वाणोत्सव जनता करती
‘इंदू’ उस भू को नमन करें , मिल जाय शीघ्र कैवल्यश्री ||१||
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