ग्वालियर किले के अन्तर्गत गूजरी महल में स्थित पुरातत्व संग्रहालय म. प्र. का एक प्रमुख पुरातत्व संग्रहालय है। प्रस्तुत लेख में इसी संग्रहालय की कतिपय जैन मूर्तियों का विवरण प्रस्तुत किया गया है। ग्वालियर किले के गूजरी महल में स्थित मध्य प्रदेश पुरातत्व विभाग द्वारा संचालित इस संग्रहालय में संपूर्ण मध्यप्रदेश के पुरातत्व से संबन्धित महत्वपूर्ण सामग्री संग्रहीत की गई है। यहां पर कुल ६९२ मूर्तियां प्रर्दिशत हैं। जिनमें से जैन मूर्तियाँ संख्या में ५६ हैं जो ग्वालियर दुर्ग, पढ़ावली, भिलसा, बडोह से एकत्रित की गई हैं। ग्वालियर राज्य की र्वािषक रिपोर्ट में कुछ का उल्लेख है। बहुतायत में जैन मूर्तियाँ ग्वालियर दुर्ग से ही एकत्रित की गई है। मूर्ति क्रमांक ११४ पर जैन चौमुखी प्रर्दिशत है। इसकी ऊँचाई ८४ से. मी. है। प्रतिमा खण्ड में तीर्थंकर खड्गासन में निर्मित हैं और चारों दिशाओं में उकेरे गये लांछन के आधार पर उनमें से दो ऋषभनाथ व पार्श्र्वनाथ हैं। प्रथम के स्कंधों पर शीर्ष केश राशि स्पर्श कर रही है व दूसरे सर्पफणों की छाया हैं। दो अन्य तीर्थंकर पहचाने नहीं जाते हैं क्योंकि उनके लांछन भग्ग्र हो चुके हैं। सम्पूर्ण जैन पुरावशेषों को चार श्रेणियों में बांटा जा सकता है। (१) गुप्तकालीन जैन मूर्तियाँ (२) पूर्व मध्यकाल में निर्मित प्रतिमाएं (९वीं १०वीं शताब्दी) (३) मध्यकालीन प्रतिमाएं (११वीं १२वीं शताब्दी) (४) उत्तर मध्यकालीन काल की तोमर नरेशों द्वारा निर्मित जैन प्रतिमाएँ।
(१) गुप्तकालीन प्रतिमाएँ— इस काल की कुल ३ प्रतिमाएं हैं। दो प्रतिमाओं में तीर्थंकर कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़े हुए हैं जबकि तीसरी प्रतिमा अम्बिका की है। प्रथम का मूर्ति क्रमांक ३३ हैं। जिसकी ऊँचाई १.९६ मीटर है व विदिशा के निकट बेसनगर से एकत्रित की गई है। लांछन भग्न होने से इसकी पहचान नहीं की जा सकती है। प्रतिमा के दोनों बाहु आजानु बाहु हैं। घुघराले बाल व उष्णीय विशेष कलात्मक निर्मित हैं। प्रतिमा के प्रभामंडल में विशेष अलंकरण हैं वह इसे गुप्तकालीन र्नििनिर्मितको स्पष्टता देता है। दोनों ओर से दो मालाधारी विद्याधर है व चरणों पर दो साधक श्रद्धा व्यक्त कर रहे हैं। प्रतिमा ५वीं शताब्दी मेंनिर्मितमत है। दूसरी प्रतिमा क्रमांक ५५ है व इसकी ऊँचाई ९५ से.मी. है। यह ऋषभनाथ की प्रतिमा है व लश्कर से प्राप्त हुई है। तीसरी प्रतिमा क्रमांक ४९ है व ३र्३ ४२ से. मी. के आकार की है। यह जैन अम्बिका यक्षी है, आम्रलुम्बी पकड़े शेर पर आसीन है। यह गोद में बालक लिये है। गुना जिले के तुमैन स्थान से लाई गई है। बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ की यक्षी आम्रा या अम्बिका कही गई है। यह दिगम्बर रूप है, द्विभुजी है। आशाधर द्वारा बतलाये गये आम्रवृक्ष की छाया में स्थित बताया है वाम कटि पर प्रियंकर को रखे हुए है। इस पुत्र का भाई शुभंकर दाहिने पाश्र्व में बैठा गया प्रर्दिशत है। प्रतिमा ६ठी शताब्दी निर्मितमत हुई थी।
(२) पूर्व मध्यकालीन प्रतिमाएं —इस श्रेणी में कुल ९ प्रतिमाएं हैं जो बडोह, तेरही व ग्वालियर दुर्ग से एकत्रित की गई हैं। मूर्ति क्रमांक १३२ स्वेत बलुआ पत्थर में जिन प्रतिमा का अंकन है तीर्थंकर पद्स्थापना ध्यानमुद्रा में चौकी पर बैठी है। चौकी को दो शेर थामे है। धर्मचक्र को दो हिरण संरक्षण दिये हैं। दूसरी तीर्थंकर प्रतिमा (क्र. १२३) २.१र्१ १.१६ से. मी. आकार की है इसका प्राप्ति स्थान ग्वालियर किला है। पद्मासना व ध्यानस्थ मुद्रा में तीर्थंकर अंकित है। प्रभामंडल में सुन्दर अलंकरण कार्य हैं। विद्याधर, देवदुंदुभी, इन्द्र, सुधर्मा व ईषान स्वर्गीय पुरुष अंकित हैं। यक्ष—यक्षणी, व्याल, मकराकृति अन्य जैन प्रतिमाएँ हैं। यक्षिणी कमलनाल पकड़े प्रर्दिशत है यह ९वीं शताब्दी की है। इसी श्रेणी में गदरमल मंदिर बडौह की प्रतिमा है। यक्षिणी पर्यक पर लेटी हुई है बगल में एक छोटा बालक लेटा है। तीर्थंकर की माता के रूप में इस देवी प्रतिमा की पहचान की गई है। कुछ विद्वान इसे यशोदा कृष्ण मानते हैं। मूर्ति क्रमांक ९८ में अम्बिका की ऊँचाई ७२ से. मी. है। प्राप्ति स्थान तेर ही है। िंसह पर सवारी व आम्र लुम्बि बायें हाथ में लिए है। चंवरधारी, गज शार्दुल, विद्याधर अंकित हैं। इस काल की यक्ष गोमेध की प्रतिमाएँ भी प्रर्दिशत हैं।
(३) मध्यकालीन मूर्तिया— मुरैना जिले के पढ़ावली व विदिशा की एकत्रित जैनमूर्तियाँ इस श्रेणी में आती हैं। ऋषभदेव, अजिनाथ, शांतिनाथ व पंच—तिथिका इसमें सम्मिलित हैं। ये प्रतिमाएं १२ वीं शताब्दी की हैं। पढ़ावली, अहमदपुर (विदिशा) व ग्वालियर किले की पार्श्र्वनाथ की तीन प्रतिमाएँ हैं। पद् मासना ध्यानस्थ प्रतिमाएं १.४० मीटर ऊँची हैं। प्रभामंडल में अलंकरण है। छात्र, दुंदुभी वादक व वीणाधर एवं गणधर बनाये गये हैं। अन्य प्रतिमाएँ क्षेत्रपाल व यक्ष की है। इस श्रेणी में दो सर्वतो भद्रिका प्रतिमाएँ विदिशा से प्राप्त हुई यहाँ प्रर्दिशत है (मूर्ति क्रमांक १३१ एवं ऊँचाई से. मी.)। चारों दिशा में चार तीर्थंकर अंकित हैं। ऋषभनाथ व पार्श्र्वनाथ की पहचान उनके लांछनों से होती है, शेष दो तीर्थंकर नहीं पहचाने जाते हैं। पार्श्र्वनाथ तीर्थंकर, द्विमूर्तियाँ एक अन्य तीर्थंकर की प्रतिमायें इन श्रेणी में आती हैं। मूर्ति क्रमांक १४९ में चव्रेâश्वरी हैं जो प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ की शासनदेवी है। इसे अप्रतिचक्रा भी कहा जाता गया है।
(४) उत्तर मध्यकालीन मूर्तिया— इस श्रेणी में लगभग ३० प्रतिमाएं हैं जो ग्वालियर के तोमर शासकों के काल मेंनिर्मितमत हुई थीं। मूर्ति क्रमांक ११८ ऊँचाई ७२ से. मी. में ऋषभनाथ अंकित हैं। पद्मासना ध्यान मुद्रा में तीर्थंकर अंकित हैं। मूर्ति क्रमांक ३० में संभवनाथ हैं जो अपने वाहन अश्व से स्पष्ट पहचाने जाते हैं। ये तीसरे तीर्थंकर हैं। मूर्ति क्रमांक ११६ में पद्मप्रभ अंकित हैं। प्रतिमा चंद्रप्रभ, नेमिनाथ, पार्श्र्वनाथ, यक्ष धरणेन्द्र, यक्षी पद्मावती इस श्रेणी में आती हैं। मूर्ति क्रमांक ६८३ ऊँचाई १.२६ से.मी. तीर्थंकर प्रतिमा है। इस श्रेणी में मूर्ति क्रमांक २६१ व २६३ आती है जो सर्वतोभद्रिका हैं। पार्श्र्वनाथ ऋषभनाथ स्पष्ट हैं व शेष पहचाने नहीं गये हैं। इन मूर्तियों पर कुछ में मूर्ति पादपीठ पर अभिलेख भी हैं जिनसे भट्टारकों के गण, गच्छ व संघ का पता चलता है। ग्वालियर संग्रहालय एक प्रकार से जैन का अध्ययन करने में अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
मायारानी आर्य
इतिहास की व्याख्याता, निवास—२२, भक्तनगर, दशहरा मैदान, उज्जैन ४५६०१०