तर्ज-सावन का महीना……….
चन्दनामती
तू पूनो का चन्दा, और मैं मावस की रात।
बोलो माता मेरा तेरा, हो गया कैसे साथ।।१।।
श्री ज्ञानमती माताजी
मैंने तुझे चखाया, ज्ञानामृत का जो स्वाद।
इसीलिए तो मेरी तेरी, जल्दी बन गई बात।।२।।
चन्दनामती
जीवन के इन स्वर्ण क्षणों को, नहिं सोचा था बचपन में।
देखा पहली बार तुझे जब, विस्मय होता था मन में।।
मैं क्या जानूँ तेरी, पदवी है जग में ख्यात।
बोलो माता मेरा तेरा, हो गया कैसे साथ।।३।।
श्री ज्ञानमती माताजी
ग्यारह बरस उमर में तू, मेरे दर्शन को आयी थी।
उस क्षण ही मैंने तुझको कुछ, ज्ञान की बात सिखाई थी।।
वही ज्ञान की शिक्षा, हो आई तुझको याद।
इसीलिए तो मेरी तेरी, जल्दी बन गई बात।।४।।
चन्दनामती
बाल उमर में मुझको माता, तुमने जो संस्कार दिये।
उसका ही फल मैंने तुमसे, तीन रत्न स्वीकार किये।।
तू है ज्ञान की गंगा, पावनता तेरी ख्यात।
बोलो माता मेरा तेरा, हो गया कैसे साथ।।५।।
श्री ज्ञानमती माताजी
मेरे ज्ञान की सरिता से तुम, चाहे कितना ज्ञान भरो।
रत्नत्रय की वृद्धी करके, निज पर का कल्याण करो।।
गुरु आज्ञा में बिताए, तुमने अपने दिन रात।
इसीलिए तो मेरी तेरी, जल्दी बन गई बात।।६।।
चन्दनामती
जिस जननी ने जन्म दिया, मैं उसको कभी न भूलूँगी।
तेरे वचनों के मोती मैं, अपने दिल में भर लूँगी।।
युग युग तक तू मुझको, दे अपना आशिर्वाद।
बोलो माता मेरा तेरा, हो गया कैसे साथ।।७।।
श्री ज्ञानमती माताजी
महावीर की परम्परा में, कुन्दकुन्द आचार्य हुए।
इस क्रम में श्री शांतिसिंधु इस सदि के प्रथमाचार्य हुए।।
उनके दर्शन करके, पाया मैंने सन्मार्ग।
इसीलिए तो मेरी तेरी, जल्दी बन गई बात।।८।।
चन्दनामती
शांतिसिंधु के पट्टशिष्य, श्री वीरसिंधु की शिष्या तुम।
दृढ़ता औ संकल्प की मूरत, हरतीं जग का मिथ्यातम।।
कहे ‘चन्दना’ जनम जनम में, चाहूँ तेरा साथ।
बोलो माता मेरा तेरा, हो गया कैसे साथ।।९।।