जैनधर्म अनादिनिधन धर्म है और तीर्थंकर परम्परा भी शाश्वत है। इस सार्वभौम धर्म में अनंतानंत तीर्थंकर हो चुके हैं, होते हैं और आगे भी होते रहेंगे। पूर्वाचार्य प्रणीत प्राचीन ग्रंथों में जैनधर्म में दो ही शाश्वत तीर्थ माने गए हैं—(१) शाश्वत जन्मभूमि अयोध्या, जहाँ तीर्थंकर भगवन्तों के जन्म होते हैं और (२) शाश्वत निर्वाणभूमि सम्मेदशिखर, जहाँ अष्टकर्मों को नष्ट कर तीर्थंकर भगवान शाश्वत मोक्ष सुख को प्राप्त करते हैं।
अवर्सिपणी-उत्सर्पिणी के भेद से यह कालचक्र गतिमान रहता है। ऐसी अनेकों अवर्सिपणी-उत्सर्पिणी के बीत जाने पर एक हुण्डावसर्पिणी काल आता है जिसमें अघटित घटनाएँ घटती रहती हैं। वर्तमान में हुण्डावसर्पिणी काल चल रहा है जिसके कारण ही इस शाश्वत जन्मभूमि अयोध्या में मात्र ५ ही तीर्थंकर जन्मे—श्री ऋषभदेव, श्री अजितनाथ, श्री अभिनन्दननाथ, श्री सुमतिनाथ एवं श्री अनन्तनाथ भगवान, शेष उन्नीस तीर्थंकर भारतवर्ष की वसुधा पर अलग-अलग स्थानों पर जन्मे और मात्र बीस तीर्थंकर ही सम्मेदशिखर पर्वत से मोक्ष पधारे, शेष चार तीर्थंकर अलग-अलग स्थानों से मोक्षधाम को प्राप्त हुए। इस अवसर्पिणी के तृतीय काल में इस युग के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव का जन्म हुआ।आगे पढ़े……….
जन्म भूमि | अयोध्या (उत्तर प्रदेश) |
पिता | महाराज नाभिराय |
माता | महारानी मरूदेवी |
वर्ण | क्षत्रिय |
वंश | इक्ष्वाकु |
देहवर्ण | तप्त स्वर्ण |
चिन्ह | बैल आगे पढ़े……… |
भगवान ऋषभदेव वर्तमान वीर नि.सं.२५३८ से ३९४९८ वर्ष कम, सौ लाख करोड़ सागर अर्थात् एक कोड़ाकोड़ी सागर वर्ष पहले मोक्ष गए हैं। इससे चौरासी लाख पूर्व वर्ष पहले जन्में हैं।
जन्म भूमि | अयोध्या (उत्तर प्रदेश) |
पिता | महाराज जितशत्रु |
माता | महारानी विजय |
मोक्ष | चैत्र शु.५ |
वर्ण | क्षत्रिय |
चिन्ह | हाथी |
वंश | इक्ष्वाकु आगे पढ़े ……… |
जन्म भूमि | अयोध्या (उत्तर प्रदेश) |
पिता | महाराज स्वयंवरराज |
माता | महारानी सिद्धार्था |
मोक्ष | वैशाख शु.६ |
वर्ण | क्षत्रिय |
चिन्ह | बंदर |
वंश | इक्ष्वाकु आगे पढ़े……… |
जन्म भूमि | अयोध्या (उत्तर प्रदेश) |
पिता | महाराज मेघरथ |
माता | महारानी सुमंगला देवी |
वर्ण | क्षत्रिय |
वंश | इक्ष्वाकु |
चिन्ह | चकवा |
मोक्ष | चैत्र शु.११ आगे पढ़े……….. |
जन्मभूमि- | अयोध्या (उ.प्र.) |
पिता- | महाराजा सिंहसेन |
माता- | महारानी जयश्यामा |
वर्ण- | क्षत्रिय |
वंश | इक्ष्वाकु |
चिन्ह | सेही |
मोक्ष | चैत्र कृ. अमावस आगे पढ़े…….. |
पहले तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव जन्मस्थान टोंक –
अयोध्या में स्वर्गद्वार स्थित भगवान ऋषभदेव जन्मभूमि टोंक पर भव्य जिनमंदिर का निर्माण एवं सवा ५ फुट ऊँची भगवान ऋषभदेव की पद्मासन प्रतिमा की भव्य पंचकल्याणक प्रतिष्ठा माघ शु. ११ से फाल्गुन कृ. ३, दिनाँक १४ से २० फरवरी २०११ में सानंद सम्पन्न हुई। इसी के साथ यहाँ स्थित प्राचीन चरणस्थान पर भी सुंदर छतरी बनाकर जीर्णोद्धार किया गया।’’
इतिहासकारों के अनुसार ई. सन् ११९४ के लगभग दिल्ली विजेता मुहम्मद गोरी के भाई मखदूम शाह जूरन गोरी ने अयोध्या पर आक्रमण करके भगवान ऋषभदेव के जन्मस्थान पर बनें विशाल जिनमंदिर को ध्वस्त करके उसके स्थान पर मस्जिद बनवा दी। कालांतर में जैनों ने मुसलमानों से अनुमति लेकर चरण चिन्ह युक्त मंदिर बनवा दिया। किवदन्ती है कि जैनों ने जब आग्रह किया कि यह हमारा प्राचीन पवित्र स्थल भगवान ऋषभदेव का जन्मस्थान है। तब इसके समर्थन का प्रमाण मांगने पर उन्होनें कहा कि इस स्थान की खुदाई करने पर एक स्वस्तिक, नारियल और जलता हुआ दीपक मिलेगा, पश्चात् खुदाई से यथावत वस्तु मिलने पर अत्यन्त अल्प समय में निर्माण करने की अनुमति प्राप्त हुई और जैनों ने यहां मंदिर बनवाकर बहुत छोटी-सी जगह में चरणचिन्ह विराजमान किये।
अयोध्या में मातगढ़ स्थित भगवान अजितनाथ जन्मभूमि टोंक पर भव्य जिनमंदिर का निर्माण एवं सवा ५ फुट ऊँची भगवान अजितनाथ की पद्मासन प्रतिमा की भव्य पंचकल्याणक प्रतिष्ठा ज्येष्ठ शुक्ला एकम् से पंचमी, दिनाँक २९ मई से २ जून २०१४ में सम्पन्न हुई। इसी के साथ यहाँ स्थित प्राचीन चरण स्थान का भी सुंदर जीर्णोद्धार किया गया।
अयोध्या में अशर्फी भवन के निकट भगवान अभिनंदननाथ जन्मभूमि टोंक पर भव्य जिनमंदिर का निर्माण एवं सवा ५ फुट ऊँची भगवान अभिनंदननाथ की पद्मासन प्रतिमा की भव्य पंचकल्याणक प्रतिष्ठा मगसिर शुक्ला षष्ठी से दशमी, दिनाँक २७ नवम्बर से १ दिसम्बर २०१४ में सानंद सम्पन्न हुई। इसी के साथ यहाँ स्थित प्राचीन चरण स्थान का भी सुंदर जीर्णोद्धार किया गया।
अयोध्या में कटरा स्थित भगवान सुमतिनाथ जन्मभूमि टोंक पर एक प्राचीन मंदिर है।
उसके समीप ही एक नवीन जिनमंदिर का निर्माण एवं सवा ५ फुट ऊँची भगवान सुमतिनाथ की पद्मासन अष्टधातुमय प्रतिमा की
भव्य पंचकल्याणक प्रतिष्ठा फाल्गुन कृ. त्रयोदशी से फाल्गुन शु. द्वितीया, दिनाँक ४ से ८ मार्च २०१९ में सानंद सम्पन्न हुई।’’
अयोध्या में राजघाट स्थित भगवान अनंतनाथ जन्मभूमि टोंक पर भव्य जिनमंदिर का निर्माण एवं १२.५ फुट ऊँची भगवान अनन्तनाथ की पद्मासन प्रतिमा की भव्य पंचकल्याणक प्रतिष्ठा तिथि आषाढ़ कृ. त्रयोदशी से आषाढ़ शु. द्वितीया, दिनाँक ५ से १० जुलाई २०१३ में सानंद सम्पन्न हुई।
इसी केसाथ यहाँ स्थित प्राचीन चरणस्थान पर भी सुंदर छतरी बनाकर जीर्णोद्धार किया गया।
सन् २०१३ में भगवान भरत-बाहुबली टोंक पर भव्य जिनमंदिर का निर्माण सम्पन्न हुआ। पुन: सन् २०१४ में पूज्य माताजी के सान्निध्य में हस्तिनापुर में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव सम्पन्न होने के उपरांत प्रतिमा जी को अयोध्या में विराजमान किया गया।
बड़ी मूर्ति, रायगंज परिसर, अयोध्या में सन् – 2023 में पूज्य गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमती माता जी की पावन प्रेरणा एवं ससंघ मंगल सानिध्य में निम्न मंदिरों का नवनिर्माण द्रुत गति से चल रहा हैं –
अयोध्या में नवनिर्मित मंदिर दर्शन (Darshan of Newly Build Temple in Ayodhya)
अयोध्या के जिन मंदिर (Jin Temple`s of Ayodhya)
अयोध्या में जन्मे पाँच तीर्थंकर
अयोध्या तीर्थ की महिमा (Importance of Ayodhya Tirth)
अयोध्या तीर्थ का परिचय (Introduction to Ayodhya Tirth) (मुख्य)
वर्तमान अयोध्या (Ayodhya Of Today)
शाश्वत तीर्थ अयोध्या में प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव महामस्तकाभिषेक
इंद्र ने अयोध्या में सर्वप्रथम जिनमंदिर बनाये
अयोध्या में जन्में 5 तीर्थंकर भगवान का परिचय
शाश्वत जन्मभूमि अयोध्या तीर्थ विधान (लघु)
श्री अयोध्या तीर्थ पूजा संग्रह
शाश्वत तीर्थ अयोध्या स्तुति संग्रह
शाश्वत जन्मभूमि अयोध्या तीर्थक्षेत्र चालीसा
शाश्वत तीरथ प्रथम जग में है, अयोध्या नगरिया
सब तीर्थों में प्रथम अयोध्या तीर्थ हमारा
सरयू के तट पर बसी हुई है ये अयोध्या नगरिया
तीरथ अयोध्या जग में शाश्वत रहेगा
तीरथ अयोध्या महान, इसका दर्शन करो