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धन्य धन्य हे रत्नमती तव, चरणन कोटि प्रणाम हैं
July 20, 2017
ज्ञानमती माताजी
jambudweep
धन्य धन्य हे रत्नमती तव, चरणन कोटि प्रणाम हैं
जिनके यश गौरव से गौरवान्वित यह विश्व ललाम है।
धन्य धन्य हे रत्नमती तव चरणन कोटि प्रणाम है।।
मानतुंग ने करी वन्दना तुम जैसी सतनारी की,
धन्य धरा की पूज्य मातु करता वन्दन भवतारी की।।
पुत्री एक कोटि पुत्रों से सौ सौ कोटि कदम आगे,
निज के आत्म प्रबल पौरुष से कर्म मोह भट हैं भागे।।
ज्ञानमती सम बेटी से उठ गया तुम्हारा नाम है,
धन्य धन्य हे रत्नमती तव चरणन कोटि प्रणाम है।।
ज्ञान विपुल तप अतुल आचरण की समता जो कर न सके,
संयम की साधक छैनी से आत्म सिद्धि को साध सके।।
नभ के कोटि कोटि तारों में एक चन्द्रमा की शोभा,
अत: कोटि नारी में तुम भी मात धरातल की आभा।।
संयम की साधक माता युग युग का तुम्हें प्रणाम है,
धन्य धन्य हे रत्नमती तव चरणन कोटि प्रणाम है।|
क्या आदर्श तुम्हारे जीवन का गाथाओं में गाऊँ,
पुण्य पुरुष के पुन्य पुराणों मे चरित्र लिख हर्षाऊँ।।
युग का वह इतिहास आज कलिकाल समय में आया है,
माँ तुमने सद्पुत्र पुत्रियों को संयम पर पहुँचाया है।।
जिनके यश गौरव से गौरवान्वित यह विश्व ललाम है,
धन्य धन्य हे रत्नमती तव चरणन कोटि प्रणाम है।।
कुल की गौरव युग की गौरव धरती की गौरव माता,
जिनवाणी की सहोदरा तुम तो जगती तल की माता।।
जब तक नभ में दिनकर चमके लहराए भूपर सागर,
संयम साधित गौरव की नित भरी रहे जीवन गागर।।
जन जन तारक जग हित कारक युग का तुम्हें प्रणाम है,
धन्य धन्य हे रत्नमती तव चरणन कोटि प्रणाम है।।
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