भरतेऽस्मिन्नार्यावर्ते, मध्येऽयोध्यापुरी व्यभात्। तत्प्रान्ते शोभते देशो, रम्य: सीतापुराह्वय:।।१।।
तत्र महमूदाबादे, नगरे धर्ममण्डिते। श्रेष्ठी सुखपालनामा, तत्पत्नी फूलमती मता।।२।।
तयो: स्यात् मोहिनी पुत्री, धर्मध्यानपरायणा। विद्याविनयसंपत्त्याऽलंकृता गुणभूषिता।।३।।
श्रेष्ठी धन्यकुमारोऽभूत् टिकैतनगराभिधे। छोटेलालश्च तत्पुत्रो सत्संस्कारै: सुसंस्कृत:।।४।।
मोहिनी तस्य भार्याभूत्, शीलसम्यक्त्वमण्डिता। स्वाध्यायजाप्यसंसक्ता, दानपूजादितत्परा।।५।।
त्रयोदशसंताना: स्युस्तयोस्ते रत्नसदृशा:। पिता रत्नाकरोऽत: स्यात् माता रत्नमती च वै।।६।।
ज्ञानमत्यार्यिकाया: याऽर्याभयमत्याश्च या प्रसू:। स्वयं रत्नत्रयं धृत्वा श्रमणीपदमाश्रिता।।७।।
धर्मसागरसूरीणां, शिष्या संयतिकाभवत्। रत्नमत्यार्यिका ख्याता, त्वां वंदे मातरं मुदा।।८।।
महाव्रतपवित्रांगा, पंचसमितिसंयुता। पंचेन्द्रियवशीकत्र्री, षडावश्यक्रियान्विता।।९।।
लोचादिसप्तभिस्ते स्युश्चाष्टाविंशतिसंमिता:। मूलगुणपालने सक्ता, शक्ता कर्मनिमूलने।।१०।।
शांता दान्ता क्षमाशीला, कषायारिशमीकृता। विषया दुर्जयास्त्यक्तास्त्वया स्वात्मैकचिंतया।।११।।
धर्मध्यानपरा नित्यं, स्वाध्यायनिरता च या। रत्नमत्यार्यिका सेयं, रत्नत्रितयमण्डिता।।१२।।
मिथ्यात्वमोहशत्रूणां जये तत्परता सदा। दधाना व्रतशीलादीन् त्वां वंदे मातरं मुदा।।१३।।
जंबूद्वीपरचनाया निर्माणे सहयोगिनी। हस्तिनापुराीर्थेऽस्मिन् स्वात्मतत्त्वमचिंतयत्।।१४।।
धर्मप्रभावनाकार्यमधुना सर्वतोमुखं। देशे देशेऽद्भुतं स्यात् तज्ज्ञानज्योति:प्रवर्तनात्।।१५।।
दर्शं दर्शं प्रहृष्यन्ती विद्यापीठस्य बालकान्। सूक्तिसुधां च वर्षन्ती, भव्यानां हितकांक्षिणी।।१६।।
सत्साहित्यं समालोक्य सम्यग्ज्ञानाख्यपत्रिकां। मुहुर्मुहु: प्रशंसन्ती ज्ञानमत्यार्यिकाश्रमम्।।१७।।
आबाल्यात् शास्त्रस्वाध्यायात्, धर्मामृतमग्रहीत्। संप्रति सत्समाधिं चाकांक्षन्ती स्वात्मसिद्धये।।१८।।
हे रत्नमते! जननि! हे मात: यशस्विनि। अंबिके! भो: नमस्तुभ्यं, कृत्वा बद्धांजलिं मुदा।।१९।।
जगन्मान्या जगत्पूज्या, जगन्माता च विश्रुता। तत्पदप्राप्तयेऽहं त्वां, प्रणमामि पुन: पुन:।।२०।।
रत्नमत्यार्यिका माता, जीयात् वर्षशतं भुवि। माधुरीबालिकायाश्च, पूर्यात् सर्वं मनोरथम्।।२१।।