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श्री रत्नमतीमातु: स्तुति:!

February 18, 2017जिनेन्द्र भक्तिjambudweep

श्री रत्नमतीमातु: स्तुति:

 

रचयित्री-ब्र.कु. माधुरी शास्त्री

श्री धर्मसागरगुरो: प्रणिपत्य भक्त्या।

जग्राह त्वं शिवकरं व्रतमार्यिकाया:।।

अन्वर्थनाम किल ‘‘रत्नमती’’ दधासि।

त्वामार्यिकां प्रणिपतामि सदैव मूध्र्ना।।१।।

स्वात्मैकतत्वनिरता विरताऽव्रतेभ्य:।

सम्यक्त्वबोधनिपुणा प्रवणा सुवृत्ते।।

स्तोत्रस्य पाठपठने श्रवणेऽनुरक्ता।

त्वामार्यिकां प्रणिपतामि सदैव मूध्र्ना।।२।।

आवश्यकीं षट्क्रियां प्रतिपालयन्ती।

रत्नत्रयं भवहरं बहुमानयन्ती।।

स्वाध्यायचिंतनपरा खलु सावधाना।

त्वामार्यिकां प्रणिपतामि सदैव मूध्र्ना।।३।।

मंत्रं सदा जपसि सौख्यकरं पवित्रं।

रोगापहं सकलदु:खहरं प्रसिद्धम्।।

धर्मामृतं पिबति पाययतीह भव्यान्।

त्वामार्यिकां प्रणिपतामि सदैव मूध्र्ना।।४।।

ख्याता द्वयोरपि किलार्यिकयो: प्रसूस्त्वं।

त्वं सर्वलोकमहिता श्रमणी प्रसिद्धा।।

ते ‘‘माधुरी’’ गुणगणानपि संस्तुवेऽहम्।

त्वामार्यिकां प्रथित रत्नमतीं नमामि।।५।।

Tags: Stuti
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