Jambudweep - 7599289809
encyclopediaofjainism@gmail.com
About Us
Facebook
YouTube
Encyclopedia of Jainism
  • विशेष आलेख
  • पूजायें
  • जैन तीर्थ
  • अयोध्या

भगवान महावीर चालीसा!

June 11, 2020जिनेन्द्र भक्तिjambudweep

भगवान महावीर चालीसा



दोहा

सिद्धिप्रिया के नाथ हैं, महावीर भगवान।
सिद्धारथ सुत वीर को, मेरा कोटि प्रणाम।।१।।
वर्धमान अतिवीर प्रभु, सन्मति हैं सुखकार।
पाँच नाम युत वीर को, वन्दन बारम्बार।।२।।
चालीसा महावीर का, पढ़ो भव्य मन लाय।
रोग शोक संकट टलें, सुख सम्पति मिल जाय।।३।।
 
चौपाई
 
जय जय श्री महावीर हितंकर। जय हो चौबिसवें तीर्थंकर।।१।।
जय प्रभु तुम जग में क्षेमंकर। जय जय नाथ तुम्हीं शिवशंकर ।।२।।
जन्म लिया प्रभु कुण्डलपुर में। चैत्र सुदी तेरस शुभ तिथि में।।३।।
त्रिशला माता धन्य हो गईं। अपने सुत में मग्न हो गईं।।४।।
राजा सिद्धारथ हरषाये। पुत्र जन्म पर दान बंटाये।।५।।
स्वर्गों में भी खुशियाँ छाई। इन्द्रों की टोली वहाँ आई।।६।।
नंद्यावर्त महल में जाकर। सिद्धारथ से आज्ञा पाकर।।७।।
पहुँची शची प्रसूती गृह में। माता की त्रय प्रदक्षिणा दे।।८।।
त्रिशला माँ का वन्दन करके। उनको निद्रा सम्मुख करके।।९।।
मायामय बालक को सुलाया। गोद में जिनबालक को उठाया।।१०।।
तत्क्षण स्त्रीलिंग विनाशा। शिवपद की मन में अभिलाषा।।११।।
जिन शिशु को बाहर लाकर के। दिया इन्द्र के करकमलों में।।१२।।
इन्द्र प्रभू को ले अति हरषा। हर्षाश्रू की हो गई वर्षा।।१३।।
दो नेत्रों से देख न पाया। नेत्र सहस्र तब उसने बनाया।।१४।।
निरखा अंग अंग जिनवर का। फिर भी उसका मन नहिं भरता।।१५।।
मेरु सुदर्शन पर ले जाकर। किया जन्म अभिषेक प्रभू पर।।१६।।
उस जन्मोत्सव का क्या कहना। तीन लोक में उसकी महिमा।।१७।।
इन्द्र ने नामकरण किया प्रभु का। वीर व वर्धमान पद उनका।।१८।।
जन्म न्हवन के बाद शची ने। प्रभु को किया सुसज्जित उसने।।१९।।
फिर कुण्डलपुर नगरी आकर। मात-पिता को सौंपा बालक।।२०।।
वहाँ पुनः जन्मोत्सव करके। नृत्य किया था कुण्डलपुर में।।२१।।
पलना खूब झुलाया प्रभु का। नंद्यावर्त महल परिसर था।।२२।।
एक बार दो मुनिवर आये। जिनशिशु को लख अति हर्षाये।।२३।।
दूर हुई उनकी मनशंका। ‘‘सन्मति’’ नाम उन्होंने रक्खा।।२४।।
बालपने में क्रीड़ा करते। मात-पिता के मन को हरते।।२५।।
संगमदेव एक दिन आया। उसने सर्प का वेष बनाया।।२६।।
वर्धमान तब खेल रहे थे। देवबालकों के संग वन में।।२७।।
उनके बल की हुई परीक्षा। सर्प देव की थी यह इच्छा।।२८।।
चढ़े सर्प के फण पर वे तो। मानो माँ की गोदी में हों।।२९।।
सर्प ने देवरूप प्रगटाया। ‘‘महावीर’’ कह शीश झुकाया।।३०।।
बालपने से यौवन पाया। लेकिन ब्याह नहीं रचवाया।।३१।।
जातिस्मरण हुआ जब उनको। दीक्षा लेने चल दिये वन को।।३२।।
बारह वर्ष कठिन तप करके। केवलज्ञान प्रगट हुआ उनके।।३३।।
प्रथम देशना विपुलाचल पर। प्रगटी शिष्य मिले जब गणधर।।३४।।
तीस वर्ष तक समवसरण में। दिव्य देशना दी जिनवर ने।।३५।।
पावापुर से मोक्ष पधारे। तीर्थंकर महावीर हमारे।।३६।।
सबने दीपावली मनाई। तब से ही दीवाली आई।।३७।।
चला वीर संवत्सर जग में। सर्वाधिक प्राचीन सुखद है।।३८।।
कार्तिक शुक्ला एकम तिथि से। प्रारंभ होता नया वर्ष है।।३९।।
महावीर की जय सब बोलो। आत्मा के सब कल्मष धो लो।।४०।।
 
शंभु छन्द
 
प्रभु महावीर का चालीसा, जो चालिस दिन तक पढ़ते हैं।
उनकी स्मृति में दीवाली के, दिन दीपोत्सव करते हैं।।
विघ्नों का शीघ्र विलय होकर, उनको मनवाञ्छित फल मिलता।
लौकिक वैभव के साथ साथ, आध्यात्मिक सौख्यकमल खिलता।।१।।
पच्चिस सौ उनतिस वीर संवत्, शुभ ज्येष्ठ कृष्ण मावस तिथि में।
रच दिया ज्ञानमति गणिनी की, शिष्या ‘‘चन्दनामती’’ मैंने।।
पावापुर में जलमंदिर का, दर्शन कर मन अति हर्षित है।
प्रभु महावीर के चरणों में, मेरी यह कृती समर्पित है।।२।।
रत्नत्रय की हो वृद्धि प्रभो, बोधी समाधि की प्राप्ती हो।
नश्वर इस मानव तन द्वारा, अविनश्वर पद की प्राप्ती हो।।
उससे पहले प्रभु आर्त रौद्र, ध्यानों की सहज समाप्ती हो।
मैं धर्मध्यान में रम जाऊँ, तब ही सच्ची सुख शांती हो।।३।।

 

Tags: Chalisa
Previous post मच्छर चालीसा! Next post श्री पार्श्वनाथ चालीसा!

Related Articles

श्री शैल चालीसा (हनुमान चालीसा)!

June 11, 2020jambudweep

भगवान चन्द्रप्रभु चालीसा!

May 23, 2020jambudweep

ऋषभदेव चालीसा!

May 23, 2020jambudweep
Privacy Policy