जन्म भूमि | अयोध्या (उत्तर प्रदेश) | प्रथम आहार | सौमनस नगर के राजा पद्म द्वारा (खीर) |
पिता | महाराज मेघरथ | केवलज्ञान | चैत्र शु.११ |
माता | महारानी सुमंगला देवी | मोक्ष | चैत्र शु.११ |
वर्ण | क्षत्रिय | मोक्षस्थल | सम्मेद शिखर पर्वत |
वंश | इक्ष्वाकु | समवसरण में गणधर | श्री अमर आदि ११६ |
देहवर्ण | तप्त स्वर्ण सदृश | मुनि | तीन लाख बीस हजार (३२००००) |
चिन्ह | चकवा | गणिनी | आर्यिका अनंतमती |
आयु | चालीस (४०) लाख पूर्व वर्ष | आर्यिका | तीन लाख तीस हजार (३३००००) |
अवगाहना | बारह सौ (१२००) हाथ | श्रावक | तीन लाख (३०००००) |
गर्भ | श्रावण शु.२ | श्राविका | पांच लाख (५०००००) |
जन्म | चैत्र शु. ११ | जिनशासन यक्ष | तुंबुरू देव |
तप | वैशाक शु.९ | यक्षी | पुरुषदत्ता देवी |
दीक्षा – केवलज्ञान वन एवं वृक्ष | सहेतुक वन एवं प्रियंगु वृक्ष |
धातकीखंडद्वीप में मेरूपर्वत से पूर्व की ओर स्थित विदेहक्षेत्र में सीता नदी के उत्तर तट पर पुष्कलावती नाम का देश है। उसकी पुंडरीकिणी नगरी में रतिषेण नाम का राजा था। किसी दिन राजा ने विरक्त होकर अपना राज्य पुत्र को देकर अर्हन्नन्दन जिनेन्द्र के समीप दीक्षा लेकर ग्यारह अंगों का अध्ययन किया और दर्शनविशुद्धि आदि कारणों से तीर्थंकर प्रकृति का बंध करके वैजयन्त विमान में अहमिन्द्र पद प्राप्त किया।
वैजयन्त विमान से च्युत होकर वह अहमिन्द्र इसी भरतक्षेत्र के अयोध्यापति मेघरथ की रानी मंगलावती के गर्भ में आया, वह दिन श्रावण शुक्ल द्वितीया का था। तदनन्तर चैत्र माह की शुक्ला एकादशी के दिन माता ने सुमतिनाथ तीर्थंकर को जन्म दिया।
वैशाख सुदी नवमी के दिन प्रात:काल सहेतुक वन में एक हजार राजाओं के साथ दीक्षा धारण कर ली।
छद्मस्थ अवस्था में बीस वर्ष बिताकर सहेतुक वन में प्रियंगु वृक्ष के नीचे चैत्र शुक्ल एकादशी के दिन केवलज्ञान को प्राप्त किया। इनकी सभा में एक सौ सोलह गणधर, तीन लाख बीस हजार मुनि, अनन्तमती आदि तीन लाख तीस हजार आर्यिकाएँ, तीन लाख श्रावक और पाँच लाख श्राविकाएँ थीं। अन्त में भगवान ने सम्मेदाचल पर पहुँचकर एक माह तक प्रतिमायोग से स्थित होकर चैत्र शुक्ला एकादशी के दिन मघा नक्षत्र में शाम के समय निर्वाण प्राप्त किया। सारे पंचकल्याणक महोत्सव आदि पूर्ववत् समझना ।